राम नवमी का पर्व भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह दिन भगवान श्रीराम के आदर्शों, मर्यादा, वीरता और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। हर वर्ष यह पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना की जाती है, और श्रद्धालु उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि राम नवमी के दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है, साथ ही सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस पावन दिन पर मां दुर्गा के नवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की भी विशेष रूप से आराधना की जाती है, जो भक्तों को सिद्धि, समृद्धि और शुभ फल प्रदान करती हैं।
राम नवमी का धार्मिक महत्व:
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, राम नवमी का पर्व भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जब पृथ्वी पर रावण जैसे दुष्टों के अत्याचार बढ़ गए और धर्म की स्थिति कमजोर होने लगी, तब भगवान विष्णु ने धर्म की पुनः स्थापना हेतु श्रीराम के रूप में अवतार लिया। यह दिव्य अवतरण चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ था। माता कौशल्या के गर्भ से अयोध्या के राजा दशरथ के घर श्रीराम का जन्म हुआ।
राम नवमी का पर्व धार्मिक और पारंपरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसे श्रद्धालु बड़ी आस्था, भक्ति और उल्लास के साथ मनाते हैं। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का समापन भी होता है। साथ ही, यह दिन साहित्यिक रूप से भी खास माना जाता है क्योंकि संत गोस्वामी तुलसीदास ने इसी दिन रामचरितमानस की रचना का शुभारंभ किया था।भगवान श्रीराम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में धरती पर अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के उद्देश्य से आए। उनका उद्देश्य मानव जाति को सत्य, मर्यादा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना था, जिससे सभी लोग सुख-शांति से जीवन व्यतीत कर सकें और ईश्वर भक्ति में लीन रहें।
राम नवमी का पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह जीवन मूल्यों और आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा भी देता है। यह पर्व सम्पूर्ण श्रद्धा, भक्ति और धार्मिक उल्लास के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस वर्ष राम नवमी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि की सम्पूर्ण जानकारी।
राम नवमी तिथि २०२५ :
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 5 अप्रैल 2025, शनिवार को शाम 7 बजकर 26 मिनट पर होगी और इसका समापन 6 अप्रैल 2025, रविवार को शाम 7 बजकर 22 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, राम नवमी का पावन पर्व 6 अप्रैल 2025 को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।
राम नवमी शुभ मुहूर्त २०२५ :
राम नवमी की पूजा का शुभ समय 6 अप्रैल 2025 को प्रातः 11 बजकर 08 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इस दिन राम नवमी का मध्याह्न मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 1 बजकर 39 मिनट तक का है, जिसे पूजा के लिए अत्यंत श्रेष्ठ और शुभ माना जाता है। इस समय भगवान श्रीराम की विधिपूर्वक आराधना करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।
राम नवमी पूजा विधि :
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राम नवमी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वयं को शुद्ध करें।
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व्रत का संकल्प लें और मन में भगवान श्रीराम की पूजा करने का निश्चय करें।
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व्रत के दौरान सत्य बोलने और उत्तम आचरण का पालन करें।
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पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां एक चौकी रखें।
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चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और उस पर भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण जी और श्री हनुमान जी की प्रतिमाएं स्थापित करें।
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भगवान श्रीराम का ध्यान करें और उन्हें अपने घर आमंत्रित करते हुए श्रद्धापूर्वक पूजा प्रारंभ करें।
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पंचोपचार पूजा करें, जिसमें फूल, चंदन, दीपक, नैवेद्य (प्रसाद) और जल अर्पण किया जाता है।
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इसके बाद राम स्त्रोत और राम चालीसा का पाठ करें, जिससे भगवान श्रीराम की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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पूजा के अंत में भगवान श्रीराम की आरती करें और उन्हें धन्यवाद अर्पित करें।
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अंत में प्रसाद का वितरण करें और सभी परिजनों को प्रसन्नचित्त करें।
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इस विधिपूर्वक की गई पूजा से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
श्री राम स्तुति – Shri Ram Stuti
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्॥१॥
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्॥२॥
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्॥३॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्॥५॥
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो॥६॥
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली॥७॥
दोहा-
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।