मां सिद्धिदात्री को देवी पार्वती का नौवां रूप माना जाता है। मां के चार हाथ हैं और वे बहुत शक्तिशाली हैं। उनके दाहिने नीचे वाले हाथ में चक्र और ऊपर वाले हाथ में गदा है। बाएं नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है। इन सभी वस्तुओं को धारण करके मां बहुत सुंदर और दिव्य दिखाई देती हैं। माँ सिद्धिदात्री की उपासना से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। “सिद्धि” का अर्थ होता है—अद्भुत शक्तियाँ, और “दात्री” का अर्थ होता है—देने वाली। अतः सिद्धिदात्री माता वह देवी हैं जो भक्तों को हर प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।
देवी पुराण के अनुसार, माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं और उन्हें सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। ऐसी मान्यता है कि माँ की कृपा से ही भगवान शिव को असीम शक्तियाँ प्राप्त हुई थीं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्ध लोग भी श्रद्धा से करते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव के वाम अंग से देवी सिद्धिदात्री के प्रकट होने के बाद ही उन्हें अर्धनारीश्वर की उपाधि प्राप्त हुई थी।
सिद्धिदात्री माता की कथा – Siddhidatri Mata ki Katha
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का आधा शरीर माँ सिद्धिदात्री से जुड़ा हुआ है। एक समय की बात है जब सारा ब्रह्मांड केवल अंधकार से घिरा हुआ था। उस समय मां कूष्मांडा, जिनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है, प्रकट हुईं और उन्होंने त्रिदेव — भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव — की रचना की। फिर उन्होंने इन तीनों को सृष्टि के संचालन का कार्य सौंपा। ब्रह्मा जी को सृष्टि का निर्माणकर्ता, विष्णु जी को पालनकर्ता और शिव जी को संहारक की भूमिका दी गई।
एक बार भगवान शिव ने मां कूष्मांडा से प्रार्थना की कि वे उन्हें पूर्णता प्रदान करें। तब माँ कूष्मांडा ने एक और देवी की रचना की, जिन्हें सिद्धियों की देवी , माँ सिद्धिदात्री कहा गया। माँ सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को ‘अष्ट सिद्धियाँ’ यानी आठ प्रमुख सिद्धियाँ और कुल 18 सिद्धियों का आशीर्वाद दिया। इन 18 सिद्धियों में आठ प्रमुख के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण द्वारा वर्णित 10 माध्यमिक सिद्धियाँ भी शामिल थीं। इसके बाद, ब्रह्मा जी को सृष्टि में जीवन उत्पन्न करने के लिए एक पुरुष और एक स्त्री की आवश्यकता थी। तब माँ सिद्धिदात्री ने स्वयं को भगवान शिव के आधे शरीर से जोड़ लिया। यही कारण है कि भगवान शिव का वह रूप, जिसमें वे आधे पुरुष और आधी स्त्री के रूप में दिखाई देते हैं, ‘अर्धनारीश्वर’ कहलाता है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्रि के नौवें दिन, यानी रामनवमी के दिन की जाती है। उनकी आराधना केवल मनुष्य ही नहीं करते, बल्कि देवता, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धगण भी श्रद्धा से उनकी उपासना करते हैं। माँ सिद्धिदात्री से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें उन्होंने न केवल भक्तों और देवताओं को, बल्कि राक्षसों को भी मोक्ष प्रदान किया है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से माँ सिद्धिदात्री के मंत्रों का जाप करता है, तो माँ शीघ्र प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देती हैं।
सिद्धिदात्री माता का मंत्र – Ma Siddhidatri Mantra
सिद्धिदात्री मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
सिद्धिदात्री बीज मंत्र
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
सिद्धिदात्री प्रार्थना मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
सिद्धिदात्री स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
सिद्धिदात्री ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥१॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥२॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥३॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥४॥
सिद्धिदात्री स्तोत्र मंत्र
कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥१॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥२॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥३॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥४॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥५॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥६॥
सिद्धिदात्री कवच मंत्र
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥१॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो॥२॥
सिद्धिदात्री माता की आरती – Siddhidatri Mata ki Aarti
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥१॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥२॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥३॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥४॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥५॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥६॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥७॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥८॥
हिमाचल है पर्वत जहाँ वास तेरा। महा नन्दा मन्दिर में है वास तेरा॥९॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥१०॥
सिद्धिदात्री माता पूजा विधि (नवमी तिथि पर)
- सबसे पहले प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें और शुद्ध करें।
- एक साफ व पवित्र आसन पर बैठें।
- माँ सिद्धिदात्री की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
- दीपक, अगरबत्ती जलाएं और माँ को पुष्प अर्पित करें।
- दोनों हाथ जोड़कर श्रद्धा भाव से माँ को प्रणाम करें।
- माँ सिद्धिदात्री को भोग (जैसे फल, मिठाई आदि) अर्पित करें।
- माँ के मंत्रों का जाप करें और ध्यानपूर्वक उनका ध्यान करें।
- पूजा के अंत में माँ की आरती करें।
- माँ का प्रसाद पूरे परिवार में प्रेमपूर्वक वितरित करें।
महानवमी व्रत – कन्या पूजन विधि
1. कन्या संख्या और लांगूर पूजन
- महानवमी के दिन 9 कन्याओं का पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है।
- यदि संभव न हो तो कम से कम 5 कन्याओं का पूजन भी किया जा सकता है।
- पूजन में एक बालक को “लांगूर” के रूप में शामिल करना आवश्यक होता है।
- कन्याओं के साथ लांगूर बालक की भी पूजा करें।
2. कन्याओं को आमंत्रण
- पूजा के लिए कन्याओं और लांगूर को आदर एवं सम्मान के साथ घर पर आमंत्रित करें।
- उन्हें पूजा स्थान पर बैठाएं।
3. चरण पूजन और तिलक
- सबसे पहले कन्याओं और लांगूर के पैर जल या दूध से धोएं।
- फिर उन्हें कुमकुम और सिंदूर का तिलक लगाएं।
- उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
4. भोजन कराना
- कन्याओं और लांगूर को प्रेमपूर्वक भोजन कराएं।
- भोजन में हलवा, काले चने, पूरी, सब्जी, केला आदि शामिल करें।
5. दान-दक्षिणा और भेंट
- भोजन के बाद कन्याओं और लांगूर को अपनी श्रद्धा अनुसार उपहार, वस्त्र, दक्षिणा या अन्य भेंट दें।
6. विदाई और जयकारा
- अंत में पूरे परिवार के साथ सभी कन्याओं और लांगूर के चरण स्पर्श करें।
- “जय माता दी” का जयकारा लगाकर उन्हें सप्रेम विदा करें।
- यह विधि श्रद्धा और संपूर्ण भक्ति भाव से की जाए तो माँ दुर्गा विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।
सिद्धिदात्री माता की पूजा के लाभ
नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्त उपवास रखते हैं और माँ दुर्गा की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे उन्हें माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इसके साथ ही घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा से अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व — ये आठ दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। देवी-देवता, गंधर्व, ऋषि और असुर भी विधिपूर्वक माँ सिद्धिदात्री की आराधना कर इन सिद्धियों को प्राप्त करते हैं।
माँ सिद्धिदात्री की उपासना न केवल आध्यात्मिक शक्तियाँ प्रदान करती है, बल्कि जीवन को मोक्ष की ओर भी ले जाती है, जिससे मनुष्य जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर परम शांति को प्राप्त करता है।