हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 2 नवंबर को प्रातः 07 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होकर 3 नवंबर को सुबह 05 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार, तुलसी-शालिग्राम विवाह का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर को मनाना सबसे उत्तम रहेगा। इस वर्ष तुलसी विवाह के पावन अवसर पर दो अत्यंत शुभ योग बन रहे हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, 2 नवंबर को दोपहर 1 बजे से रात 10 बजकर 33 मिनट तक त्रिपुष्कर योग रहेगा, जबकि उसके बाद रात 10 बजकर 34 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 5 बजकर 34 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग बनेगा। इन दोनों शुभ योगों के संगम से इस बार तुलसी विवाह का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व कई गुना बढ़ गया है।
हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह एक अत्यंत पवित्र और लोकप्रिय पर्व माना जाता है। यह उत्सव देवी तुलसी (वृंदा) और भगवान विष्णु या उनके अवतार भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य विवाह के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण तुलसी के पौधे को देवी वृंदा और शालग्राम शिला को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर विवाह संस्कार करते हैं। वृंदावन, मथुरा और सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र में तुलसी विवाह को पारंपरिक हिन्दू विवाह की तरह मनाया जाता है। घरों और मंदिरों में तुलसी माता और श्रीहरि की सुंदर सजावट की जाती है। भक्त उपवास रखकर शाम को विवाह समारोह संपन्न करते हैं। मंदिरों में हल्दी, मेहंदी, बारात, जयमाला और फेरे जैसे सभी रीति-रिवाज निभाए जाते हैं। तुलसी के बिना ठाकुर जी को भोग नहीं लगाया जाता, इसलिए वृंदावन में यह उत्सव अत्यधिक श्रद्धा और भव्यता से मनाया जाता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में तुलसी विवाह की परंपराएँ अलग-अलग हैं, जो इस पर्व की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं। बिहार के सौंजा ग्राम स्थित प्रभु धाम में यह पर्व सामूहिक रूप से तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन वेदपाठ और रामचरितमानस का पाठ होता है, दूसरे दिन शोभायात्रा निकाली जाती है, और तीसरे दिन भगवान विष्णु एवं देवी वृंदा का विवाह संपन्न होता है। विवाह के पश्चात् श्रद्धालुओं में छप्पन भोग का प्रसाद वितरित किया जाता है।
महाराष्ट्र में, तुलसी विवाह के समय देवी तुलसी और भगवान विष्णु के बीच एक श्वेत वस्त्र रखा जाता है, जिसे अन्तःपट कहा जाता है। विवाह मंत्रों के उच्चारण के बाद यह वस्त्र हटाया जाता है और भक्तगण ताली बजाकर विवाह की स्वीकृति देते हैं। विवाह का सम्पूर्ण व्यय सामान्यतः कोई निःसंतान या कन्या-विहीन दम्पति वहन करते हैं, जो तुलसी के माता-पिता की भूमिका निभाते हैं। प्रसाद में गन्ना, नारियल कतली, मूँगफली और फल वितरित किए जाते हैं।
सौराष्ट्र क्षेत्र में तुलसी विवाह का आयोजन अत्यंत भव्य होता है। यहाँ वधु तुलसी के मंदिर को वर भगवान विष्णु के लालजी स्वरूप से विवाह का निमंत्रण भेजा जाता है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन भजन-कीर्तन और नृत्य के साथ भगवान की बारात निकाली जाती है। सन्तान प्राप्ति की कामना रखने वाले भक्त तुलसी माता का कन्यादान करते हैं और पूरी रात भजन-कीर्तन होता है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में यह पर्व तुलसी कल्याणम् के रूप में मनाया जाता है। यहाँ भगवान विष्णु की पूजा आँवले के पौधे के रूप में की जाती है। आँवले की शाखा को तुलसी के समीप रखकर दोनों का विधिवत् विवाह कराया जाता है। तुलसी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और भक्त भगवान विष्णु और देवी तुलसी के इस दिव्य मिलन का उत्सव बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं।
तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि यह आस्था, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है। यह पर्व हमें वैवाहिक जीवन की मर्यादाओं, प्रेम, समर्पण और देवी-देवताओं के प्रति अटूट श्रद्धा का संदेश देता है। तुलसी विवाह के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु और देवी तुलसी के इस दिव्य संगम का उत्सव मनाकर अपने जीवन में सौभाग्य और समृद्धि की कामना करते हैं।
घर पर करें तुलसी विवाह 2025 – सरल और शुभ विधि
तुलसी विवाह हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है, जो हर साल देवउठनी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। इस दिन घरों में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम (विष्णु) का विवाह बड़ी श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है। अगर आप भी इस वर्ष 2025 में घर पर तुलसी विवाह करने की योजना बना रहे हैं, तो आइए जानते हैं इसकी सरल और शुभ विधि —
- शाम के समय पूरे परिवार के सदस्य ऐसे तैयार हों जैसे किसी विवाह समारोह में जाते हैं। तुलसी का पौधा एक साफ पटिए पर आंगन, छत या पूजा स्थान के बीच में रखें और उसके ऊपर गन्ने का सुंदर मंडप सजाएं। इसके बाद तुलसी माता को लाल चुनरी ओढ़ाएं और सुहाग सामग्री अर्पित करें। तुलसी के गमले में भगवान शालिग्राम जी को स्थापित करें (ध्यान रखें कि शालिग्राम पर चावल नहीं चढ़ाए जाते, उनके स्थान पर तिल अर्पित करें)।
- अब तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी का लेप लगाएं और गन्ने के मंडप की भी पूजन करें। यदि आपको विवाह के समय बोले जाने वाले मंगलाष्टक या वैवाहिक श्लोक आते हैं, तो उनका उच्चारण करें। देवप्रबोधिनी एकादशी के अवसर पर भाजी, मूली, बेर, और आंवला जैसे फल-सब्जियाँ पूजा में चढ़ाई जाती हैं — इन्हें पहले से तैयार रखें।
- इसके बाद कपूर से आरती करें और तुलसी माता से प्रार्थना करें — “नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी।”
- आरती के बाद प्रसाद चढ़ाएं, फिर तुलसी माता की 11 बार परिक्रमा करें और प्रसाद ग्रहण करें। प्रसाद को परिवारजनों और आस-पास के लोगों में अवश्य वितरित करें।
- पूजन के अंत में सभी परिवारजन मिलकर तुलसी के पटिए को चारों ओर से उठाएं और भगवान विष्णु से जागरण का आह्वान करें — “उठो देव सांवरा, भाजी, बोर, आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।” इस आह्वान का भाव यह है कि — “हे प्रभु, अब आप जाग्रत हों, सृष्टि का संचालन पुनः प्रारंभ करें और शंकर जी को उनकी दिव्य यात्रा की अनुमति दें।”
- आप यह मंत्र उच्चारित करते हुए भी भगवान को जगा सकते हैं —
“उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥”
- इसके बाद तुलसी नामाष्टक स्तोत्र का पाठ करें —
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतद्भामाष्टकं चैव श्रोतं नामार्थसंयुतम्।
यः पठेत तां च सम्पूज्य सौऽश्रमेघफलं लभेत।।
- पूजन के अंत में माता तुलसी से यही प्रार्थना करें कि वे आपको अपनी जैसी पवित्रता, सौभाग्य और भक्ति का आशीर्वाद दें।
यह आसान विधि अपनाकर आप भी अपने घर में शुभ तुलसी विवाह 2025 का आयोजन कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद पा सकते हैं।
॥ श्री तुलसी माता जी की आरती ॥
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
सब योगों से ऊपर,
सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके,
सबकी भव त्राता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
बटु पुत्री है श्यामा,
सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,
सो नर तर जाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
हरि के शीश विराजत,
त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी,
तुम हो विख्याता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
लेकर जन्म विजन में,
आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,
सुख-संपति पाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
हरि को तुम अति प्यारी,
श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,
तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,
कृपा करो माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
तुलसी देवी और दैत्यराज जालंधर की कथा – तुलसी विवाह व्रत कथा
प्राचीन काल में एक समय भगवान शिव ने अपने दिव्य तेज को समुद्र में प्रवाहित किया। उसी तेज से एक अत्यंत ओजस्वी और शक्तिशाली बालक का जन्म हुआ, जो आगे चलकर दैत्यराज जालंधर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जालंधर ने समय के साथ एक भव्य नगरी की स्थापना की, जिसे जालंधर नगर कहा गया। बाद में उसका विवाह दैत्यराज कालनेमी की पुत्री वृंदा से हुआ, जो अत्यंत पतिव्रता और धर्मनिष्ठा वाली स्त्री थी।
समय बीतने पर जालंधर अपने बल और सामर्थ्य के अभिमान में चूर हो गया। उसने पहले देवी लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा की, किंतु चूंकि लक्ष्मी समुद्र से उत्पन्न हुई थीं, उन्होंने जालंधर को अपना भाई मान लिया। इसके बाद, अहंकार में डूबे जालंधर ने देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान किया। वहाँ उसने भगवान शिव का रूप धारण कर पार्वती के सम्मुख उपस्थित होकर छल करने का प्रयास किया, परंतु देवी पार्वती ने उसके छल को तुरंत पहचान लिया और अंतर्धान हो गईं। उन्होंने यह पूरी घटना भगवान विष्णु को बताई।
जालंधर की पत्नी वृंदा का सतीत्व उसके लिए कवच समान था। उसके पतिव्रत धर्म के प्रभाव से जालंधर न तो युद्ध में पराजित होता था और न ही मारा जा सकता था। इसीलिए भगवान शिव को जालंधर का वध करने के लिए पहले वृंदा का सतीत्व भंग करना आवश्यक था। भगवान विष्णु ने इस उद्देश्य से एक ऋषि का रूप धारण किया और उस वन में पहुँचे जहाँ वृंदा तपस्या में लीन थीं। वहाँ उन्होंने दो मायावी राक्षसों को उत्पन्न किया, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि रूप में भगवान विष्णु ने उन राक्षसों का विनाश कर वृंदा का विश्वास जीता।
वृंदा ने उनसे अपने पति जालंधर के हाल पूछे। तब भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से दो वानरों को उत्पन्न किया — एक के हाथ में जालंधर का सिर और दूसरे के हाथ में उसका धड़ था। यह दृश्य देखकर वृंदा मूर्छित हो गईं। जब उन्हें होश आया, उन्होंने ऋषि से अपने पति को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान ने अपनी माया से जालंधर का सिर और धड़ जोड़ दिए और स्वयं उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का ज्ञान नहीं हुआ, और उन्होंने भगवान विष्णु को अपने पति समझकर उनके साथ पति-पत्नी जैसा आचरण किया।
जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, उसी क्षण भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया। जब वृंदा को यह सत्य ज्ञात हुआ, तो उन्होंने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को श्राप दिया — “हे विष्णु! आपने मेरे पतिव्रत धर्म को तोड़ा है, इसलिए आप भी हृदयहीन शिला के रूप में प्रतिष्ठित होंगे।”
वृंदा के श्राप को स्वीकारते हुए भगवान विष्णु शालग्राम शिला के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। उनके शिला रूप में चले जाने से सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। तब सभी देवता वृंदा के पास पहुँचे और उनसे विष्णु को शापमुक्त करने की प्रार्थना की। वृंदा ने भगवान को शाप से मुक्त किया, परंतु स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ उनका शरीर भस्म हुआ, वहीं तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा — “हे वृंदा! तुम्हारे सतीत्व के कारण तुम मुझे देवी लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदैव मेरे समीप रहोगी। जो कोई भी मेरे शालग्राम रूप से तुम्हारा विवाह करेगा, उसे इस लोक और परलोक दोनों में महान यश और पुण्य प्राप्त होगा।”
इसी कारण से हर वर्ष कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु (शालग्राम) और देवी तुलसी के विवाह का पर्व तुलसी विवाह धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव भक्ति, सतीत्व और समर्पण का प्रतीक है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहाँ यमदूत प्रवेश नहीं करते। मृत्यु के समय यदि किसी व्यक्ति के मुख में तुलसी दल और गंगाजल रखा जाए, तो वह सभी पापों से मुक्त होकर वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति तुलसी या आँवले के वृक्ष की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर भी मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
आज भी पंजाब के जालंधर नगर को दैत्यराज जालंधर की राजधानी माना जाता है। वहीं, सती वृंदा देवी का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद्र में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर में एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। ऐसा विश्वास है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी की पूजा करता है, तो उसके सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
प्रसिद्ध “ श्री तुलसी माता जी की आरती ” – वीडियो :
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