सम्पूर्ण श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता का महत्व और अद्भुत ज्ञान – एक दिव्य धर्मग्रंथ का परिचय 🌼

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र और पूजनीय ग्रंथों में से एक है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का परम मार्गदर्शक है, जो मनुष्य को धर्म, कर्तव्य, ज्ञान और मोक्ष का सच्चा अर्थ सिखाता है। श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के आरंभ से ठीक पहले कुरुक्षेत्र के रणभूमि में अर्जुन को दिया था, जब अर्जुन धर्म और मोह के द्वंद्व में उलझा हुआ था।

गीता, महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है और इसे एक उपनिषद् स्वरूप शास्त्र माना गया है। इसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। इनमें से भगवान श्रीकृष्ण ने 574 श्लोक, अर्जुन ने 85 श्लोक, संजय ने 40 श्लोक, और धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक कहा है। यह संवाद न केवल एक योद्धा और ईश्वर के बीच का है, बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच संवाद का प्रतीक भी है।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग जैसे महान मार्गों को अत्यंत सरल, प्रेरणादायक और व्यावहारिक रूप में समझाया है। कहा जाता है कि भगवद् गीता का यह दिव्य ज्ञान लगभग 5,500 वर्ष पूर्व प्रदान किया गया था। यह ग्रंथ उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों के समान ही पूजनीय स्थान रखता है। उपनिषदों को जैसे ‘गाय’ और गीता को ‘गाय का दूध’ कहा गया है — अर्थात् उपनिषदों का सार स्वयं गीता में निहित है।

गीता में अव्यय पुरुष विद्या, अक्षर पुरुष विद्या, क्षर पुरुष विद्या और अश्वत्थ विद्या जैसे अनेक दार्शनिक सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है, जो उपनिषदों के ज्ञान का सार रूप हैं।

वास्तव में, श्रीमद्भगवद् गीता का महत्व शब्दों में वर्णन करना असंभव है। यह एक परम रहस्यमय और दिव्य ग्रंथ है, जिसमें संपूर्ण वेदों और उपनिषदों का सार समाहित है। इसकी संस्कृत भाषा अत्यंत सरल और मधुर है, जिसे थोड़ा अभ्यास करने पर कोई भी समझ सकता है, किंतु इसके भाव और गहराई को समझने में एक जीवन भी कम पड़ सकता है। हर बार गीता पढ़ने पर नए विचार और आध्यात्मिक अनुभूतियाँ प्राप्त होती हैं, जिससे यह सदैव नवीन और प्रेरणादायक बनी रहती है।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के प्रत्येक श्लोक में जीवन के हर पहलू का उत्तर दिया है — चाहे वह कर्म हो, भक्ति हो या आत्मा का रहस्य। यही कारण है कि गीता का एक-एक शब्द दिव्य उपदेश से परिपूर्ण है।

महर्षि वेदव्यास जी ने भी कहा है –

“गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता॥”

अर्थात् – “गीता का गहन अध्ययन कर उसके भावों को हृदय में धारण करना ही मनुष्य का प्रमुख कर्तव्य है, क्योंकि यह स्वयं भगवान पद्मनाभ (श्रीविष्णु) के मुखारविंद से प्रकट हुई है। फिर अन्य शास्त्रों की विस्तार में क्या आवश्यकता?”

भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गीता के महत्व को अध्याय 18 के श्लोक 68 से 71 में बताया है — जहाँ उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति श्रद्धा और प्रेम से गीता का प्रचार, अध्ययन या श्रवण करता है, वह निश्चित रूप से परम कल्याण प्राप्त करता है।

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता का दिव्य ज्ञान – आत्मा, कर्म और मोक्ष का सार 🌼

श्रीमद्भगवद् गीता का ज्ञान सबसे पहले स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान के प्रतीक सूर्यदेव को प्रदान किया था। इसका अर्थ यह है कि यह दिव्य उपदेश पृथ्वी की उत्पत्ति से भी पहले अस्तित्व में था। गीता का ज्ञान शाश्वत है, जो हर युग, हर परिस्थिति और हर जीवन के लिए प्रासंगिक बना रहता है।

भगवद गीता सम्पूर्ण जीवन का सार प्रस्तुत करती है। मनुष्य के मन में सदैव यह जिज्ञासा रहती है — “मैं कौन हूँ?”, “यह शरीर क्या है?”, “क्या मेरा अस्तित्व केवल इस शरीर तक सीमित है?”, “शरीर के त्याग के बाद क्या आत्मा का अस्तित्व रहता है?”, “जीवात्मा कहाँ जाती है और इस जन्म का उद्देश्य क्या है?” — इन सभी रहस्यमय प्रश्नों के उत्तर भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के धर्मसंवाद में सरल, तर्कसंगत और आध्यात्मिक रूप में दिए हैं।

भगवान बताते हैं कि इस शरीर में जीवात्मा के निवास के कारण ही पंचमहाभूतों और अन्य 36 तत्त्वों का संयोजन कार्य करता है। जीवात्मा इस शरीर का स्वामी है, किंतु इसके अतिरिक्त एक तीसरा तत्व — परम पुरुष — भी है, जो परम चेतना का प्रतिनिधि है। जब यह परम पुरुष प्रकट होता है, तब शरीर और जीवात्मा दोनों का अंत हो जाता है। यही परम स्थिति (परम सत्) ईश्वर की सर्वोच्च अवस्था कहलाती है।

भगवद गीता में बताया गया है कि जब शरीर नष्ट होता है, तो जीवात्मा अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में पुनर्जन्म लेती है। कर्म ही उसके भविष्य और गति का निर्धारण करते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण ने कर्म, ज्ञान और भक्ति को संतुलित रूप से अपनाने का संदेश दिया है।

गीता का सार यह सिखाता है कि बुद्धि को आत्मा में स्थिर रखना चाहिए और कर्म को निष्काम भाव से करते रहना चाहिए। श्रीकृष्ण बार-बार कहते हैं कि आत्मा को स्थिर रखकर, अपने स्वाभाविक कर्मों को श्रद्धा और संतुलन के साथ करना ही सच्चा योग है। यही मार्ग मनुष्य को दुखों से मुक्त कर मोक्ष की प्राप्ति तक पहुँचाता है।

श्रीमद्भगवद् गीता में ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग और बुद्धियोग जैसे मार्गों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन सभी योगों का अंतिम उद्देश्य मनुष्य की बुद्धि को भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित करना है। जब मनुष्य अपने कर्मों में आसक्ति त्यागकर केवल ईश्वर की इच्छा में लीन हो जाता है, तब अनासक्त योग या निष्काम कर्मयोग की सिद्धि प्राप्त होती है।

गीता का यह अद्भुत संदेश केवल एक धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है — जो सिखाता है कि कैसे कर्म करते हुए भी मनुष्य मुक्त रह सकता है, और कैसे आत्मा के माध्यम से परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है।

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता की 18 ज्ञानमयी शिक्षाएँ – जीवन के सत्य और धर्म का सार 🌼

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह एक जीवन-दर्शन है जो मनुष्य को आत्मज्ञान, कर्म और भक्ति के माध्यम से मोक्ष की ओर ले जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वे आज भी हर व्यक्ति के जीवन में उतने ही सार्थक और प्रेरणादायक हैं। आइए जानते हैं गीता की 18 प्रमुख शिक्षाएँ, जो हमारे जीवन को सही दिशा देती हैं –

🌸 1. सच्चा सुख भीतर है

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं — सुख और आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करते हैं, परंतु अज्ञानवश वह इसे बाहरी वस्तुओं, संबंधों या भौतिक सुखों में खोजता रहता है।

🌿 2. सच्ची उपासना मन से करें

ईश्वर की पूजा केवल शरीर से नहीं, बल्कि मन और भावना से करनी चाहिए। जब भक्ति सच्चे प्रेम के साथ की जाती है, तो भगवान स्वयं अपने भक्त के प्रेम में बंध जाते हैं।

🔥 3. वासना ही पुनर्जन्म का कारण है

मनुष्य की वासना, इच्छाएँ और आसक्तियाँ ही उसके पुनर्जन्म का कारण बनती हैं। जो व्यक्ति इनसे मुक्त हो जाता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से परे चला जाता है।

🌼 4. इंद्रियों का नियंत्रण आवश्यक है

जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रखता, उसके जीवन में अशांति, विकार और पीड़ा बनी रहती है। संयम ही सच्चा बल है।

🪔 5. सत्संग का महत्व

धैर्य, स्नेह, सेवा और सदाचार जैसे गुण केवल सत्संग और संतों के संग से ही विकसित होते हैं।

💧 6. मन को भी शुद्ध करें

जैसे गंदे वस्त्र बदल दिए जाते हैं, वैसे ही मन के मलिन विचारों को भी त्यागना चाहिए। स्वच्छ हृदय ही ईश्वर का निवासस्थान है।

🌙 7. पाप का फल अवश्य मिलता है

जो व्यक्ति जवानी में अधर्म करता है, वह बुढ़ापे में पश्चाताप और बेचैनी से ग्रस्त रहता है।

🐄 8. गौसेवा से भगवान प्रसन्न होते हैं

जिसे धन की प्राप्ति होती है, उसे गाय की सेवा और पालन अवश्य करना चाहिए — यह भगवान को अति प्रिय है।

9. कलियुग के दोष

जुआ, मदिरा, परस्त्री गमन, असत्य, हिंसा, लोभ और निर्दयता — इन्हीं में कलियुग का निवास है। अतः इनसे सदैव दूर रहना चाहिए।

🌻 10. सच्चे गुरु का मिलना

जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति में निरंतर प्रयास करता है, उसे योग्य सद्गुरु (सच्चा मार्गदर्शक) अवश्य प्राप्त होता है।

💖 11. ईश्वर ही सच्चा साथी है

मनुष्य को अपने हृदय से यह समझना चाहिए कि ईश्वर ही उसका एकमात्र सच्चा सहारा है। इस सृष्टि में कोई भी स्थायी नहीं है।

🌺 12. त्याग में ही स्थायी सुख है

भोग में केवल क्षणिक आनंद है, जबकि त्याग और संयम में स्थायी शांति और संतोष मिलता है।

🌷 13. सत्संग ईश्वर की कृपा है

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं — सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है, जबकि कुसंगति मनुष्य के अपने विकृत विचारों का परिणाम होती है।

🔔 14. लोभ और मोह पाप के जनक हैं

लोभ और मोह पाप के माता-पिता कहे गए हैं, और लोभ तो सभी पापों का मूल कारण है।

🌼 15. स्त्री का धर्म

श्रीकृष्ण कहते हैं — स्त्रियों को प्रतिदिन तुलसी और माँ पार्वती की पूजा करनी चाहिए, जिससे सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

🕉️ 16. मन और बुद्धि पर नियंत्रण रखें

मनुष्य को अपने मन और बुद्धि पर पूर्ण विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये बार-बार भ्रमित करते हैं। स्वयं को निर्दोष मानना सबसे बड़ा अहंकार है।

👩‍❤️‍👨 17. पति-पत्नी का पवित्र संबंध

जब पति-पत्नी अपने संबंध को पवित्रता और श्रद्धा से निभाते हैं, तब भगवान स्वयं पुत्र रूप में उनके घर आने की इच्छा रखते हैं।

🌞 18. भगवान की परीक्षा

भगवान हर व्यक्ति को उसके कर्म, विचार और प्रेम की कसौटी पर परखते हैं। इसलिए सदैव दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा और सच्चाई का भाव रखना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion):
श्रीमद्भगवद् गीता की ये 18 शिक्षाएँ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शक हैं। यदि इन्हें जीवन में अपनाया जाए, तो मनुष्य दुखों से मुक्त होकर सच्चे आनंद और आत्मशांति की प्राप्ति कर सकता है।

नीचे दिए गए तालिका में गीता के 18 अध्यायों के नाम और प्रत्येक अध्याय में श्लोकों की संख्या दी गयी है।
अध्यायो की संख्या अध्यायो के नाम श्लोको की संख्या
अध्याय – १ अर्जुनविषाद योग ४६ श्लोक
अध्याय – २ सांख्य योग ७२ श्लोक
अध्याय – ३ कर्म योग ४३ श्लोक
अध्याय – ४ ज्ञानकर्मसंन्यास योग ४२ श्लोक
अध्याय – ५ कर्मसंन्यास योग २९ श्लोक
अध्याय – ६ आत्मसंयम योग ४७ श्लोक
अध्याय – ७ ज्ञानविज्ञान योग ३० श्लोक
अध्याय – ८ अक्षरब्रह्म योग २८ श्लोक
अध्याय – ९ राजविद्या राजगुह्य योग ३४ श्लोक
अध्याय – १० विभूति योग ४२ श्लोक
अध्याय – ११ विश्वरूपदर्शन योग ५५ श्लोक
अध्याय – १२ भक्तियोग २० श्लोक
अध्याय – १३ क्षेत्रक्षत्रज्ञविभागयोग ३५ श्लोक
अध्याय – १४ गुणत्रयविभाग योग २७ श्लोक
अध्याय – १५ पुरुषोत्तम योग २० श्लोक
अध्याय – १६ दैवासुरसम्पद्विभाग योग २४ श्लोक
अध्याय – १७ श्रद्धात्रयविभाग योग २८ श्लोक
अध्याय – १८ मोक्षसंन्यासयोग ७८ श्लोक

सम्पूर्ण श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता अध्याय – Sampurn Shrimad Bhagavad Geeta Adhyay

पहला अध्याय अर्जुनविषादयोग

दूसरा अध्यायः सांख्ययोग

तीसरा अध्यायः कर्मयोग

चौथा अध्याय ज्ञान कर्मसन्यास योग

पाँचवाँ अध्यायः कर्मसंन्यासयोग

छठा अध्यायः आत्मसंयमयोग

सातवाँ अध्यायः ज्ञानविज्ञानयोग

आठवाँ अध्यायः अक्षरब्रह्मयोग

नौवाँ अध्यायः राजविद्याराजगुह्ययोग

दसवाँ अध्यायः विभूतियोग

ग्यारहवाँ अध्यायः विश्वरूपदर्शनयोग

बारहवाँ अध्यायः भक्तियोग

तेरहवाँ अध्यायः क्षेत्रक्षत्रज्ञविभागयोग

चौदहवाँ अध्यायः गुणत्रयविभागयोग

पंद्रहवाँ अध्यायः पुरुषोत्तमयोग

सोलहवाँ अध्यायः दैवासुरसंपद्विभागयोग

सत्रहवाँ अध्यायः श्रद्धात्रयविभागयोग

अठारहवाँ अध्यायः मोक्षसंन्यासयोग

श्रीमद्भगवद्गीता सार – जीवन का अद्भुत सत्य

जो कुछ भी हुआ, वह शुभ के लिए ही हुआ। जो इस समय घटित हो रहा है, वह भी शुभ ही है, और जो आने वाले समय में होगा, वह भी निश्चित रूप से अच्छे के लिए ही होगा। तो फिर, हे मानव! तुम क्यों शोक करते हो? तुम्हारा ऐसा क्या चला गया जिसे तुम अपना कहकर रो रहे हो? तुम क्या लेकर इस संसार में आए थे, जो अब खो दिया? और क्या तुमने स्वयं कुछ उत्पन्न किया था, जिसका अब अंत हो गया?

इस धरती पर जो भी तुमने पाया है, वह यहीं से लिया गया है और जो कुछ दिया है, वह भी इसी संसार को लौटाया है। आज जो वस्तुएँ, संबंध, या परिस्थितियाँ तुम्हारे पास हैं, वे पहले किसी और की थीं — और भविष्य में किसी और के पास चली जाएँगी। यही जीवन का अनंत चक्र है, यही सृष्टि का नियम है।

परिवर्तन ही इस संसार का शाश्वत सत्य है। जब मनुष्य इस सत्य को समझ लेता है, तब मोह और दुख स्वतः मिट जाते हैं। श्रीकृष्ण का यह गीता उपदेश हमें यह सिखाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है — न सुख, न दुख, न सफलता, न असफलता। जो कुछ भी हो रहा है, वह ईश्वर की योजना का ही हिस्सा है। इसलिए चिंता, भय या पछतावे में नहीं, बल्कि समत्व और शांति में जीना ही सच्चा धर्म है।

👉 गीता सार का संदेश:
हर परिस्थिति को ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करें, क्योंकि हर परिवर्तन किसी न किसी अच्छे हेतु होता है। यही भगवद्गीता का शाश्वत संदेश है — “परिवर्तन ही संसार का नियम है।”

🙏 अंत में:
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