क्यों मनाते हैं गोवत्स द्वादशी? गोवत्स द्वादशी का महत्व
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन पूर्ण रूप से गौमाता को समर्पित होता है, इसलिए इसे नन्दिनी व्रत भी कहा जाता है। गोवत्स द्वादशी, धनतेरस से एक दिन पूर्व आती है और इसका विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस दिन गायों और उनके बछड़ों की विधिवत पूजा की जाती है। पूजा के बाद उन्हें प्रेमपूर्वक गेहूँ से बने उत्पाद खिलाए जाते हैं। व्रत करने वाले भक्त इस दिन गेहूँ और दूध से बने किसी भी पदार्थ का सेवन नहीं करते हैं, क्योंकि यह दिन गौमाता के प्रति पूर्ण समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में नन्दिनी गौ को एक दिव्य और पवित्र गाय माना गया है, जो सभी देवताओं का निवास स्थान और मातृ स्वरूप मानी जाती है। महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी को वसु बारस के नाम से जाना जाता है और इसे दीपावली पर्व की शुरुआत माना जाता है। यह पावन उत्सव गाय की महिमा, मातृत्व और उसकी करुणा का प्रतीक है।
गोवत्स द्वादशी व्रत का विशेष महत्व माताओं के लिए बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं इस दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ गौमाता और बछड़े की पूजा करती हैं, उन्हें संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं, जो स्त्रियाँ संतान की प्राप्ति की कामना रखती हैं, वे भी यह व्रत करती हैं ताकि उन्हें गौमाता की कृपा प्राप्त हो।
शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन गाय की सेवा, पूजन और व्रत करने से व्यक्ति को गाय के प्रति हुए अज्ञानवश अपराधों और पापों से मुक्ति मिलती है। गोवत्स द्वादशी न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में गौ-सेवा, करुणा और मातृत्व के शाश्वत मूल्यों का संदेश भी देती है।
गोवत्स द्वादशी कब है?
गोवत्स द्वादशी 17 अक्टूबर, 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन का प्रदोषकाल शाम 5:29 बजे से लेकर 7:59 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि लगभग 2 घंटे 30 मिनट है। द्वादशी तिथि की शुरुआत 17 अक्टूबर, 2025 की सुबह 11:12 बजे होगी और यह तिथि 18 अक्टूबर, 2025 की दोपहर 12:18 बजे तक रहेगी। श्रद्धालु इस पूरे समय का ध्यान रखते हुए विधिपूर्वक व्रत और पूजा कर सकते हैं।
अन्य शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:18 बजे से 5:07 बजे तक
- प्रातः संध्या: सुबह 4:43 बजे से 5:57 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:20 बजे से दोपहर 12:06 बजे तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 1:38 बजे से 2:24 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:29 बजे से 5:54 बजे तक
- सायाह्न संध्या: शाम 5:29 बजे से 6:44 बजे तक
- अमृत काल: सुबह 11:26 बजे से दोपहर 1:07 बजे तक
- निशिता मुहूर्त: रात 11:18 बजे से 12:08 बजे तक, 18 अक्टूबर
- यह सभी मुहूर्त गोवत्स द्वादशी या अन्य पवित्र कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
गोवत्स द्वादशी व्रत की पूजन सामग्री, विधि और नियम
गोवत्स द्वादशी व्रत हिंदू धर्म का अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी पर्व है, जो गौमाता और उनके बछड़े की आराधना के लिए समर्पित है। इस दिन की पूजा में शुद्धता, श्रद्धा और सच्ची भक्ति का विशेष महत्व होता है। सही पूजन सामग्री और विधि से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। नीचे दी गई सामग्री और विधि का पालन करके आप इस व्रत को विधिपूर्वक संपन्न कर सकते हैं।
गोवत्स द्वादशी पूजन सामग्री (Govatsa Dwadashi Puja Samagri)
पूजा आरंभ करने से पहले निम्न सामग्री को एकत्र कर लें —
- साफ पानी — गाय और बछड़े को स्नान कराने के लिए।
- नए वस्त्र या कपड़ा — गौमाता और बछड़े को ओढ़ाने हेतु।
- फूलों की माला — सजावट और अर्पण के लिए।
- कुमकुम, हल्दी और अक्षत (चावल) — तिलक लगाने हेतु।
- बाजरा या मूंग — तिलक सामग्री के रूप में।
- हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने — गौमाता को भोग अर्पित करने के लिए।
- गुड़ और मीठी रोटी — पूजा के प्रसाद के रूप में।
- दीपक, घी या तेल, रूई की बत्ती — आरती के लिए।
- पूजन थाली और जल का कलश — विधिवत पूजन हेतु।
- धूप, अगरबत्ती — वातावरण को पवित्र और सुगंधित करने के लिए।
- फल और मिठाई — नैवेद्य (भोग) के लिए।
गोवत्स द्वादशी पूजा विधि (Govatsa Dwadashi Puja Vidhi)
- प्रातःकाल स्नान कर साफ और पवित्र वस्त्र धारण करें।
- व्रत का संकल्प लें और मन को शांत करें।
- गौमाता और बछड़े को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- स्नान के बाद उन्हें नए वस्त्र ओढ़ाएं और फूलों की माला पहनाएं।
- उनके माथे पर कुमकुम, हल्दी और बाजरे से तिलक करें।
- यदि बाजरा उपलब्ध न हो, तो अक्षत या मूंग का उपयोग किया जा सकता है।
- गौमाता और बछड़े को हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने, गुड़ और मीठी रोटी श्रद्धा से खिलाएं।
- दीपक जलाकर गौमाता की आरती करें।
- आरती के बाद गौमाता को प्रणाम करें, क्षमा याचना करें और उनकी तीन या सात बार परिक्रमा करें।
- यदि आपके घर में गाय-बछड़ा न हो, तो आसपास की गायों की पूजा करें।
- यदि यह भी संभव न हो, तो गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की प्रतिमा बनाकर पूजन करें।
गोवत्स द्वादशी व्रत के नियम (Govatsa Dwadashi Vrat Rules)
- व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन केवल फल, कंद-मूल और बाजरे से बना भोजन ही ग्रहण करती हैं।
- इस दिन चाकू से कटी हुई चीजें पकाना या खाना वर्जित माना जाता है।
- गेहूँ और गेहूँ से बने खाद्य पदार्थों का सेवन पूर्ण रूप से निषेध है।
- गाय के दूध, दही, घी या दूध से बने पदार्थों का सेवन इस दिन नहीं किया जाता।
- पूरे दिन सात्त्विकता, श्रद्धा और संयम का पालन करना आवश्यक है।
गोवत्स द्वादशी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह गौमाता के प्रति सम्मान, करुणा और कृतज्ञता का प्रतीक है। इस दिन की पूजा से जीवन में समृद्धि, सुख-शांति और संतान सुख की प्राप्ति होती है, साथ ही पापों से मुक्ति का आशीर्वाद भी मिलता है।
गोवत्स द्वादशी व्रत के अद्भुत लाभ और महत्व
गोवत्स द्वादशी व्रत का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत गहरा है। यह व्रत मनुष्य को करुणा, कृतज्ञता और धर्म के मार्ग पर अग्रसर करता है। इस पावन व्रत के पालन से व्यक्ति को सांसारिक और आत्मिक, दोनों ही प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं गोवत्स द्वादशी व्रत से मिलने वाले प्रमुख लाभ —
- शास्त्रों में वर्णित है कि गोवत्स द्वादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को गो-अनादर या गोहत्या जैसे अज्ञानजन्य पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और पुण्य, शांति व सदाचार के मार्ग पर अग्रसर करता है।
- गोवत्स द्वादशी के दिन गौमाता और उनके बछड़े की पूजा करने से संतान की आयु लंबी होती है और वह हर प्रकार के संकटों से सुरक्षित रहती है। जो माताएं सच्चे मन और श्रद्धा से यह व्रत करती हैं, उनके बच्चों का जीवन सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि से परिपूर्ण होता है।
- गाय की सेवा और पूजा से व्यक्ति को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। वेदों में कहा गया है — “गावो विश्वस्य मातरः”, अर्थात गाय संपूर्ण सृष्टि की माता है। गौमाता की सेवा करने से ईश्वर की कृपा, घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
- जिन महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पाई है, उनके लिए यह व्रत अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। भक्ति और विधि-विधान से गोवत्स द्वादशी का व्रत करने पर देवी गौमाता की कृपा से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
- धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ गोवत्स द्वादशी व्रत करता है, उसे स्वर्गलोक और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत आत्मा को शुद्ध कर उसे ईश्वर से एकाकार करने का माध्यम बनता है।
- गोवत्स द्वादशी के दिन गौमाता को चारा, अन्न, वस्त्र या दान अर्पित करने से घर में धन, अन्न और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। इस दिन किया गया दान व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सौभाग्य के द्वार खोलता है।
गोवत्स द्वादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि गौमाता के प्रति आभार, श्रद्धा और धर्म-संवर्धन का प्रतीक है। यह पर्व व्यक्ति को करुणा, आस्था और पुण्य के मार्ग पर ले जाता है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और आत्मिक शांति की वृद्धि होती है। जो भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत का पालन करता है, उसके जीवन में हर दिशा में मंगल और कल्याण की प्राप्ति होती है।
गोवत्स द्वादशी पर किए जाने वाले शुभ उपाय और उनके चमत्कारी लाभ
गोवत्स द्वादशी का दिन अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। इस दिन किए गए छोटे-छोटे उपाय जीवन में बड़े परिवर्तन लाने की शक्ति रखते हैं। माना जाता है कि इस पावन अवसर पर गौमाता और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं इस दिव्य दिन पर किए जाने वाले कुछ प्रमुख शुभ उपाय (Govatsa Dwadashi Upay) और उनके आध्यात्मिक लाभ —
- शास्त्रों के अनुसार, गाय के चरणों की धूल लगाना अत्यंत शुभ माना गया है। इससे ग्रहदोष शांत होते हैं, सौभाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में मंगलकारी फल प्राप्त होते हैं।
- इस दिन गाय को हरा चारा, गुड़ या मीठी रोटी खिलाना अत्यंत शुभ माना गया है। इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है, माता लक्ष्मी का वास बना रहता है और दरिद्रता दूर होती है। आर्थिक स्थिति में भी सुधार आता है।
- गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की सात बार परिक्रमा करें और अपनी मनोकामना व्यक्त करें। इससे संतान-सुख, पारिवारिक शांति और इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
- इस दिन श्रद्धापूर्वक “ॐ गौमातायै नमः” या “ॐ नमो गोविंदाय” मंत्र का 108 बार जाप करें। इससे मन की अशांति और नकारात्मक विचार दूर होते हैं तथा जीवन में स्थिरता, संतोष और सुख की प्राप्ति होती है।
- गाय और बछड़े को कुमकुम, हल्दी और अक्षत से तिलक लगाएं और दीपक जलाकर आरती करें। इस उपाय से घर में सौभाग्य, शुभता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है।
- यदि संभव हो तो गोशाला में चारा, गुड़, वस्त्र या गौसेवा हेतु धन अर्पित करें। यह पुण्य कर्म पूर्व जन्मों के पापों को मिटाकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है और जीवन में शांति व समृद्धि लाता है।
- शाम के समय तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु और गौमाता का ध्यान करें। इस उपाय से वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ती है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सुख-शांति का वास होता है।
गोवत्स द्वादशी पर किए गए ये सरल और पवित्र उपाय न केवल गौमाता की कृपा दिलाते हैं, बल्कि जीवन में धन, स्वास्थ्य, संतान सुख और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करते हैं। यह दिन हमें गौ-सेवा, करुणा और कृतज्ञता के महत्व की याद दिलाता है, जिससे जीवन में हर दिशा में सुख और समृद्धि का संचार होता है।
गोवत्स द्वादशी की कथा
प्राचीन काल में एक राजा था जिसकी दो रानियां थीं – सीता और गीता। राजा के पास एक गाय और एक भैंस थी। रानी सीता को भैंस अत्यंत प्रिय थी, जबकि रानी गीता गाय को बहुत स्नेह करती थी। कुछ समय बाद गाय ने एक प्यारे बछड़े को जन्म दिया। एक दिन ईर्ष्या के वशीभूत होकर भैंस ने रानी सीता को गाय और उसके बछड़े के विरुद्ध झूठी बातें कह दीं। रानी सीता ने उन बातों पर विश्वास कर लिया और क्रोध में आकर निर्दोष बछड़े की हत्या कर दी। फिर उसने बछड़े को गेहूं के खेत में दबा दिया।
संध्या के समय जब राजा भोजन के लिए बैठा, तो महल का वातावरण अचानक भयावह हो गया। चारों ओर मांस और रक्त दिखाई देने लगा। यहां तक कि परोसा हुआ भोजन भी अपवित्र हो गया। तभी पूरे राज्य में खून की वर्षा शुरू हो गई। राजा घबराकर इस अनहोनी का कारण समझने की कोशिश करने लगा। तभी आकाशवाणी हुई , उसमें बताया गया कि यह सब रानी सीता के पाप का परिणाम है। राजा ने दुखी होकर समाधान पूछा। तब आकाशवाणी से संदेश मिला कि अगले दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि है। यदि उस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत किया जाए और गाय व बछड़े की पूजा की जाए, तो मृत बछड़ा पुनः जीवित हो जाएगा और पापों से मुक्ति भी प्राप्त होगी।
राजा ने वैसा ही किया , द्वादशी के दिन पूरे विधि-विधान से गोवत्स द्वादशी व्रत रखा और गाय-बछड़े की पूजा की। परिणामस्वरूप, बछड़ा जीवित हो गया और राज्य में पुनः शांति स्थापित हुई। इसके बाद राजा ने आदेश दिया कि हर वर्ष इसी तिथि पर गोवत्स द्वादशी व्रत मनाया जाए। तब से लेकर आज तक यह पवित्र परंपरा श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाई जा रही है।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि गाय का पूजन और संरक्षण न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह पापों से मुक्ति और सुख-समृद्धि का मार्ग भी प्रदान करता है।
निष्कर्ष : गोवत्स द्वादशी का आध्यात्मिक संदेश
गोवत्स द्वादशी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि जीवन में करुणा, कृतज्ञता और धर्मपालन की भावना जागृत करने वाला दिव्य पर्व है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि धर्म, समृद्धि और मातृत्व का प्रतीक है। गोमाता और उनके बछड़े की पूजा से जीवन में शुद्धता, संतुलन और ईश्वर की कृपा का संचार होता है।
इस व्रत का पालन करने से जहां एक ओर पापों से मुक्ति और आत्मशुद्धि प्राप्त होती है, वहीं दूसरी ओर संतान-सुख, आरोग्य और समृद्धि का वरदान भी मिलता है। गोवत्स द्वादशी हमें यह सिखाती है कि जब हम प्रकृति और जीवों के प्रति प्रेम, संवेदना और सम्मान का भाव रखते हैं, तो हमारा जीवन स्वतः ही शुभता और सौभाग्य से भर जाता है।
इसलिए, श्रद्धा और भक्ति के साथ गोवत्स द्वादशी का व्रत करना न केवल धार्मिक दृष्टि से फलदायी है, बल्कि यह मानवता, धर्म और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है।
प्रसिद्ध “गोवत्स द्वादशी कथा” – वीडियो :
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