🌺 हनुमान चालीसा सार – अर्थ, भाव और महत्व
हनुमान चालीसा भगवान श्री हनुमान जी की महिमा का अद्भुत ग्रंथ है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा। इसमें 40 चौपाइयों के माध्यम से हनुमान जी के रूप, गुण, पराक्रम और उनके दिव्य कार्यों का वर्णन किया गया है। यह चालीसा न केवल भक्ति का मार्ग दिखाती है, बल्कि जीवन की हर कठिनाई से रक्षा करने का आध्यात्मिक कवच भी है। हनुमान जी को ज्ञान, बुद्धि, शक्ति और भक्ति का सागर कहा गया है। वे श्रीराम के अनन्य भक्त और तीनों लोकों में विख्यात देवता हैं। हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु वंदना से होती है, जिसमें अपने मन को शुद्ध कर प्रभु के गुणों का स्मरण करने की प्रेरणा दी गई है। हनुमान जी अजर-अमर हैं, उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त है। वे जब तक चाहें, पृथ्वी पर अपने भक्तों के लिए विद्यमान रह सकते हैं। यही कारण है कि उनका प्रभाव सभी युगों में रहा है और आगे भी रहेगा। पूरे ब्रह्मांड में वे ऐसे देवता हैं जिनकी भक्ति से हर प्रकार का संकट तुरंत दूर हो जाता है।
चालीसा के पहले भाग में हनुमान जी के स्वरूप का वर्णन है — वे सुवर्ण के समान देह वाले, बज्र जैसे बलवान, कानों में कुण्डल धारण किए हुए और ध्वजा एवं वज्र धारण करने वाले वीर देवता हैं। वे शिव के अवतार और माता अंजनी के पुत्र हैं। इसके बाद उनके अद्भुत कार्यों का वर्णन है — वे श्रीराम के संदेशवाहक बनकर लंका गए, वहाँ सीता माता को प्रभु का संदेश दिया और लंका को दहन कर रावण की शक्ति को चुनौती दी। उन्होंने लक्ष्मण के लिए संजीवनी पर्वत लाकर जीवनदान दिया। उनके इस पराक्रम से प्रसन्न होकर श्रीराम ने उन्हें अपने समान प्रिय बताया और कहा कि उनका नाम मात्र लेने से सभी संकट दूर हो जाते हैं।
हनुमान जी को ऐसा देवता माना गया है जो अपने भक्तों के कष्टों को हरते हैं और जीवन में साहस, आत्मविश्वास और शांति का संचार करते हैं। चालीसा में बताया गया है कि जो भी श्रद्धा और विश्वास से हनुमान जी का नाम लेता है, उसके पास भूत-प्रेत, रोग, भय या कोई नकारात्मक शक्ति नहीं टिकती। यह भी कहा गया है कि हनुमान जी के भजन और स्मरण से भगवान श्रीराम की कृपा सहज मिलती है। जो भक्त नित्य हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह जीवन में सफलता, सुख और मानसिक बल प्राप्त करता है। हनुमान जी अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के दाता हैं, इसलिए वे अपने भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं।
अंत में तुलसीदास जी कहते हैं कि जो भक्त नियमित श्रद्धा से हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और वह जीवन में सभी संकटों से मुक्त होकर परम शांति प्राप्त करता है। हनुमान जी की कृपा से भक्ति, बुद्धि, बल और विजय — ये चारों फल स्वतः मिल जाते हैं।
हनुमान चालीसा लिखित में (Hanuman Chalisa Lyrics)
॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०॥
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
हनुमान चालीसा की रचना : ऐतिहासिक प्रसंग
हनुमान चालीसा का रचनाकाल भारतीय भक्ति साहित्य और संत परंपरा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसकी रचना महान संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। विशेष बात यह है कि यह अमर काव्यकृति न तो किसी आश्रम में रची गई और न ही किसी राजदरबार में, बल्कि मुगल सम्राट अकबर की जेल में इसका सृजन हुआ।
यह घटना भारत में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल की है और तुलसीदास जी की भक्ति, आस्था और रामनाम की शक्ति को दर्शाती है।
एक दिन एक महिला पूजा से लौटते समय तुलसीदास जी के चरणों में झुककर आशीर्वाद प्राप्त करती है। तुलसीदास जी ने उसे प्रसन्नता का आशीर्वाद दिया, जिसके बाद वह रोने लगी और बोली कि उसके पति अभी-अभी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। उसने विनती की कि तुलसीदास जी, जो श्रीराम के परम भक्त हैं, कृपया उसके पति को जीवित कर दें। तुलसीदास जी तनिक भी विचलित नहीं हुए और पूर्ण विश्वास के साथ उपस्थित लोगों से राम नाम जपने का आग्रह किया। सभी ने सामूहिक रूप से राम का नाम जपा, जिसके प्रभाव से मृत व्यक्ति पुनः जीवित हो गया।
इस चमत्कार की खबर अकबर तक पहुँची। उसने तुलसीदास जी को दरबार में बुलाकर बड़ी सभा में उनसे कोई चमत्कार दिखाने को कहा। तुलसीदास जी ने स्पष्ट कहा कि वे कोई चमत्कारी संत नहीं, बल्कि केवल श्रीराम के भक्त हैं। यह सुनकर अकबर क्रोधित हो गया और सैनिकों को आदेश दिया कि तुलसीदास जी को लोहे की बेड़ियों से बाँधकर कारागार में डाल दिया जाए।
जेल में भी तुलसीदास जी ने अपना विश्वास नहीं छोड़ा। वहीं उन्होंने हनुमान चालीसा की रचना की और लगातार 40 दिनों तक उसका पाठ किया। चालीसवें दिन एक चमत्कार हुआ, अकबर के महल पर हजारों बंदरों ने धावा बोल दिया। इस अप्रत्याशित घटना से महल में अफरा-तफरी मच गई। बुद्धिमान अकबर ने तुरंत समझ लिया कि यह घटना तुलसीदास जी की भक्ति और प्रभु की कृपा का परिणाम है। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी से क्षमा माँगी, उन्हें सम्मानपूर्वक जेल से मुक्त किया और जीवनभर उनका मित्र बना रहा।
इस प्रकार, हनुमान चालीसा न केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी दर्शाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी सच्चा भक्त अपने ईश्वर और साधना के प्रति अडिग रहता है। यही कारण है कि हनुमान चालीसा का पाठ आज भी हर युग में संकट हरने वाला और मनोबल बढ़ाने वाला माना जाता है।
कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने तुलसीदास जी को आशीर्वाद दिया था कि कलियुग में जो भी भक्त सच्चे भाव से हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, उसके सारे संकट दूर हो जाएंगे। हनुमान चालीसा के छंद भगवान राम की महिमा, हनुमान जी की निःस्वार्थ सेवा, साहस और भक्ति को अमर कर देते हैं। इसमें उनके महान कार्यों का वर्णन है, जैसे लक्ष्मण जी के उपचार हेतु संजीवनी पर्वत लाना, समुद्र पार करके सीता माता की खोज करना और श्रीराम के लिए असाधारण पराक्रम दिखाना।
प्रसिद्ध “श्री हनुमान चालीसा” वीडियो :
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जय बजरंगबली! जय श्री हनुमान जी महाराज! 🚩