मां कुष्मांडा – Kushmanda Devi

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त विधिपूर्वक मां दुर्गा की आराधना करते हैं और उन्हें मिठाई, फल व मालपुआ अर्पित करते हैं। मान्यता है कि मां कुष्मांडा की उपासना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां कुष्मांडा के नाम की संरचना तीन शब्दों से मिलकर बनी है—‘कु’ अर्थात् छोटा, ‘उस्मा’ जिसका अर्थ ऊर्जा है, और ‘अंडा’ यानी ब्रह्मांड या गोल आकृति। इस प्रकार, मां कुष्मांडा का नाम दर्शाता है कि वे ऊर्जा का एक छोटा, लेकिन अत्यंत शक्तिशाली स्रोत हैं, जिनसे सृष्टि का आरंभ हुआ। देवी भागवत पुराण में उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि उन्होंने अपनी हल्की मुस्कान से सृष्टि की रचना की थी, इसलिए उन्हें “कुष्मांडा” नाम दिया गया। जब ब्रह्मांड अंधकार में था, तब मां कुष्मांडा की हंसी से उसमें प्रकाश का संचार हुआ। उनमें सूर्य की तीव्र ऊर्जा सहन करने की अपार शक्ति है, इसलिए उनकी उपासना से भक्तों को ऊर्जा और बल प्राप्त होता है।

मां कुष्मांडा को अष्टभुजा धारी देवी माना जाता है और वे परमेश्वरी स्वरूप में पूजित हैं। कहा जाता है कि उनकी कृपा से सभी कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मां कुष्मांडा का स्वरूप अद्भुत और अलौकिक है। भगवती पुराण में उन्हें आठ भुजाओं वाली देवी बताया गया है, जिनमें कमंडल, कमल पुष्प, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र, गदा और जप माला सुशोभित हैं। वे सिंह पर विराजमान रहती हैं और शक्ति, समृद्धि तथा शांति की प्रतीक मानी जाती हैं।

नवरात्रि के दौरान मां कुष्मांडा की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग का केसरयुक्त पेठा अर्पित करना शुभ माना जाता है और इसे ही प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। कुछ स्थानों पर सफेद पेठे के फल की बलि भी दी जाती है। इसके अलावा, मालपुआ और बताशे का भोग भी मां को अर्पित किया जाता है, जिससे वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

कुष्मांडा देवी की कथा – Kushmanda Devi ki Katha

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर केवल घना अंधकार था, तब एक दिव्य ऊर्जा का छोटा सा गोला प्रकट हुआ। इस ऊर्जा पुंज ने अपनी तेज़ रोशनी से आठों दिशाओं को प्रकाशित कर दिया। देखते ही देखते, यह ऊर्जा गोला एक नारी के रूप में परिवर्तित हो गया। वह नारी कोई और नहीं, बल्कि स्वयं माता कुष्मांडा थीं। उनकी मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई, और इस प्रकार सृष्टि का आरंभ हुआ। उनके नाम में ही सृजन की शक्ति निहित है।

माता कुष्मांडा ने सृष्टि की रचना करने के बाद, अपने त्रिनेत्र से तीन महाशक्तियों को उत्पन्न किया। अपने बाएं नेत्र से उन्होंने महाकाली देवी को प्रकट किया, दाएं नेत्र से मां सरस्वती को जन्म दिया, और मस्तक पर स्थित तीसरे नेत्र से महालक्ष्मी देवी की सृष्टि की। इसके पश्चात, उन्होंने इन तीनों देवियों से एक नर और एक नारी की उत्पत्ति कराई। महाकाली देवी से एक पुरुष और एक नारी प्रकट हुए—पुरुष भगवान शिव कहलाए और नारी माता सरस्वती के रूप में पूजित हुईं। महालक्ष्मी देवी से ब्रह्मा जी और देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई। वहीं, मां सरस्वती से भगवान विष्णु और माता शक्ति का जन्म हुआ।

इसके बाद, माता कुष्मांडा ने इन ईश्वरों के लिए उपयुक्त जीवनसाथी निर्धारित किए—ब्रह्मा जी को माता सरस्वती, भगवान शिव को माता शक्ति, और भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी प्राप्त हुईं। इसके पश्चात, माता कुष्मांडा सूर्य के केंद्र में निवास करने लगीं। वे ही एकमात्र ऐसी देवी हैं जो सूर्य के मूल में वास करती हैं। उनकी ऊर्जा, आभा और तेज स्वयं सूर्य के समान देदीप्यमान है। उनके दिव्य तेज से ही सूर्य अपनी ऊर्जा प्राप्त करता है। सूर्य के मध्य में निवास करते हुए, वे संपूर्ण सौर मंडल को नियंत्रित करती हैं और ब्रह्मांड में ऊर्जा का संचार करती हैं।

कुष्मांडा देवी मंत्र – Maa Kushmanda Mantra

माँ कुष्मांडा देवी मंत्र

ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥

माँ कुष्मांडा बीज मंत्र

ऐं ह्रीं देव्यै नम:

माँ कुष्मांडा प्रार्थना मंत्र

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

माँ कुष्मांडा स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

माँ कुष्मांडा ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥१॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥२॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥३॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥४॥

माँ कुष्मांडा स्तोत्र मंत्र

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥१॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥२॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥३॥

माँ कुष्मांडा कवच मंत्र

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥

कुष्मांडा देवी की आरती – Kushmanda Mata ki Aarti

कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥१॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥२॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥३॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥४॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचाती हो माँ अम्बे॥५॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥६॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥७॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥८॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भण्डारे भर दो॥९॥
तेरा दास तुझे ही ध्याये। भक्त तेरे दर शीश झुकाये॥१०॥

मां कुष्मांडा की पूजा विधि – Maa Kushmanda Ki Puja Vidhi

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन, प्रातः स्नान और ध्यान करने के बाद पूजा के लिए बैठें। सबसे पहले घर के मंदिर को साफ़-सुथरा कर उसे सजाएं। फिर मां कुष्मांडा का ध्यान करें और उनकी प्रतिमा या चित्र के समक्ष श्रद्धा भाव से पूजन आरंभ करें। माता को कुमकुम, मौली, अक्षत, लाल पुष्प, फल, पान के पत्ते, केसर और शृंगार सामग्री अर्पित करें। मां कुष्मांडा को सफेद कुम्हड़ा (पेठा) और उसके फूल विशेष प्रिय माने जाते हैं, इसलिए उन्हें यह भी अर्पित करें। इसके बाद, दुर्गा चालीसा का पाठ करें और घी का दीपक जलाकर मां की आरती करें। इस प्रकार, नवरात्रि के चौथे दिन की पूजा विधिपूर्वक संपन्न होगी।

मां कुष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए पूजा में पेठा या पेठे की मिठाई का भोग अर्पित करें, क्योंकि यह उन्हें अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा, गुड़ से बना हलवा, मीठी दही और मालपुए भी भोग स्वरूप चढ़ा सकते हैं। पूजा संपन्न होने के बाद, मां कुष्मांडा के प्रसाद को भक्तों में वितरित करें और स्वयं भी श्रद्धापूर्वक ग्रहण करें।

मां कुष्मांडा की पूजा के लाभ

ऐसा माना जाता है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से साधक और उसके परिवार के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। अविवाहित कन्याएं यदि श्रद्धा और भक्ति भाव से मां की उपासना करें, तो उन्हें मनचाहा वर प्राप्त होने का आशीर्वाद मिलता है। वहीं, सुहागिन स्त्रियों को माता अखंड सौभाग्य का वरदान देती हैं। देवी पुराण के अनुसार, विद्यार्थियों को विशेष रूप से मां कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए, जिससे उनकी बुद्धि का विकास होता है।

मां कुष्मांडा अपने भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखती हैं। उनकी उपासना करने से रोग, शोक और विनाश दूर होते हैं तथा साधक को यश और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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