श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: धार्मिक और पौराणिक महत्व
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का स्थान दूसरा माना जाता है। यह पावन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में, कृष्णा नदी के तट पर स्थित दिव्य श्रीशैल पर्वत पर स्थापित है। इसकी भव्यता और महिमा का वर्णन स्वयं स्कंद पुराण में विस्तृत रूप से मिलता है। माना जाता है कि “मल्लिकार्जुन” नाम शिव और शक्ति दोनों की एकता का प्रतीक है। यहाँ ‘मल्लिका’ माता पार्वती का सूचक है, जबकि ‘अर्जुन’ भगवान शिव के नाम का प्रतिनिधित्व करता है। इसी कारण यह धाम शिव–शक्ति की संयुक्त ऊर्जा का अद्वितीय केंद्र माना जाता है।
भगवती पार्वती ने जब भगवान शिव से यह प्रश्न किया कि कैलाश के अतिरिक्त इस ब्रह्मांड में उनका सर्वाधिक प्रिय स्थान कौन-सा है, तब महादेव ने जिस दिव्य धाम का उल्लेख किया, वह है प्रकृति की गोद में स्थित, सौंदर्य और पवित्रता से ओत-प्रोत श्रीचक्र स्वरूप पवित्र श्रीशैलम्। यह वही पावन भूमि है जहाँ शिव-शक्ति स्वयं श्री मल्लिकार्जुन और श्री भ्रमरांबा के रूप में भक्तों को वरदान प्रदान करते हैं।
पुराणों में जिस श्रीशैलम् की महिमा विस्तार से वर्णित है, उसका आध्यात्मिक महत्व अनादि काल से अपरंपार रहा है। बारह ज्योतिर्लिंगों में दूसरा स्थान मल्लिकार्जुन स्वामी ज्योतिर्लिंग को प्राप्त है, वहीं अठारह महाशक्ति पीठों में छठा स्थान श्री भ्रमरांबा देवी शक्ति पीठ को मिलता है। यह भारत का एकमात्र ऐसा दिव्य मंदिर है जहाँ ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ दोनों एक ही परिसर में स्थित हैं। यही इस धाम की महानता और दुर्लभता को और भी बढ़ा देता है।
श्रीशैलम् इतिहास और आस्था में कई नामों से प्रसिद्ध रहा है—जैसे श्रीगिरि, सिरीगिरि, श्रीपर्वतम और श्रीनगर। सत्ययुग में भगवान नरसिंह, त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम और माता सीता, द्वापरयुग में पांचों पांडव, तथा कलियुग में अनेकों योगी, ऋषि, मुनि, संत, आचार्य, राजाओं, कवियों और भक्तों ने इस धाम की यात्रा कर श्री मल्लिकार्जुन स्वामी और माता भ्रमरांबा की कृपा प्राप्त की है।
भगवान शिव और माँ पार्वती, जिन्हें सृष्टि के जननी-जनक कहा जाता है, अपनी दिव्य शक्तियों के साथ जब धरती पर आए, तो उन्होंने “पृथ्वी के कैलास” अर्थात् श्रीशैल क्षेत्र को अपना पवित्र निवास चुना। यह वही स्थान है जिसे वेदों का केंद्र, उपासनाओं का धाम और अनादि-अनंत काल तक रहने वाला एकमात्र शिव धाम माना गया है। मान्यता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले और उसके प्रलय के बाद भी केवल श्रीशैलम ही अक्षत रहेगा।श्रीशैलम् केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि शिव-शक्ति की संयुक्त ऊर्जा का जीवंत केंद्र, अनंत काल से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाला दिव्य धाम है।
प्राचीन ग्रंथ शिवरहस्य में कहा गया है कि पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई लिंग नहीं जो श्रीशैल के ज्योतिर्लिंग की समता कर सके। वेद, ऋषि और सिद्ध सभी प्रमाणित करते हैं कि जो भी भक्त श्री मल्लिकार्जुन स्वामी की सच्चे भाव से उपासना करता है, वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। रामायण, पुराण, एवं अनेक प्राचीन शास्त्र श्रीशैल के महात्म्य से भरे पड़े हैं। कुमारस्वामी, अगस्त्य, वशिष्ठ, व्यास, दुर्वासा, लोपामुद्रा, कई सिद्धपुरुषों से लेकर श्रीराम, पांडव, रावण, हिरण्यकश्यप, शंकराचार्य, राघवेंद्र स्वामी तक—सबने इस पवित्र धाम का दर्शन किया है। आज भी हिमालय से अनेक सिद्ध यहाँ साधना हेतु आते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा:
प्राचीन कथा के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान शिव के पुत्रों—श्री कार्तिकेय और श्री गणेश—के बीच उत्पन्न हुए एक दिव्य प्रसंग से जुड़ी है। एक बार भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय और गणेश के बीच यह विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें श्रेष्ठ कौन है और किसका विवाह पहले होना चाहिए। माता पार्वती ने इस विवाद का समाधान एक प्रतियोगिता से करने का सुझाव दिया। निर्णय हुआ कि जो पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ करके सबसे पहले लौट आएगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा और उसका विवाह पहले संपन्न होगा। कार्तिकेय यह सुनते ही अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेकर अपने दिव्य वाहन मोर पर अत्यंत वेग से पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। गणेश जी यह देखकर चिंतित हो गए। उनका स्थूल शरीर और छोटा-सा वाहन मूषक—इन परिस्थितियों में कार्तिकेय से प्रतियोगिता जीत पाना लगभग असंभव प्रतीत हो रहा था। तभी गणेश जी को एक दिव्य उपाय सूझा। उन्होंने वहीं उपस्थित भगवान शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और कहा कि उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ पूर्ण कर ली हैं।
भगवान शिव ने मुस्कुराकर पूछा कि यह कैसे संभव है। तब गणेश जी ने विनम्रता से उत्तर दिया— “हे पिताश्री, मेरे लिए आप दोनों ही संपूर्ण संसार हैं। समस्त ब्रह्मांड आपमें ही समाहित है। अतः आपकी परिक्रमा करना पूरे जगत की परिक्रमा करने के समान ही है।” गणेश जी की यह बुद्धिमत्ता, भक्ति और तत्त्वज्ञान सुनकर महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए। ब्रह्मा और विष्णु की सहमति से उन्होंने श्रीगणेश को श्रेष्ठ और प्रथम पूज्य घोषित कर दिया। इसके बाद गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि के साथ संपन्न हुआ, और उनसे क्षेम और लाभ नामक पुत्र उत्पन्न हुए।
कुछ समय पश्चात कार्तिकेय अपनी सात परिक्रमाएँ पूर्ण कर लौटे तो उन्होंने गणेश जी को परिवार सहित देखा और आश्चर्यचकित रह गए। सत्य जानकर वे क्रोधित हो गए और बोले— “हे पिताश्री, मेरे लिए भी आप दोनों ही संसार हैं, इसमें संदेह नहीं। लेकिन यह प्रतियोगिता बल, धैर्य और परिश्रम की थी, केवल बुद्धि की नहीं। अतः यह निर्णय न्यायसंगत नहीं है।” क्रोधवश वे वहाँ से चल दिए और क्रौंच पर्वत (आज का पवित्र श्रीशैल पर्वत) पर तपस्या हेतु चले गए। अपने पुत्र के इस प्रकार रूठकर चले जाने से शिव-पार्वती अत्यंत व्याकुल हो उठे। उन्होंने पहले सप्तर्षियों को कार्तिकेय को मनाकर वापस लाने के लिए भेजा, पर वे सफल न हो सके। फिर देवर्षि नारद को भेजा गया, किंतु वे भी कार्तिकेय का मन नहीं बदल पाए। अंततः शिव और पार्वती स्वयं क्रौंच पर्वत की ओर चले।
कार्तिकेय को जब ज्ञात हुआ कि उनके माता-पिता स्वयं उन्हें मनाने आ रहे हैं, तो वे मन-ही-मन दुविधा में पड़ गए। वे माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहते थे, पर वापस भी नहीं लौटना चाहते थे। इसलिए वे वहाँ से तीन योजन दूर एक अन्य पर्वत पर चले गए। जब शिव-पार्वती क्रौंच पर्वत पहुँचे और अपने पुत्र को वहाँ न पाया, तो वे अत्यंत दुखी हुए। अपने पुत्र के प्रति प्रेम और विरह में वे वहीं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए ताकि कार्तिकेय को सदा समीप महसूस कर सकें।
इसी प्रकार श्रीशैलम् में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई, जिसे आज भी भक्त अनंत करुणा, प्रेम और मोक्षदायी शक्ति के रूप में पूजते हैं।
श्रीशैलम् का प्राचीन इतिहास और आध्यात्मिक महिमा
श्रीशैलम् सदियों से अपनी अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राचीन विरासत के लिए जाना जाता है। यहाँ विराजमान श्री भ्रामरांबिका देवी और भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी के दिव्य स्वरूप ने हजारों वर्षों से करोड़ों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित किया है। अनेक युगों से यह स्थल श्रद्धा, भक्ति और तप का केन्द्र रहा है। चाहे धार्मिक ग्रंथ हों या विभिन्न राजवंशों की कथाएँ—हर युग ने श्रीशैलम् की महिमा का बखान किया है।
1. सातवाहन काल से श्रीशैलम् का प्रादुर्भाव
दक्षिण भारत के प्रथम राजवंश सातवाहन काल से ही श्रीशैलम् का उल्लेख मिलता है। तीसरे सातवाहन राजा शातकर्णि स्वयं भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी के परम भक्त थे और उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मल्लन्ना’ उपाधि भी धारण की। तीसरी शताब्दी ईस्वी के शास्त्रीय ग्रंथों में श्रीशैलम् को चकोर शेतगिरि नाम से वर्णित किया गया है।
2. इक्ष्वाकु और कदम्ब राजवंश का योगदान
सातवाहनों के बाद इक्ष्वाकु राजाओं ने आंध्र प्रदेश पर शासन किया और श्रीशैलम् को पवित्र तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित रखा। छठी शताब्दी में कदम्ब वंश के राजा मायूर शर्मा ने श्रीशैलम् को श्री पर्वतम् कहा। बाद में राजा बृहद्धन ने कदम्बों की सहायता से पल्लवों को परास्त किया और श्री पर्वतम् को अपने राज्य में शामिल किया।
3. चलुक्य, राष्ट्रकूट और होयसलों का स्वर्णिम काल
बादामी चालुक्य नरेश पुलकेशी ने यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण कराया और उन्हें शिवदीक्षा प्राप्त करने वाले पहले क्षत्रिय के रूप में सम्मानित किया गया। 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट सम्राट दन्तिदुर्ग ने श्री पर्वतम् पर शासन किया। इसके बाद 10वीं शताब्दी में कalyani चालुक्य राजाओं ने गर्भगृह पर भव्य गोपुर का निर्माण करवाया।
11वीं शताब्दी के अंत तक श्रीशैलम् महाशिव मंदिर और वैदिक परंपराओं के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। होयसला राजाओं ने पतालगंगा (कृष्णा नदी) से क्रिस्टल शिवलिंग एकत्र किए और अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। तभी से मराठी भक्त श्रीशैलम् को दक्षिण काशी कहकर पुकारने लगे।
4. काकतीय और रेड्डी राजवंश की सेवा
काकतीय राजा प्रतापरुद्र अपनी महारानी के साथ श्रीशैलम् आए, तुलाभार सेवा की और देवी-देव का आशीर्वाद प्राप्त किया।
13वीं शताब्दी में रेड्डी राजाओं ने श्रीशैलम् के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगवान शिव के महान भक्त प्रोलेया वेंमा रेड्डी ने रामतीर्थम नामक गाँव दान दिया और मंदिर क्षेत्र के विस्तार में योगदान दिया। उनके पुत्र अनवेम रेड्डी ने तेलंगाना की ओर से आने वाले भक्तों के लिए सीढ़ियाँ बनवाईं और वीरशिरो मंडप का निर्माण कराया, जो उस समय के महान शिवभक्तों की निष्ठा का प्रतीक है। 1405 ईस्वी में कात्य वेमा रेड्डी और पेदाकमती वेमा रेड्डी ने क्रमशः श्रीशैलम् और पतालगंगा तक सीढ़ियाँ निर्मित कराईं।
5. विजयनगर साम्राज्य और श्री कृष्णदेवराय का योगदान
14वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने श्रीशैलम् को अत्यधिक महत्व दिया। विरूपाक्ष और सालुपा पर्वतैया ने यहाँ कई गाँव दान किए। हरिहर द्वितीय की महारानी वितालाम्बा ने पतालगंगा तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनवाईं। शिवरात्रि के पावन अवसर पर हरिहर द्वितीय ने मुख्य मंदिर के सभा मंडप का निर्माण करवाया। श्री कृष्णदेवराय ने तो श्रीशैलम् को एक स्वतंत्र राज्य की तरह मानकर अपने विश्वस्त मंत्री चंद्रशेखर को इसका विशेष प्रशासक नियुक्त किया। तमाम दिशाओं के गोपुर, खासकर दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के विशाल द्वार—कृष्णदेवराय की ही देन माने जाते हैं। चंद्रशेखर ने उनके नाम पर अद्भुत मंडपों का निर्माण कराया।
6. छत्रपति शिवाजी महाराज और श्रीशैलम्
मराठा साम्राज्य के महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज भी भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी और भ्रामरांबिका देवी के अनन्य भक्त थे। उनके आदेश पर ही मंदिर के उत्तरी गोपुर का निर्माण शुरू हुआ। उनकी भक्ति ने श्रीशैलम् के इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया।
7. चेंचु जनजाति और मल्लन्ना की अनूठी परंपरा
18वीं–19वीं शताब्दी में चेंचु जनजाति मंदिर परिसर में विशेष भूमिकाओं में सम्मिलित रही। स्थानीय मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी वनभ्रमण पर थे तो एक चेंचु कन्या को उनसे प्रेम हो गया और उनका विवाह स्थानीय लोगों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। तभी से श्रीशैलम् के लोग भगवान को अपना जामाई मानते हैं और उन्हें प्रेमपूर्वक चेंचु मल्लन्ना या चेंचु मल्लैया कहते हैं।
पौराणिक कथाओं से भरा श्रीशैलम् ,जहाँ शिव स्वयं भक्तों के लिए प्रकट हुए
1. नंदी की कथा : महादेव का पृथ्वी पर आगमन
महार्षि शिलाद ने सहस्रों वर्ष तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को अपना पुत्ररूप में दिया। नंदी की प्रार्थना पर और माँ पार्वती की इच्छा से भगवान शिव अपने दिव्य तेज के साथ पृथ्वी के कैलास श्रीशैलम् आए, ताकि भक्त उनकी सीधी कृपा प्राप्त कर सकें।
2. वसुमति को वरदान
एक भक्त वसुमति की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया और उसे ‘श्रितत्व’ प्रदान किया। इससे सिद्ध होता है कि जो भी शिव की शरण में आता है, वह निराश नहीं लौटता।
3. मल्लिकार्जुन स्वरूप की उत्पत्ति
कथा है कि भगवान शिव एक अर्जुन वृक्ष में प्रकट हुए, जिसे मल्लिका (जैस्मिन) लता ने आवृत कर रखा था। इसी कारण वे मल्लिकार्जुन कहलाए— अर्जुन का अर्थ है श्वेत, पवित्र। शिव का यह दिव्य ज्योतिर्लिंग रूप आज भी श्रीशैलम में भक्तों को कृपा प्रदान करता है।
4. चन्द्रावती की भक्ति
कई युगों बाद, चन्द्रावती नामक भक्त ने भगवान शिव को मल्लिका पुष्पों की माला अर्पित की। भगवान ने वह माला धारण की और कहा— “तब से मैं मल्लिकार्जुन नाम से इस पवित्र पर्वत पर निवास करूँगा।” यह माला कभी मुरझाती नहीं, ठीक उसी प्रकार जैसे शिव की कृपा सदैव अक्षय रहती है।
5. पांडवों का आगमन और पंचलिंग स्थापना
इंद्र ने भी शिव को “अर्जुन” नाम से पुकारा। महर्षि व्यास के निर्देश पर पांडवों ने श्रीशैल में पाँच शिवलिंग स्थापित किए। यहाँ शिव का उज्ज्वल, दूध के समान श्वेत रूप “मल्लिकार्जुन” कहलाता है।
6. तीन गुणों से परे दिव्य शिव
शिव सदैव तीनों गुणों—सत्त्व, रज, तम—से परे हैं। मानव उनके वास्तविक स्वरूप को नहीं जान पाता, इसलिए उन्होंने अपनी कृपा से मानव-अनुकूल रूप मल्लिकार्जुन के रूप में श्रीशैल में निवास किया।
7. पार्वती का निवास : ब्रह्माराम्बिका देवी
माँ पार्वती ने यहाँ तपस्या करके अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण किया। इसलिए श्रीशैलम् में अर्धनारीश्वर और उमामहेश्वरी दोनों मंदिर स्थित हैं। इसीलिए कहा गया ,
“अर्धनारीश्वरी ब्रह्मरा परामेश्वरी …”
8. आदि शंकराचार्य का तप और श्रीचक्र प्रतिष्ठा
आदि गुरु शंकराचार्य ने श्रीशैल पर्वत पर दीर्घ तप किया, शिवानंद लहरी, योगतारावली जैसे दिव्य ग्रंथ रचे और माँ ब्रह्माराम्बिका को प्रसन्न करने हेतु श्रीचक्र की प्रतिष्ठा की। इसलिए कहा जाता है— “श्रीशैल ही श्रीचक्र है, और श्रीचक्र ही श्रीशैल।”
9. श्रीशैलम् में पूजा का अनंत फल
स्रीशैल खंड में शिव स्वयं माँ पार्वती से कहते हैं—
- यहाँ की यात्रा देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
- एक दिन का निवास काशी में हजार युग रहने के बराबर है।
- कुरुक्षेत्र में लाख दान, गंगा में दो लाख स्नान, हिमकूट में तप, रेवाती में साधना—इन सबका फल श्रीशैल में एक बार पूजा करने से मिल जाता है।
- यहाँ पूजा करने वाला शिवार्चन, स्तोत्र, दीप, पुष्प—किसी भी रूप में—करोड़ों जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।
- श्रीशैलम् के दर्शन मात्र से मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है।
10. सिद्ध पुरुषों का निवास
श्रीशैल की पर्वत श्रृंखलाएँ सिद्धों, योगियों और तपस्वियों का नित्य धाम हैं। यहाँ रहने वाले साधक क्रोध, राग-द्वेष से मुक्त होकर दिव्य ज्ञान से प्रकाशमान रहते हैं।
11. सृष्टि का आधार : शिव ही श्रीशैल, श्रीशैल ही शिव
हिरण्यकश्यप जैसे असुरों से लेकर श्रीराम जैसे देवावतार, नंदी, पांडव, रावण—सभी ने इस दिव्य क्षेत्र की वंदना की। यहाँ सभी वेदों का निवास है, सभी देवताओं का तेज केंद्रित है। इसीलिए कहा गया— “शिव ही श्रीशैल हैं और श्रीशैल ही शिव।” इस पवित्र धाम में भगवान शिव परवतेश्वर, गिरीश्वर, नागेश्वर और मल्लिकार्जुन के रूप में विराजते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के आसपास के दर्शनीय स्थल
1. भ्रामराम्बा देवी मंदिर – माँ पार्वती का पवित्र धाम (शहर से 0 किमी)
नल्लमाला पहाड़ियों और कृष्णा नदी के दिव्य तट पर स्थित भ्रामराम्बा देवी मंदिर माता पार्वती को समर्पित है। यह मंदिर स्वयं मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर परिसर के भीतर स्थित होने के कारण इसकी आध्यात्मिक महिमा और भी बढ़ जाती है। भक्त यहाँ शिव–शक्ति के दिव्य स्वरूप का साक्षात अनुभव करते हैं।
2. हेमारेड्डी मल्लम्मा मंदिर – भक्तिपथ की अनोखी कथा (शहर से 1 किमी)
मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर के समीप स्थित यह नया मंदिर हेमारेड्डी मल्लम्मा की आध्यात्मिक कथा को समर्पित है। पास में बने आश्रम और इससे जुड़ी रोचक लोककथाएँ भक्तों को अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती हैं।
3. चेंचू लक्ष्मी जनजातीय संग्रहालय – आदिवासी संस्कृति की झलक (शहर से 1 किमी)
यह संग्रहालय आंध्र प्रदेश की जनजातीय जीवनशैली, परंपराओं और संस्कृति को अद्भुत तरीके से प्रस्तुत करता है। यहाँ चेंचू जनजाति द्वारा संकलित विशेष शहद सरकारी पैकेजिंग में उपलब्ध होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक अनोखा उपहार है।
4. पाताल गंगा – कृष्णा नदी का पवित्र अवतरण स्थल (शहर से 2 किमी)
जैसे ही कृष्णा नदी नीचे उतरती है, पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। यहाँ के शांत दृश्य मन को तृप्त करते हैं और माना जाता है कि इन पवित्र जलों में स्नान करने से त्वचा रोगों में लाभ मिलता है।
5. श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व – भारत का विशाल वन्य अभयारण्य (शहर से 20 किमी)
3568 एकड़ में फैला यह टाइगर रिज़र्व भारत के सबसे बड़े अभयारण्यों में से एक है। इसी क्षेत्र में श्रीशैलम बांध और नागार्जुनसागर बांध भी स्थित हैं। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं।
6. अक्का महादेवी गुफाएँ – अंधकार में छिपा दिव्य लिंग (शहर से 10 किमी)
कृष्णा नदी में नाव की सैर करते हुए इन गुफाओं तक पहुँचा जाता है। भीतर पूर्ण अंधकार होता है, इसलिए मशाल या मोमबत्ती साथ रखना आवश्यक है। गुफा के भीतर स्थित पवित्र शिवलिंग भक्तों को अद्भुत आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
7. श्रीशैलम बाँध – पर्यटन का प्रमुख केंद्र (शहर से 3 किमी)
भारत की 12 सबसे बड़ी जल–विद्युत परियोजनाओं में शामिल श्रीशैलम बाँध स्थानीय और बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य और विशाल जलराशि मन मोह लेती है।
8. शिखरेश्वर मंदिर – श्रीशैलम का उच्चतम शिखर (शहर से 6 किमी)
श्रीशैलम के सबसे ऊँचे स्थान शिखरम् पर स्थित यह मंदिर शिखरेश्वर स्वामी को समर्पित है। यहाँ से कृष्णा नदी का अद्भुत दृश्य और नल्लमाला वन का मनोहारी विस्तार दिखाई देता है।
9. लिंगाला गट्टू – शिवरूप में तब्दील शिलाखंड (शहर से 5 किमी)
कृष्णा नदी के पत्थरीले तट पर स्थित यह विशेष स्थान इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ के प्रत्येक पत्थर को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। इसी मान्यता के कारण इसे ‘लिंगाला गट्टू’ कहा जाता है।
10. साक्षी गणपति मंदिर – यात्रा के साक्षी गणेश (शहर से 2 किमी)
नयनाभिराम प्राकृतिक पृष्ठभूमि में स्थित यह मंदिर अपनी काली पाषाण प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि साक्षी गणपति स्वयं भक्तों की श्रीशैल यात्रा का प्रमाण रखते हैं।
11. हाटकेश्वरम मंदिर – शंकराचार्य का तपस्थल (शहर से 3 किमी)
छोटा किन्तु अत्यंत पवित्र यह मंदिर शिवलिंग का धाम है। इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य ने अपने महान दार्शनिक ग्रंथों में से एक की रचना की थी। स्थानीय लोग इसे अत्यंत श्रद्धा से पूजते हैं।
12. ऑक्टोपस व्यूपॉइंट – कृष्णा नदी का अनोखा दृश्य
डोमालपेंटा से 5 किमी पहले स्थित यह नया व्यूपॉइंट अपने मोहक प्राकृतिक दृश्य के लिए प्रसिद्ध है। नीचे बहती कृष्णा नदी का फैला हुआ स्वरूप एक ऑक्टोपस जैसा दिखाई देता है। यहाँ का जंगल सफारी भी प्रमुख आकर्षण है।
13. पलधारा पंचधारा – मन को शांत करने वाला निर्मल स्थल (शहर से 4 किमी)
सीढ़ियों के रास्ते पहुँचा जाने वाला यह स्थल कई छोटी–बड़ी धाराओं के संगम से बना है। इसकी मुख्य धारा का नाम पलधारा पंचधारा भगवान शिव के माथे से उत्पन्न धारा के आधार पर रखा गया है। यह स्थान ध्यान, शांति और आत्ममंथन के लिए अद्भुत है।
14. इष्टकामेश्वरी मंदिर – प्राचीन वनधाम (शहर से 12 किमी)
8वीं–10वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर देवी पार्वती के इष्टकामेश्वरी रूप को समर्पित है। घने वन के बीच स्थित यह प्राचीन मंदिर अपनी अद्भुत शिल्पकला, रहस्य और दिव्यता के कारण श्रद्धालुओं व इतिहास प्रेमियों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
15. नल्लमाला वन – प्रकृति का विशाल विस्तार (शहर से 17 किमी)
पूर्वी घाटों में फैला नल्लमाला वन क्षेत्र विभिन्न वन्य प्रजातियों—चिंकारा, नीलगाय, तेंदुआ आदि—का प्राकृतिक आश्रय है। यह जंगल नागार्जुनसागर–श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व का भी हिस्सा है। झरनों, नदियों और पर्वतीय सौंदर्य से भरपूर यह स्थान प्रकृति प्रेमियों का मन मोह लेता है।
श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (श्रीशैलम्) जाने का सर्वोत्तम समय
श्रीशैलम् जाने का सर्वोत्तम समय अक्टूबर से फरवरी माना जाता है। इन महीनों में मौसम ठंडा, सुखद और यात्रा के लिए उपयुक्त रहता है, जिससे दर्शन के साथ-साथ Srisailam Sanctuary, फालाधारा पंचधारा, और श्रीशैलम् डैम व्यू पॉइंट जैसे प्रमुख स्थलों की सुंदरता का आनंद आसानी से लिया जा सकता है। इस दौरान तापमान लगभग 15°C से 32°C के बीच रहता है, जो दर्शनीय स्थलों की यात्रा को और भी आरामदायक बनाता है।
जून से सितंबर के बीच मानसून का समय रहता है। इस मौसम में भारी बारिश के कारण यात्रा थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन यह अवधि शांत वातावरण में मंदिर दर्शन और बजट-फ्रेंडली ट्रिप के लिए अच्छी मानी जाती है। वहीं, गर्मी का मौसम (मार्च से जून) श्रीशैलम् घूमने के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं माना जाता। इस समय यहाँ अत्यधिक गर्मी और उमस रहती है, जो यात्रा को असुविधाजनक बना देती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुँचे?
श्रीशैलम् चारों ओर से घने नल्लमाला वन से घिरा हुआ है। इस कारण तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने सुरक्षित प्रवेश व्यवस्था बनाई है। आंध्र प्रदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए डोर्नाला और शिखरम पर, तथा तेलंगाना से आने वालों के लिए मन्नानूर और डोमलपेंटा में चेकपोस्ट स्थापित किए गए हैं। भक्तों की सुरक्षा हेतु इन द्वारों को प्रतिदिन रात्रि 9:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे तक बंद रखा जाता है। इसलिए सभी श्रद्धालुओं से निवेदन है कि अपनी यात्रा की योजना इस निर्धारित समय सीमा को ध्यान में रखते हुए ही बनाएं।
📍 पता (Address) :
श्रीशैल देवस्थानम्, श्रीशैलम – 518101,
कर्नूल (जिला), आंध्र प्रदेश, भारत
✈️ हवाई मार्ग से
श्रीशैलम् के लिए सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा हैदराबाद का राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। हैदराबाद से श्रीशैलम् की दूरी लगभग 230 किमी है। तेलंगाना सरकार की ओर से हैदराबाद से श्रीशैलम् के लिए लगातार बस सेवाएँ चलती रहती हैं, जिससे यात्री आसानी से धाम तक पहुँच सकते हैं।
🚆 रेल मार्ग से
श्रीशैलम् के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन मार्कापुर है, जो दक्षिण मध्य रेलवे के गुंटूर–हुबली मार्ग पर स्थित है। मार्कापुर से श्रीशैलम् लगभग 91 किमी दूर है और यहाँ से भक्तों के लिए नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध रहती हैं।
🛣️ सड़क मार्ग से
श्रीशैलम् की यात्रा पूरे देश से आने वाले भक्त बड़े उत्साह से करते हैं, परंतु अधिकतर श्रद्धालु आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक से पहुँचते हैं। इन राज्यों की सरकारें भक्तों की सुविधा हेतु नियमित और सुविधाजनक सरकारी बस सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। सरकार द्वारा बनाए गए मार्ग अत्यंत सुगम हैं, फिर भी निजी वाहन से यात्रा करने वाले यात्रियों को श्रीशैलम् के घुमावदार घाट मार्ग पर विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
श्रीशैलम् की प्रमुख दूरियाँ:
- कुर्नूल से – 180 किमी
- हैदराबाद से – 220 किमी
- बेंगलुरु से – 530 किमी
- विजयवाड़ा से – 272 किमी
यह लेख पढ़कर आप निश्चित रूप से श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की दिव्यता, श्रीशैलम् की आध्यात्मिक महिमा और यहाँ से जुड़ी पौराणिक कथाओं को और गहराई से महसूस कर पाए होंगे। प्रकृति, इतिहास और भक्ति का अद्भुत संगम बनने वाला यह पवित्र धाम हर शिवभक्त के जीवन में कम-से-कम एक बार अवश्य आना चाहिए।
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हर-हर महादेव!