श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – Nageshwar Jyotirlinga

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – नागों के ईश्वर शिव का पवित्र धाम

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक अत्यंत दिव्य शक्तिस्थल है, जो गुजरात के द्वारका धाम से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है। रुद्र संहिता में इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन “दारुकावने नागेशं” के रूप में मिलता है, जिसका अर्थ है—दारुकावन में विराजमान नागों के ईश्वर शिव। शास्त्रों में बताया गया है कि जो भक्त श्रृद्धा से इसकी उत्पत्ति कथा सुनता है, वह पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त होता है। ‘नागेश्वर’ नाम स्वयं दर्शाता है कि भगवान शिव नागों के अधिपति हैं, और क्योंकि सर्प सदैव उनके गले में विराजते हैं, इसलिए यह स्थान विशेष रूप से विष से संबंधित कष्टों, सर्प भय और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।  यहाँ स्थित शिवलिंग गोलाकार काले द्वारका शिला से निर्मित है और त्रिमुखी रुद्राक्ष स्वरूप में स्थापित है, जहाँ माता पार्वती की भी उपासना की जाती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने रुद्राभिषेक करके नागेश्वर महादेव की आराधना की थी, और बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने भी इसी क्षेत्र के कलिका पीठ पर अपने पश्चिमी मठ की स्थापना की, जिससे यह धाम और अधिक पवित्र बन गया। द्वारका से रुक्मिणी मंदिर, गोपीतालाव और बेट द्वारका की ओर जाने वाला मार्ग नागेश्वर मंदिर होकर गुजरता है, इसलिए द्वारका यात्रा इस धाम के दर्शन बिना अधूरी मानी जाती है। नागेश ज्योतिर्लिंग की पहचान को लेकर विद्वानों में मतभेद भी मिलते हैं—कुछ विद्वान आंध्र प्रदेश के पूर्णा के समीप स्थित नागेश्वर को वास्तविक ज्योतिर्लिंग मानते हैं, जबकि कुछ उत्तराखंड के अल्मोड़ा के पास जागेश्वर शिवलिंग को नागेश कहते हैं, तथापि लोकप्रिय और व्यापक मान्यता के अनुसार दारुकावन स्थित गुजरात का नागेश्वर ही प्रमुख ज्योतिर्लिंग है। द्वादश ज्योतिर्लिंग श्लोक—“वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने”—भी इसी तथ्य की पुष्टि करता है। इस प्रकार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल शिवभक्तों के लिए मोक्षदायक धाम है, बल्कि द्वारका की आध्यात्मिक यात्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग भी है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा – दारूका राक्षसी और शिवभक्ति से जुड़ी पौराणिक कथा

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार दारूका नाम की एक अत्यंत शक्तिशाली और अभिमानी राक्षसी थी, जिसे माँ पार्वती से विशेष वरदान प्राप्त था। उसका पति दारूक भी महान बलशाली राक्षस था। दोनों मिलकर राक्षसों की विशाल सेना के साथ लोक में आतंक फैलाते, यज्ञों को नष्ट करते और संत-महात्माओं का संहार करते थे। पश्चिमी समुद्र तट पर सोलह योजन विस्तार वाला उनका सुनियोजित, समृद्ध और घना वन था—जिसकी रक्षा का दायित्त्व स्वयं महादेवी पार्वती ने दारूका को दिया था। दारूका जहाँ भी जाती, उसके वरदान के प्रभाव से वह पूरा वन उसके साथ-साथ चलता रहता।

राक्षसों के अत्याचारों से पीड़ित जनता ने महर्षि और्व के पास पहुँचकर अपना दुःख सुनाया। शरणागतों की रक्षा हेतु महर्षि और्व ने राक्षसों को शाप दिया कि जो भी राक्षस पृथ्वी पर जीव हिंसा या यज्ञ-विनाश करेगा, वह तत्काल मृत्यु को प्राप्त होगा। यह समाचार देवताओं तक पहुँचा तो उन्होंने राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। राक्षसों पर संकट गहरा हो गया—युद्ध करते तो शाप से मर जाते और युद्ध छोड़ते तो भूख से। तब दारूका ने माँ पार्वती के वरदान का उपयोग करते हुए पूरा वन समुद्र में ले जाकर बसा दिया। राक्षस वहाँ भी प्राणियों को सताने लगे।

उसी समय सुप्रिय नामक एक धर्मात्मा वैश्य समुद्री मार्ग से यात्रा कर रहा था। दारूक ने उस पर हमला करके उसे और उसके साथियों को बंदी बना लिया। किंतु सुप्रिय शिव के अनन्य भक्त थे, इसलिए कारागार में भी उनकी शिव-आराधना जारी रही। उन्होंने अन्य बंदियों को भी शिवभक्ति के मार्ग पर लगा दिया। जब यह समाचार दारूक को मिला, तो वह क्रोध से भर उठा और सुप्रिय को मरवाने का आदेश दे दिया। लेकिन सुप्रिय भयभीत नहीं हुए और भयहारी भगवान शिव को पुकारते रहे।

भक्त की पुकार सुनकर भगवान शिव एक छोटे से बिल के भीतर से प्रकट हुए। उनके साथ ही चार द्वारों वाला एक दिव्य मंदिर प्रकट हुआ, जिसके गर्भगृह में तेजस्वी ज्योतिर्लिंग प्रज्वलित हो रहा था। शिव परिवार भी वहाँ दर्शन दे रहा था। सुप्रिय ने श्रद्धा से पूजा की, और महादेव भक्तवत्सल होकर पाशुपतास्त्र द्वारा सभी प्रमुख राक्षसों, उनके अनुचरों व उनके अस्त्र-शस्त्रों का नाश कर दिया। तत्पश्चात भगवान शिव ने उस वन को वर दिया कि अब यहाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र—सभी वर्ण अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए निवास करेंगे। इस वन में शिवधर्म के प्रचारक श्रेष्ठ ऋषि-मुनि बसेंगे तथा तामसिक राक्षसों का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा।

दूसरी ओर, राक्षसों के नाश को देखकर दारूका अत्यंत दुखी हुई और दीन भाव से माँ पार्वती की स्तुति की। माता ने प्रकट होकर कहा कि वह उसके कुल की रक्षा करेंगी। पार्वती जी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि कलियुग की समाप्ति तक दारूका और उसके वंश को संरक्षण प्राप्त रहे तथा वह राक्षसों की रानी रूप में शासन करे। शिव ने माता की इच्छा स्वीकार की, किंतु यह भी कहा कि वे सदैव भक्तों की रक्षा हेतु इस वन में निवास करेंगे। जो भक्त वर्णाश्रम धर्म का पालन करते हुए श्रद्धा से उनका दर्शन करेगा, वह चक्रवर्ती सम्राट बनेगा।

भगवान शिव ने भविष्यवाणी की कि सतयुग के प्रारंभ में महासेन का पुत्र वीरसेन यहाँ आकर उनका दर्शन करेगा और उसके बाद महान चक्रवर्ती राजा बनेगा। इसके उपरांत शिव-पार्वती ने क्रीड़ा-विलास कर वहीं निवास किया। इसी दिव्य स्थल पर भगवान शिव नागेश्वर तथा माता पार्वती नागेश्वरी नाम से विख्यात हुए।

इस प्रकार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ—एक ऐसा दिव्य ज्योतिर्लिंग जो तीनों लोकों की कामनाएँ पूर्ण करने वाला है। जो भी भक्त इसकी उत्पत्ति कथा और महिमा को श्रद्धा से सुनता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों सुखों को प्राप्त करता है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास घूमने योग्य प्रमुख पवित्र स्थल | Nageshwar Jyotirlinga Nearby Places to Visit

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के बाद भक्त द्वारका क्षेत्र की आध्यात्मिकता, इतिहास और प्रकृति से जुड़े कई स्थानों का भी अनुभव कर सकते हैं। द्वारका से जुड़े ये स्थल श्रद्धा, भक्ति, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के अनोखे संगम हैं। नीचे नागेश्वर मंदिर से नजदीक स्थित प्रमुख दर्शनीय स्थानों का संपूर्ण परिचय दिया गया है—

1. गोपी तालाव – नागेश्वर से 5 किमी

गोपी तालाव वह पवित्र स्थल है जहाँ वर्णित है कि वृंदावन की गोपियाँ श्रीकृष्ण से पुनर्मिलन हेतु आई थीं। कहा जाता है कि उनसे पुनः विरह सहन नहीं हुआ और वे ‘गोपी चंदन’ में विलीन हो गईं, इसलिए यहाँ की मिट्टी अत्यंत पवित्र मानी जाती है और भक्त इसे तिलक के रूप में धारण करते हैं। शांत वातावरण, मंदिरों की श्रृंखला और चलने के लिए पक्के मार्ग इस स्थान को एक अत्यंत शांतिपूर्ण आध्यात्मिक स्थल बनाते हैं।

2. सुदामा सेतु – नागेश्वर से 17 किमी

गोमती नदी पर बना यह सस्पेंशन ब्रिज द्वारका को पंचकुई द्वीप से जोड़ता है। श्रीकृष्ण के बाल सखा सुदामा के नाम पर बना यह पुल नदी, शहर और समुद्री तट के मोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। यह पुल भक्तों के लिए सुरक्षित पथ है जो कई छोटे मंदिरों तक पहुँचने में सहायक है।

3. पंचकुई तीर्थ – नागेश्वर से 17 किमी

पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने यहाँ पाँच पवित्र कुएँ स्थापित किए थे, जिन्हें पंचकुई कहा जाता है। तीर्थ का शांत प्राकृतिक वातावरण और आध्यात्मिक महत्ता इसे साधना और ध्यान के लिए उपयुक्त बनाते हैं। धार्मिक पर्वों में यहाँ स्नान और पूजन का विशेष महत्व है।

4. स्वामीनारायण मंदिर – नागेश्वर से 18 किमी

द्वारका में स्थित भव्य स्वामीनारायण मंदिर BAPS संस्था द्वारा निर्मित है, जो अपनी अद्भुत संगमरमर जैसी श्वेत आभा, शांत वातावरण और उत्कृष्ट नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। पारंपरिक कारीगरी और आधुनिक तकनीक के मेल से बनाया गया यह मंदिर आध्यात्मिकता, वेदांत संस्कृति और नैतिक शिक्षाओं का महत्वपूर्ण केंद्र है। परिसर में स्थापित देव प्रतिमाएँ, सुंदर उद्यान और प्रकाशमय सजावट भक्तों को गहन शांति का अनुभव कराती हैं।

5. समुद्र नारायण मंदिर – नागेश्वर से 18 किमी

गोमती और अरब सागर के संगम पर स्थित यह प्राचीन विष्णु मंदिर “समुद्र नारायण” के रूप में भगवान के सागर रूप की पूजा का केंद्र है। मंदिर की वास्तुकला में गुजरात की पारंपरिक शैली देखने को मिलती है। पुराणों में वर्णित यह स्थल समुद्री यात्रियों के लिए भी मार्गदर्शक रहा है। मुख्य द्वारका मंदिर की भीड़ से दूर यह स्थान अनोखी शांति प्रदान करता है।

6. गायत्री शक्ति पीठ – नागेश्वर से 18 किमी

द्वारका में स्थित यह पवित्र मंदिर माता गायत्री को समर्पित है, जो ज्ञान, पवित्रता और वेद-शक्ति की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। यहाँ ध्यान, जप, वेद अध्ययन और आध्यात्मिक शिक्षाओं का विशेष महत्व है। मंदिर की शिल्पकला और शांत वातावरण साधकों को आंतरिक शांति प्रदान करते हैं।

7. भडकेश्वर महादेव मंदिर – नागेश्वर से 18 किमी

अरब सागर और गोमती नदी के संगम पर स्थित यह प्राचीन शिवमंदिर समुद्र की लहरों से घिरा रहता है। कहा जाता है कि मंदिर का प्राकृतिक शिवलिंग लगभग 5000 वर्ष पुराना है और यह केवल ज्वार उतरने पर दिखाई देता है। यहाँ से सूर्यास्त का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। महाशिवरात्रि पर यह स्थल विशाल भक्त-समूह से भर जाता है।

8. द्वारका पीठ (शारदा पीठ) – नागेश्वर से 18 किमी

आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मुख्य मठों में से एक—शारदा पीठ, द्वारका की आध्यात्मिक पहचान है। यह अद्वैत वेदांत का महत्वपूर्ण केंद्र है जहाँ शास्त्र अध्ययन और आध्यात्मिक अनुसंधान निरंतर होते रहते हैं। गोमती तट का शांत वातावरण और प्राचीन मंदिर की कला इस स्थल को और भी पवित्र बना देती है।

9. शिवराजपुर बीच – नागेश्वर से 19 किमी

नीले जल और सफेद रेत वाला शिवराजपुर बीच हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन प्राप्त कर चुका है, जो इसकी स्वच्छता और सुरक्षा का प्रमाण है। यहाँ तैराकी, बीच वॉक, सनबाथिंग और हल्के जल क्रीड़ा का आनंद लिया जा सकता है। समुद्री जीवन और शांत वातावरण इसे एक सुंदर आध्यात्मिक विश्रांति स्थल बनाते हैं।

10. रुक्मिणी माता मंदिर – नागेश्वर से 20 किमी

द्वारका का प्राचीन रुक्मिणी देवी मंदिर 12वीं शताब्दी का अद्भुत वास्तु-चमत्कार है। यह मंदिर श्रीकृष्ण की मुख्य अर्धांगिनी माता रुक्मिणी को समर्पित है। दीवारों पर उकेरी गई सुंदर नक़्काशी और आकर्षक चित्र-मालाएँ रुक्मिणी-कृष्ण की कथाओं को जीवंत बना देती हैं। मंदिर का गर्भगृह अत्यंत सुंदर है और यहाँ की प्राचीन चालुक्यन शैली मन मोह लेती है।

11. बेट द्वारका – नागेश्वर से 26 किमी

जिसे शंखोद्धार द्वीप भी कहा जाता है, बेट द्वारका द्वारका से फेरी द्वारा पहुँचा जाने वाला पवित्र द्वीप है। माना जाता है कि यही श्रीकृष्ण का वास्तविक निवास स्थान था। लगभग 3×4 किमी क्षेत्र में फैला यह द्वीप दिव्य समुद्री जीवन, सुंदर बीच और प्राचीन मंदिरों से भरा है। मुख्य आकर्षण द्वारकाधीश मंदिर है, जिसका निर्माण श्रीकृष्ण के परपोते वज्रनाभजी द्वारा किया गया बताया जाता है। यहाँ के हनुमान दांडी मंदिर, समुद्री कोरल, और हरप्पन सभ्यता के अवशेष इस स्थान की ऐतिहासिक महिमा को और बढ़ाते हैं।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने का सर्वोत्तम समय | Best Time to Visit Nageshwar Jyotirlinga

गुजरात के द्वारका क्षेत्र में स्थित श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए अक्टूबर से मार्च के बीच का समय सबसे उत्तम और अनुकूल माना जाता है। इस अवधि में मौसम ठंडा, सुहावना और यात्रा के लिए बेहद आरामदायक रहता है, जिससे श्रद्धालु बिना किसी असुविधा के मंदिर दर्शन और आसपास के पवित्र स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं। इन महीनों में तापमान सामान्यतः 10 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, जो तीर्थयात्रा और दर्शनीय स्थलों के लिए आदर्श माना जाता है।

विशेष रूप से महाशिवरात्रि के अवसर पर, जो प्रायः फरवरी या मार्च में आती है, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस पावन पर्व पर रात्रि भर शिव आराधना, अभिषेक, भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन होता है, जिससे पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है।

शीतकाल में आर्द्रता कम और वर्षा लगभग नहीं होती, जिससे यात्रा योजनाएँ मौसम के कारण बाधित नहीं होतीं। इसके विपरीत, अप्रैल से जून के बीच ग्रीष्म ऋतु में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच सकता है, जिससे दिन के समय दर्शन करना कष्टदायक हो सकता है। हालांकि, जो श्रद्धालु गर्मी सहन कर सकते हैं, वे गर्मियों में सुबह जल्दी या शाम के समय दर्शन का विकल्प चुन सकते हैं।

जुलाई से सितंबर तक का मानसून काल हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य तो बढ़ा देता है, लेकिन भारी वर्षा के कारण जलभराव और यात्रा में बाधा आने की संभावना रहती है। इसलिए सुविधाजनक, शांत और आध्यात्मिक अनुभव के लिए शीत ऋतु को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रा का सबसे अच्छा समय माना जाता है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे

पवित्र द्वारका धाम के समीप स्थित श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुँचना बेहद आसान है। भक्त अपनी सुविधा अनुसार सड़क, रेल या हवाई मार्ग—किसी भी माध्यम से इस दिव्य शिवधाम के दर्शन के लिए पहुँच सकते हैं।

📍 पता (Address) :

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, द्वारका, जिला: देवभूमि द्वारका, (पिनकोड: 361 335), गुजरात, भारत।

✈️ हवाई मार्ग से

यदि आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं, तो नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सबसे नजदीकी हवाई अड्डे हैं—

  • पोरबंदर एयरपोर्ट – 125 किमी
  • जामनगर एयरपोर्ट – 127 किमी

दोनों शहरों से द्वारका के लिए नियमित बसें और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध रहती हैं, जिनके माध्यम से आसानी से मंदिर पहुँचा जा सकता है।

🚆 रेल मार्ग से

द्वारका रेलवे स्टेशन से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी भी लगभग 16 किलोमीटर है। स्टेशन से बाहर निकलते ही ऑटो, टैक्सी और स्थानीय परिवहन के साधन सीधे मंदिर तक जाते हैं।

🛣️ सड़क मार्ग से

नागेश्वर मंदिर, द्वारका शहर से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। द्वारका से नियमित बसें, टैक्सियाँ और निजी वाहन आसानी से उपलब्ध रहते हैं। सड़क मार्ग सुगम और सुंदर समुद्री तट के दृश्य से भरपूर है।


श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि भगवान शिव की अनंत कृपा, सुरक्षा और आध्यात्मिक ऊर्जा का जीवंत प्रतीक है। दारुकावन की पवित्र भूमि पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग भक्तों को भय, विष-दोष और नकारात्मकताओं से मुक्त कर शांति और शिवत्व का अनुभव कराता है। यदि आप सच्चे मन से यहाँ दर्शन करते हैं, तो महादेव की कृपा आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य लाती है।

यदि यह जानकारी आपको उपयोगी लगी हो, तो इसे अपने परिवार और मित्रों के साथ अवश्य साझा करें और “ॐ नमः शिवाय” का स्मरण करते हुए शिव भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ें। 🔱🙏

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