श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – नर्मदा तट पर स्थित दिव्य शिवधाम
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे बसे पवित्र मांधाता द्वीप पर विराजमान है। बारह ज्योतिर्लिंगों में इसका स्थान चौथा है। विशेष बात यह है कि यह दिव्य ज्योतिर्लिंग उस द्वीप पर स्थित है, जिसका प्राकृतिक आकार स्वयं “ॐ” अक्षर जैसा दिखाई देता है। इसी पवित्र स्थल पर ममलेश्वर या अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी स्थापित है, जिन्हें ओंकारेश्वर के समकक्ष और अभिन्न माना जाता है। यह शिवधाम एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है, और अपनी अनूठी आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण श्रद्धालुओं को विशेष रूप से आकर्षित करता है।
नर्मदा और कावेरी नदियों के पवित्र संगम पर स्थित पावन मंडान्धाता द्वीप, जिसे शिवपुरी भी कहा जाता है, भगवान ओंकारेश्वर की अनन्त उपस्थिति से आलोकित है। अद्वैत वेदांत के महान आचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा रचित यह स्तुति ओंकारेश्वर की दिव्यता और उनके आत्म-प्रकाशित स्वरूप की महिमा का वर्णन करती है। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर बसे ओंकारेश्वर तक इंदौर से लगभग 77 किलोमीटर और मोरटक्का से करीब 13 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचा जाता है। यहाँ नर्मदा नदी दो धाराओं में विभाजित होकर एक प्राकृतिक द्वीप का निर्माण करती है, जिसे मंधाता या शिवपुरी कहा जाता है। लगभग 4 किलोमीटर लंबे और 2 किलोमीटर चौड़े इस द्वीप का स्वरूप देववाणी “ॐ” जैसा प्रतीत होता है, जिसके कारण इसे ओंकारेश्वर का नाम प्राप्त हुआ।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा
1. प्राचीन पुराणों के अनुसार, विंध्याचल पर्वत ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। पर्वतराज की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और प्रणव लिंग अर्थात् ओंकार रूप में प्रकट हुए। देवताओं की प्रार्थना पर यह दिव्य लिंग दो भागों में विभाजित हुआ— पहला ज्योतिर्लिंग स्वरूप श्री ओंकारेश्वर, और दूसरा अमलेश्वर या ममलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जहाँ शिव के भौतिक लिंग की पूजा की जाती है।
2. एक अन्य मान्यता के अनुसार, इक्ष्वाकु वंश में एक महान सम्राट उत्पन्न हुए—राजा मान्धाता। वे राजा युवनाश्व के पुत्र थे, जिन्हें स्वयं इंद्रदेव ने अपने संरक्षण में पाला और धर्म, नीति तथा शस्त्रविद्या की शिक्षा प्रदान की। उनके जन्म के समय सभी ग्रह उच्च स्थिति में थे, जिसके कारण उनमें अद्वितीय बल, तेज और असामान्य पराक्रम का संचार हुआ। बड़े होकर मान्धाता ने सौ अश्वमेघ यज्ञ सम्पन्न किए और सम्पूर्ण पृथ्वी पर चक्रवर्ती सम्राट के रूप में प्रतिष्ठित हुए। राजा मान्धाता केवल बलवान ही नहीं, बल्कि महान तपस्वी भी थे। भगवान शिव के दिव्य दर्शन की अभिलाषा में वे नर्मदा नदी के तट पर पहुँचकर कठोर तपस्या में निमग्न हो गए। उनके अखंड समर्पण से प्रसन्न होकर स्वयं भोलेनाथ उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें वरदान देने को तत्पर हुए।
राजा मान्धाता ने विनम्रता के साथ एक अनोखा वर माँगा—उन्होंने प्रार्थना की कि महादेव यहीं निवास करें, ताकि उन्हें प्रतिदिन शिवदर्शन का सौभाग्य मिलता रहे। उनके इस पवित्र निवेदन से परमपिता ब्रह्मा अत्यंत प्रसन्न हुए। उनके आनंदित कंठ से “ॐ” का उच्चारण हुआ, और उसी क्षण भगवान शिव वहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए। ब्रह्मदेव द्वारा किए गए इस दिव्य “ॐकार” के कारण इस पवित्र ज्योतिर्लिंग का नाम ॐकारेश्वर महादेव पड़ा। ब्रह्माजी ने राजा मान्धाता को यह आशीर्वाद भी दिया कि उनके ही वंश में भविष्य में भगवान विष्णु का एक अवतार प्रकट होगा। राजा मान्धाता की तपस्या और शिवदर्शन की इस कथा के कारण इस पवित्र द्वीप को मान्धाता द्वीप कहा जाता है, जिसे शिवद्वीप के नाम से भी जाना जाता है। आज भी यह धरा शिवभक्तों के लिए अनंत आस्था और दिव्यता का केंद्र बनी हुई है।
3. ओंकारेश्वर धाम से जुड़ी एक और मनोहर कथा मिलती है, जिसके अनुसार यहीं पर धन के देवता कुबेर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी निष्ठा और भक्ति से महादेव आनंदित हुए और वरदान देते हुए कुबेर को यक्षों का अधिपति तथा समस्त धन-संपदा का स्वामी नियुक्त किया। इसी के साथ उन्होंने कुबेर को भव्य लंका नगरी भी प्रदान की थी। परंतु समय बीतने पर राक्षसराज रावण ने लंका को कुबेर से छीन लिया। उस समय भगवान रुद्र ने कुबेर को आश्रय देते हुए उन्हें दिव्य अलकापुरी का स्वामी बना दिया, जो आज भी कुबेर का पवित्र लोक माना जाता है।
कथा यह भी बताती है कि इसी पावन स्थल पर महादेव ने अपनी जटाओं से कावेरी नदी को प्रकट किया था। यह पवित्र धारा शिव की परिक्रमा करते हुए आगे बढ़ती है और फिर नर्मदा नदी में आकर मिल जाती है। आज भी ओंकारेश्वर में कावेरी की धारा को नर्मदा में समाहित होते हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो इस दिव्य कथा को सजीव प्रमाणित करती है।
ओंकारेश्वर मंदिर की भव्य वास्तुकला – प्राचीनता और दिव्यता का अनूठा संगम
ओंकारेश्वर मंदिर अपनी असाधारण वास्तुकला और आध्यात्मिक आभा के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। नर्मदा तट पर स्थित यह दिव्य शिवधाम उत्तर भारतीय शैली में निर्मित है, जिसकी ऊँची शिखर संरचना दूर से ही भक्तों को आकर्षित करती है। मंदिर किसने और कब बनवाया, इसका कोई प्रमाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं मिलता, जिससे इसकी प्राचीनता और भी रहस्यमयी प्रतीत होती है।
प्राचीन गर्भगृह और उसकी विशेषता
मंदिर का गर्भगृह अत्यंत प्राचीन शैली में निर्मित है, जो एक छोटे मंदिर के आकार जैसा दिखता है। इसका गुंबद पत्थरों की कई परतों को जोड़कर बनाया गया है, जो इसे अनोखा और दृढ़ स्वरूप प्रदान करता है। यह पवित्र गर्भगृह नदी के दक्षिणी किनारे के गहरे हिस्से पर स्थित है और उत्तर दिशा की ओर मुख किए हुए है। इसके विपरीत, मंदिर का बड़ा और नया भाग दक्षिण दिशा की ओर बना है। यही कारण है कि गर्भगृह, मुख्य द्वार और ऊँचे शिखर की रेखाएं एक सीधी धुरी में नहीं आतीं। यह अद्वितीय निर्माण शैली मंदिर को अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों से अलग पहचान देती है।
विशाल सभा मंडप और पाँच मंज़िलों का दिव्य वैभव
मंदिर में स्थित विशाल सभा मंडप लगभग 14 फीट ऊँचा है, जिसे 60 भारी-भरकम स्तंभ सहारा देते हैं। इस भव्य मंडप में प्रवेश करते ही भक्त एक अद्भुत आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं। मंदिर कुल पाँच मंज़िलों का है, और प्रत्येक तल पर अलग-अलग देवताओं की प्रतिष्ठा की गई है—
- प्रथम तल: श्री ओंकारेश्वर
- द्वितीय तल: श्री महाकालेश्वर
- तृतीय तल: श्री सिद्धनाथ
- चतुर्थ तल: श्री गुप्तेश्वर
- पंचम तल: ध्वजाधारी देवता
ऊपर से लहराती ध्वजा भक्तों को दूर से ही शिवधाम की ओर आकर्षित करती है। ओंकारेश्वर मंदिर की यही अनोखी संरचना, उसका आध्यात्मिक माहात्म्य और प्राचीन शिल्पकला इसे भारत के सबसे पवित्र और विशिष्ट ज्योतिर्लिंगों में अद्वितीय बनाती है।
ओंकारेश्वर मंदिर का पूजन-विधान और पवित्र पालकी परंपरा
ओंकारेश्वर धाम में प्रतिदिन होने वाले पूजन और अनुष्ठान इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की आध्यात्मिक ऊर्जा को और अधिक प्रबल बनाते हैं। यहाँ दिनभर तीन प्रमुख आरतियाँ होती हैं—
- प्रातःकालीन पूजा मंदिर ट्रस्ट द्वारा की जाती है,
- मध्याह्न आरती सिंधिया परिवार के पुजारियों द्वारा संपन्न होती है,
- संध्या आरती होल्कर परिवार के पुजारियों द्वारा आयोजित की जाती है।
दिनभर भक्तों की भीड़ मंदिर परिसर में उमड़ी रहती है। श्रद्धालु नर्मदा नदी में पवित्रीकरण स्नान करने के बाद जल से भरे कलश, पुष्प, बेलपत्र, नारियल और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करते हैं। कई भक्त विशेष पूजन, रुद्राभिषेक और महाभिषेक भी स्थानीय पुजारियों की सहायता से करवाते हैं। उत्सवों और मेलों के समय तो यहाँ भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
सोमवार की स्वर्ण पालकी – आस्था और उल्लास का अद्भुत संगम
ओंकारेश्वर धाम में प्रत्येक सोमवार एक दिव्य परंपरा का आयोजन होता है। भगवान ओंकारेश्वर की त्रिमुखी मूर्ति को सुन्दर स्वर्ण पालकी में विराजमान कर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। नगाड़ों, ढोलों और झांझ की मंगल ध्वनियों के बीच यह पालकी यात्रा आरंभ होती है। नदी तट पर पूजन के उपरांत यह डोला या पालकी नगर की विभिन्न गलियों से गुजरती है। भक्तजन हर-हर महादेव और “ॐ शंभु भोलेनाथ” के जयघोष के साथ नृत्य करते हुए इस शोभायात्रा के साथ चलते हैं। विशेषकर सावन मास में यह परंपरा अत्यंत भव्य रूप ले लेती है, जहाँ पूरा वातावरण भक्तिभाव, संगीत और शिवमय ऊर्जा से भर उठता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – दैनिक समय-सारणी (Darshan & Aarti Timings)
यात्रा की योजना बनाने से पहले ओंकारेश्वर धाम की समय-सारणी अवश्य देख लें, ताकि आप बिना किसी व्यवधान के सभी दर्शन और आरती का लाभ प्राप्त कर सकें। दर्शन सुबह 05:00 AM से पहले, रात 09:30 PM के बाद, तथा आरती और श्रृंगार के समय बंद रहते हैं। विशेष पर्वों, मेलों या त्योहारों के दौरान दर्शन समय में परिवर्तन संभव है।
🔸 दैनिक समय-सारणी
04:30 AM – 05:00 AM
मंगला आरती एवं भोग
भोर की पवित्र वेला में होने वाली यह आरती अत्यंत मनोहारी होती है।
05:00 AM – 12:20 PM
मंगला दर्शन
सुबह से दोपहर तक खुला रहने वाला यह समय सामान्य दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त है।
12:20 PM – 01:15 PM
मध्यान्ह भोग
इस समय भगवान को मध्याह्न भोग लगाया जाता है।
01:15 PM – 04:00 PM
मध्यान्ह दर्शन
भोग के बाद दोबारा मंदिर दर्शन के लिए खुलता है।
04:00 PM – 04:30 PM
सायंकालीन श्रृंगार
इस दौरान भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
04:30 PM – 08:30 PM
श्रृंगार दर्शन
संध्या के इस समय भक्त भगवान के अलौकिक श्रृंगार के दर्शन करते हैं।
08:30 PM – 09:00 PM
श्रृंगार आरती
रात्रिकालीन आरती मन को अद्भुत शांति प्रदान करती है।
09:00 PM – 09:30 PM
शयन दर्शन
दिन के अंतिम दर्शन, जिसमें भगवान के शयन रूप के दर्शन कर भक्त धन्य हो जाते हैं।
ओंकारेश्वर के आसपास स्थित प्रमुख मंदिर – दर्शन योग्य पवित्र स्थल
ओंकारेश्वर धाम केवल ज्योतिर्लिंग दर्शन भर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके आसपास कई प्राचीन और दिव्य मंदिर स्थित हैं, जहाँ हर भक्त अवश्य पहुँचता है। ये मंदिर नर्मदा तट की आध्यात्मिक ऊर्जा और सनातन संस्कृति की समृद्धता को दर्शाते हैं।
1. पंचमुखी गणेश मंदिर
ओंकारेश्वर मुख्य मंदिर के मार्ग में स्थित यह दिव्य मंदिर भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव के रूप में समर्पित है।
- यहाँ विराजित पंचमुखी गणेश भगवान की मूर्ति स्वयं-प्रकट (स्वयंभू) मानी जाती है।
- मूर्ति में दाएँ दो मुख, बाएँ दो मुख और सामने एक मुख विद्यमान है।
- मान्यता है कि यह मूर्ति उसी शिला से प्रकट हुई, जहाँ अन्तर्यामी भगवान ओंकारेश्वर प्रकट हुए थे।
- भादों माह की चतुर्थी को यहाँ विशेष यज्ञ का आयोजन होता है।
भक्त ओंकारेश्वर मंदिर में प्रवेश से पहले यहाँ दर्शन अवश्य करते हैं।
2. ममलेश्वर मंदिर (अमरेश्वर महादेव)
नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित ममलेश्वर मंदिर, जिसे अमरेश्वर नाम से भी जाना जाता है, ओंकारेश्वर यात्रा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। भक्त पहले ओंकारेश्वर और फिर ममलेश्वर महादेव का दर्शन कर अपनी यात्रा को पूर्ण मानते हैं।
- मंदिर की दीवारों पर 1063 ईस्वी के प्राचीन अभिलेख और माहिम्न स्तोत्र खुदे हुए हैं।
- यह मंदिर अपनी उत्कृष्ट प्राचीन शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है।
- महारानी अहिल्याबाई होलकर यहाँ नित्य पूजा करती थीं, और आज भी होलकर राज्य के पुजारी पारंपरिक विधि से पूजा-अर्चना करते हैं।
- यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित धरोहर घोषित है।
- वर्तमान में इसका प्रबंधन अहिल्याबाई खासगी ट्रस्ट करता है।
3. गोविंदेश्वर मंदिर एवं गुफा
ओंकारेश्वर के प्रवेश द्वार के पास स्थित यह पावन स्थान अद्वैत वेदांत के प्रणेता आदि गुरु शंकराचार्य की दीक्षा भूमि माना जाता है।
- यहीं उन्होंने अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से शिक्षा और योग दीक्षा प्राप्त की थी।
- जिस स्थान पर दीक्षा हुई, वह गोविंदेश्वर मंदिर कहलाता है।
- पास में स्थित गुफा, जहाँ गुरु गोविंद भगवत्पाद ध्यानस्थ रहते थे, गोविंदेश्वर गुफा के नाम से प्रसिद्ध है।
- इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1989 में जगद्गुरु जयेंद्र सरस्वती द्वारा कराया गया था।
- उस अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने शिलान्यास किया था।
4. वृधेेश्वर मंदिर
ममलेश्वर मंदिर के समीप स्थित यह सुंदर मंदिर अपनी अद्भुत नक्काशी और मनोहारी मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ भगवान विष्णु के 24 अवतारों की आकर्षक प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो इसे और भी भव्य बनाती हैं।
5. महाकालेश्वर मंदिर
मुख्य ओंकारेश्वर मंदिर के नीचे स्थित यह मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की याद दिलाता है।
- ओंकारेश्वर में ऊपर भगवान महाकाल और नीचे भगवान ओंकार विराजते हैं;
- जबकि उज्जैन में इनकी स्थिति इसके विपरीत है।
ओंकारेश्वर यात्रा को पूर्ण माना जाता है जब भक्त महाकालेश्वर के भी दर्शन कर लेते हैं।
6. गुरुद्वारा ओंकारेश्वर साहिब
सिख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने अपने उदासी यात्राओं के दौरान ओंकारेश्वर का पावन दर्शन किया था।
उनकी स्मृति में निर्मित गुरुद्वारा ओंकारेश्वर साहिब आज हिंदू और सिख समुदाय दोनों के लिए आस्था का पवित्र केंद्र है।
7. अन्नपूर्णा मंदिर
यह विशाल और प्राचीन मंदिर परिसर आध्यात्मिकता और शांति से परिपूर्ण है।
- यहाँ स्थित सर्वमंगला मंदिर में देवी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती की सुंदर मूर्तियाँ स्थापित हैं।
- मंदिर परिसर की विशेष आकर्षण है—35 फुट ऊँची भगवान श्रीकृष्ण की विराट स्वरूप वाली प्रतिमा, जिसका वर्णन श्रीमद् भागवद्गीता में मिलता है।
8. कोटि तीर्थ घाट – सबसे प्रमुख और पुण्यदायी स्थान
मुख्य ओंकारेश्वर मंदिर के ठीक सामने स्थित कोटि तीर्थ घाट को अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ नर्मदा में आचमन या स्नान करने से एक करोड़ तीर्थों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि यह घाट ओंकारेश्वर यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है। कोटि तीर्थ घाट के अलावा भी ओंकारेश्वर में अनेक पवित्र घाट हैं, जहाँ भक्तगण श्रद्धा और भक्ति से स्नान करते हैं। इनमें शामिल हैं- चक्र तीर्थ घाट, भैरव घाट, गौमुख घाट, केवलराम घाट, ब्रह्मपुरी घाट, नगर घाट, संगम घाट और अभय घाट है।
9. गौरी सोमनाथ मंदिर
भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित गौरी सोमनाथ मंदिर अपनी अद्भुत कला और भव्यता के कारण विशेष पहचान रखता है। इसकी संरचना में खजुराहो के मंदिरों की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। माना जाता है कि इस पवित्र धाम का निर्माण 11वीं शताब्दी में परमार राजवंश द्वारा कराया गया था। तीन मंजिला इस विशाल मंदिर को भूमिज शैली में बनाया गया है, जो प्राचीन भारतीय वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। गर्भगृह में स्थापित काले पत्थर का विशाल 6 फुट ऊँचा शिवलिंग यहाँ का मुख्य आकर्षण है। मराठा काल में इस मंदिर का पुनर्निर्माण भी हुआ, और आज इसे राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा गया है। यह मंदिर न केवल ऐतिहासिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि शिवभक्तों के लिए गहन आध्यात्मिक अनुभूति का स्थान भी है।
10. गोविंद भगवत्पाद गुफाएँ
ओंकारेश्वर नगरी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थल है — गोविंद भगवत्पाद गुफाएँ। इन्हीं दिव्य गुफाओं में आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद के सान्निध्य में दीक्षा और ज्ञान प्राप्त किया था। यही वह स्थान है जहाँ से उनके जीवन में परिवर्तनकारी आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ हुआ और जिसने आगे चलकर उन्हें अद्वैत वेदांत के सार्वभौमिक सिद्धांतों की स्थापना करने की प्रेरणा दी। यह गुफाएँ आज भी साधकों और श्रद्धालुओं के लिए ध्यान और शांति का पावन केंद्र हैं।
11. केदारेश्वर मंदिर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित केदारेश्वर मंदिर 11वीं शताब्दी की प्राचीन धरोहर है। नर्मदा और कावेरी के संगम तट पर बसा यह मंदिर अपनी जटिल और मनमोहक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। भगवान केदार को समर्पित यह मंदिर उत्तराखंड के पवित्र केदारनाथ मंदिर से अद्भुत समानता रखता है। इसकी शांत वातावरण, प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को गहन श्रद्धा और दिव्यता का अनुभव कराती है।
ओंकारेश्वर नगरी – आदिम “ॐ” की ध्वनि से स्पंदित पावन धाम और
ओंकारेश्वर को प्रेमपूर्वक ओंकार जी भी कहा जाता है। “ओंकार” शब्द स्वयं “ॐ” से उत्पन्न माना जाता है—वह दिव्य बीज मंत्र, जिसका उच्चारण प्रत्येक पूजा और मंत्रोच्चार से पहले किया जाता है। नर्मदा तट पर बसा यह पवित्र नगर धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
ओंकारेश्वर की तीन पवित्र पुरियाँ
ओंकारेश्वर नगरी तीन प्रमुख पुरियों में विभाजित है—
- ब्रह्मपुरी: यहाँ नदी के दक्षिणी तट पर भगवान ब्रह्मा का मंदिर स्थित है।
- विष्णुपुरी: इस क्षेत्र में भगवान विष्णु का पवित्र मंदिर स्थापित है।
- शिवपुरी: यही वह स्थान है जहाँ भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान है।
इन तीनों पुरियों का आध्यात्मिक संतुलन ही ओंकारेश्वर को त्रिदेवों की ऊर्जा से सम्पन्न एक दिव्य धाम बनाता है।
ओंकारेश्वर का इतिहास – राजवंशों, योद्धाओं और जनजातियों का अनूठा संगम
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में मांधाता ओंकारेश्वर क्षेत्र पर भील शासकों का शासन था। बाद में यह धाम परमार वंश, मालवा के सुल्तानों, और आगे चलकर ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के अधिकार में आता गया। अंततः वर्ष 1824 में यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।
भीलों और राजपूतों का संबंध
ओंकारेश्वर के इतिहास से जुड़ी एक रोचक घटना भी मिलती है। अंतिम भील शासक नाथू भील का स्थानीय प्रमुख महंत दरियाव गोसाईं से विवाद हो गया। विवाद बढ़ने पर दरियाव गोसाईं ने सहायता हेतु जयपुर नरेश को पत्र भेजा। इसके उत्तर में जयपुर राजा ने अपने भाई और मालवा के झालरपाटन के सूबेदार भरत सिंह चौहान को ओंकारेश्वर भेजा। स्थिति को शांत करने के लिए अंततः भरत सिंह ने नाथू भील की एकमात्र पुत्री से विवाह किया। इसी के साथ अन्य राजपूत योद्धाओं ने भी भील कन्याओं से विवाह कर 1165 ईस्वी में मांधाता में बसना प्रारंभ किया। समय के साथ इन राजपूत-भील वंशजों को भिलाला कहा जाने लगा। भरत सिंह के वंशजों ने कई वर्षों तक ओंकारेश्वर पर शासन किया। ब्रिटिश शासनकाल में यह पवित्र धाम राव परिवार के अधीन जागीर के रूप में रहा।
ओंकारेश्वर मंदिर घूमने का सर्वोत्तम समय
ओंकारेश्वर की आध्यात्मिक यात्रा का आनंद लेने के लिए सावन का पवित्र महीना (जुलाई–अगस्त) सबसे अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस दिव्य समय में भगवान शिव के भक्त दूर-दूर से यहाँ पहुँचते हैं, जहाँ वे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, नर्मदा जी में पवित्र स्नान, और सच्चे भाव से की गई पूजा का अद्भुत अनुभव प्राप्त करते हैं। हालाँकि, अगर आप शांत और सुहावने मौसम में इस पवित्र धाम की यात्रा करना चाहते हैं, तो अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। सर्दियों के दौरान यहाँ की जलवायु मनमोहक रहती है, जिससे दर्शन, नर्मदा परिक्रमा और आसपास के तीर्थ स्थलों की यात्रा बेहद आरामदायक हो जाती है।
ओंकारेश्वर कैसे पहुँचें?
मध्यप्रदेश के हृदय में स्थित पवित्र तीर्थ ओंकारेश्वर इंदौर के निकट होने के कारण देशभर से आसानी से पहुँचा जा सकता है। नर्मदा तट पर बसे इस दिव्य धाम तक पहुँचने के लिए सड़क, रेल और हवाई—तीनों माध्यमों से सुविधाजनक यात्रा विकल्प उपलब्ध हैं। इंदौर और खंडवा से भक्त प्राइवेट टैक्सी के माध्यम से सीधे ओंकारेश्वर पहुँच सकते हैं।
📍 पता (Address) :
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
ओंकारेश्वर, जिला–खंडवा (मध्य प्रदेश), भारत।
पिन कोड :– 450554
🚗 सड़क मार्ग से (By Road):
सड़क मार्ग से ओंकारेश्वर पहुँचना सबसे सरल माना जाता है।
- सनावद से ओंकारेश्वर के लिए एक सुगम सड़क मार्ग उपलब्ध है।
- खंडवा और बुरहानपुर से आने वाले यात्री भी इसी मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।
यह मार्ग अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और रास्ते भर प्राकृतिक दृश्य मन को आनंदित करते हैं।
🚆 रेल मार्ग से (By Train):
सनावद रेलवे स्टेशन
- दूरी: 12 किलोमीटर
- यहाँ से खंडवा के लिए मेमू ट्रेनें उपलब्ध हैं।
सनावद से ऑटो, बस या टैक्सी द्वारा तीर्थक्षेत्र पहुँचा जा सकता है।
खंडवा रेलवे जंक्शन
- दूरी: 72 किलोमीटर
- देश के लगभग सभी बड़े शहरों से एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनों द्वारा जुड़ा हुआ
खंडवा से सड़क मार्ग द्वारा ओंकारेश्वर आसानी से पहुँचा जा सकता है।
✈️ हवाई मार्ग से (By Air):
देवी अहिल्याबाई होलकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, इंदौर –
- दूरी: 77 किलोमीटर
- दिल्ली, मुंबई और देश के प्रमुख शहरों से नियमित उड़ानें उपलब्ध
इंदौर से टैक्सी या बस द्वारा आसानी से ओंकारेश्वर पहुँचा जा सकता है।
🚌 बस मार्ग से (By Bus)
मोरटक्का बस स्टैंड
- दूरी: 12 किलोमीटर
- इंदौर, उज्जैन, खर्गोन और खंडवा के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध
बस से यात्रा करने वाले यात्री मोरटक्का से लोकल वाहन लेकर मंदिर परिसर तक पहुँच सकते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल मंदिर नहीं, बल्कि भक्ति और आध्यात्मिक अनुभव का अद्भुत केंद्र है। नर्मदा तट पर स्नान, भगवान शिव के दर्शन और प्राचीन मंदिरों की भव्यता हर श्रद्धालु के जीवन को समृद्ध बनाती है। आशा है कि यह जानकारी आपकी ओंकारेश्वर यात्रा को और भी सार्थक, सहज और भक्तिमय बनाएगी। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा हो, तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें और नीचे कमेंट में बताएं—ओंकारेश्वर मंदिर में आप कब दर्शन करने की योजना बना रहे हैं?
ॐ नमः शिवाय।