प्रभास पाटन का पवित्र धाम: सोमनाथ मंदिर का आध्यात्मिक परिचय
श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला और आदि ज्योतिर्लिंग माना जाता है। “सोम” शब्द चंद्रदेव अर्थात् चंद्रमा का प्रतीक है, जबकि “नाथ” का अर्थ है भगवान। गुजरात राज्य के गिर सोमनाथ ज़िले के प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ मंदिर अरब सागर के किनारे पश्चिमी तट पर विराजमान है। यह तीर्थ भारत के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण धामों में से एक है, जिसका उल्लेख स्कंदपुराण, श्रीमद्भागवत महापुराण और शिवपुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में भी भगवान सोमेश्वर का गुणगान पवित्र नदियों—गंगा, यमुना और पूर्वगामी सरस्वती—के साथ किया गया है, जो इस तीर्थ की प्राचीनता और आध्यात्मिक महिमा को दर्शाता है।
सोमनाथ का हरीहर तीर्थधाम श्रीकृष्ण के नीजधाम प्रस्थान का पावन स्थल है। जहाँ एक शिकारी के बाण से वे आहत हुए, वह स्थान आज भालका तीर्थ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण हिरण, कापिला और सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम—जहाँ ये समुद्र में मिलती हैं—पर पहुँचे और हरण नदी के शांत किनारे उन्होंने अपने दिव्य प्रस्थान की लीला संपन्न की। यही वह पुण्य स्थान है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अंतिम लीला पूरी कर नीजधाम की यात्रा की थी। यह पावन धरा सदियों से भक्तों की श्रद्धा और भक्ति का प्रमुख तीर्थस्थल रही है।
कथाओं के अनुसार, चंद्रदेव को अपने ससुर दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्ति भगवान सोमनाथ की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। शिवपुराण और नंदी उपपुराण में भगवान शिव स्वयं कहते हैं कि वे बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में विशेष रूप से प्रतिष्ठित हैं, और सोमनाथ इन 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम है। इसीलिए यह स्थान शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
मान्यता है कि इस समुद्रतटीय मंदिर का निर्माण चार दिव्य चरणों में हुआ—पहले स्वर्ण से भगवान सोम ने, फिर रजत से सूर्यदेव ने, तीसरी बार काष्ठ से भगवान कृष्ण ने और अंततः पत्थरों से राजा भीमदेव ने इसका निर्माण कराया। इतिहास के छह बड़े विध्वंसों को सहने के बाद भी यह मंदिर पुनर्निर्माण और सांस्कृतिक एकता का गौरवशाली प्रतीक बनकर आज भी अडिग खड़ा है।
वर्तमान सातवाँ मंदिर कैलास महामेरु शैली में निर्मित है, जिसका श्रेय भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को जाता है। मंदिर की संरचना में गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप शामिल हैं। इसका 155 फुट ऊँचा शिखर, 10 टन का कलश और 27 फुट ऊँचा ध्वजदंड इसकी भव्यता को और बढ़ाते हैं। मंदिर के निकट स्थित “अबाधित समुद्र मार्ग तीर्थ स्तंभ” दक्षिण ध्रुव तक 9936 किमी तक बिना किसी भू-भाग के मार्ग को संकेतित करता है—जो प्राचीन भारतीय भौगोलिक ज्ञान का अद्भुत प्रतीक माना जाता है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्मित मंदिर भी यहीं समीप स्थित है।
इसी धरा पर बना गीता मंदिर 18 संगमरमर के स्तंभों पर स्थित है, जिन पर श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेशों को सुन्दरता से उकेरा गया है। पास ही लक्ष्मीनारायण मंदिर स्थित है। बलरामजी की गुफा वह पावन स्थान है, जहाँ से भगवान बलराम नीजधाम-पाताल को प्रस्थान कर गए। यहीं परशुराम तपोभूमि है, जहाँ भगवान परशुराम ने कठोर तपस्या कर क्षत्रिय संहार के पाप से मुक्ति प्राप्त की थी। माना जाता है कि महाभारतकाल में पांडवों ने जलप्रभास तीर्थ में स्नान करके यहाँ पाँच शिव मंदिरों की स्थापना की थी।
चंद्रदेव और सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित एक दिव्य कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं—जो सभी नक्षत्रों का स्वरूप मानी जाती हैं—का विवाह चंद्रदेव के साथ किया था। प्रारंभ में चंद्र सभी पत्नियों के प्रति समान भाव रखते थे, किंतु धीरे-धीरे उनका स्नेह केवल रोहिणी पर केंद्रित हो गया। रोहिणी के प्रति अत्यधिक मोह के कारण वे अन्य पत्नियों की उपेक्षा करने लगे।
अनदेखी से पीड़ित होकर शेष 26 पत्नियों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से इसकी शिकायत की। दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया कि सभी पत्नियों के प्रति उनका कर्तव्य समान होना चाहिए। यद्यपि चंद्र ने उस समय उनकी बात स्वीकार कर ली, परंतु जल्द ही वे फिर रोहिणी के आकर्षण में खो गए और स्थिति पहले जैसी ही हो गई।
जब प्रजापति दक्ष को ज्ञात हुआ कि चंद्र उनके उपदेश को बिल्कुल महत्व नहीं दे रहे, तो उन्होंने क्रोधित होकर चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा और उनका शरीर क्षय रोग से ग्रसित हो जाएगा। श्राप मिलते ही चंद्र का दिव्य तेज और सौंदर्य नष्ट होने लगा। यह देखकर सभी पत्नियाँ दुखी हुईं और अपने पिता से श्राप वापस लेने की विनती की, परंतु दक्ष ने असहाय होकर कहा कि वे अपना श्राप लौट नहीं सकते।
अपनी पीड़ा से व्याकुल चंद्रदेव तब सृष्टिकर्ता ब्रह्मदेव की शरण में पहुँचे और समाधान पूछा। ब्रह्मदेव ने उन्हें बताया कि इस कष्ट से मुक्ति केवल भगवान शिव ही दे सकते हैं। उन्होंने चंद्र को प्रभास तीर्थ जाकर महादेव की कठोर तपस्या करने का निर्देश दिया।
ब्रह्मा की आज्ञा से चंद्र प्रभास क्षेत्र पहुँचे और वहाँ एक शिवलिंग की स्थापना कर घोर तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने छह माह तक एक पैर पर खड़े रहकर महा मृत्युंजय मंत्र का दस करोड़ बार जाप किया। उनकी यह तपस्या इतनी शक्ति और भक्ति से भरपूर थी कि वह समस्त ब्रह्मांड में प्रतिध्वनित होने लगी।
चंद्रदेव की परम निष्ठा देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें साक्षात दर्शन दिए। महादेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि क्षयरोग से उन्हें कोई हानि नहीं होगी। साथ ही यह वरदान दिया कि महीने के पहले पंद्रह दिनों में उनका तेज घटेगा और अगले पंद्रह दिनों में धीरे-धीरे पुनः पूर्ण कांति प्राप्त करेगा। यही घटना चंद्र कलाओं के घटने-बढ़ने का आधार बनी।
चंद्रदेव ने कृतज्ञ होकर प्रभु शिव को दंडवत प्रणाम किया और निवेदन किया कि वे उसी शिवलिंग में सदैव ज्योतिर्लिंग रूप में विराजें। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और माता पार्वती के साथ वहीं प्रकट होकर सोमेश्वर नाम से प्रतिष्ठित हो गए। “सोम” अर्थात चंद्र और “ईश्वर” अर्थात भगवान—इसी कारण यह धाम आगे चलकर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहलाया।
मान्यता है कि सोमनाथ की पूजा करने से व्यक्ति हर प्रकार के रोग, कष्ट और नकारात्मकता से मुक्त होता है तथा जीवन में शांति, संतुलन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
सोमनाथ का प्राचीन इतिहास
- वैदिक शोधों और स्कंद पुराण के प्रभास खंड के अनुसार, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्रथम प्राण-प्रतिष्ठा वैवस्वत मन्वंतर के त्रेता युग में श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन हुई मानी जाती है।
- स्वामी श्री गजाननंद सरस्वती जी के अनुसार, यह पवित्र धाम लगभग 7,99,25,105 वर्ष पुराना है। इसलिए सोमनाथ मंदिर को हिन्दू परंपरा में अनादि और सनातन आस्था का अविनाशी प्रतीक माना जाता है।
- शिवपुराण और नंदी उपपुराण में वर्णित है कि भगवान शिव ने स्वयं कहा— “मैं पूरे संसार में विराजमान हूँ, पर विशेष रूप से 12 स्थलों पर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट होता हूँ।” इन बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ प्रथम है, इसलिए इसे “आदि ज्योतिर्लिंग” कहा जाता है।
- 11वीं से 18वीं शताब्दी के बीच कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने बार-बार इस मंदिर को नष्ट किया। किंतु हर बार हिन्दू समाज ने अद्भुत साहस के साथ इसे पुनः निर्माण कर वापस खड़ा किया।
- आज का आधुनिक और भव्य सोमनाथ मंदिर लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के दृढ़ संकल्प का परिणाम है। 13 नवम्बर 1947 को उन्होंने सोमनाथ के खंडहरों का दर्शन किया और इसके पुनर्निर्माण का प्रण लिया। 11 मई 1951 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस वर्तमान मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की।
सोमनाथ मंदिर परिसर के प्रमुख दर्शनीय स्थल
1. श्री कपार्दी विनायक मंदिर
यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाला माना जाता है।
2. श्री हनुमान मंदिर
श्रीराम भक्त हनुमान का यह पवित्र स्थान सोमनाथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण भाग है।
3. वल्लभ घाट – सूर्यास्त का अलौकिक दृश्य
यहाँ से दिखने वाला सूर्यास्त अत्यंत मनमोहक होता है। समुद्र लहरों की ध्वनि और मंदिर की छटा मिलकर दिव्य वातावरण का निर्माण करती है।
4. ‘जय सोमनाथ’ साउंड एंड लाइट शो
हर शाम 7:45 से 8:45 बजे तक प्रस्तुत किया जाने वाला यह आकर्षक कार्यक्रम सोमनाथ मंदिर के इतिहास, महिमा और पौराणिक घटनाओं को अद्भुत प्रकाश प्रभावों के साथ दर्शाता है। समुद्र की गूँजते स्वर इस अनुभव को और भी अलौकिक बनाते हैं।
5. अहिल्याबाई मंदिर
1782 में मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने यह मंदिर बनवाया था। कठिन राजनीतिक परिस्थितियों के समय में भी उन्होंने शिवपूजा की परंपरा को निर्बाध रूप से आगे बढ़ाया।
सोमनाथ मंदिर घूमने का सर्वोत्तम समय
सोमनाथ मंदिर पूरे वर्ष दर्शन के लिए खुला रहता है, लेकिन यदि आप यहाँ की सुंदरता, शांति और मौसम का वास्तविक आनंद लेना चाहते हैं, तो अक्टूबर से फरवरी का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस अवधि में मौसम सुहावना और ठंडा रहता है, जिससे समुद्र तट, मंदिर परिसर और आसपास के पवित्र स्थलों का भ्रमण अधिक सुखद हो जाता है।
सोमनाथ में महाशिवरात्रि (फरवरी–मार्च) के दौरान अद्भुत आध्यात्मिक उत्साह देखने को मिलता है। इस पावन पर्व पर लाखों भक्त भगवान शिव के दर्शन करने पहुँचते हैं और पूरा वातावरण ‘हर हर महादेव’ की गूँज से भर जाता है। इसी तरह कार्तिक पूर्णिमा, जो दीपावली के आसपास आती है, सोमनाथ में अत्यंत हर्ष और भक्ति के साथ मनाई जाती है।
इन त्योहारों के समय दर्शन का आनंद कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि मंदिर की दिव्य सजावट, सांस्कृतिक कार्यक्रम और समुद्र किनारे होने वाली विशेष पूजा यात्रियों को अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करती है।
सोमनाथ मंदिर के आसपास घूमने योग्य प्रमुख पवित्र स्थल
सोमनाथ केवल एक ज्योतिर्लिंग नहीं, बल्कि यह पवित्र भूमि अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक और पुराणों में वर्णित तीर्थों से घिरी हुई है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु आसपास स्थित इन दिव्य स्थानों का दर्शन कर अपनी यात्रा को और भी पूर्ण बनाते हैं। आइए जानते हैं सोमनाथ मंदिर के आसपास स्थित प्रमुख दर्शनीय स्थलों के बारे में—
1. भालका तीर्थ (Bhalka Tirth)
सोमनाथ से लगभग 5 किलोमीटर दूर प्रभास–वेरावल मार्ग पर स्थित यह तीर्थ अत्यंत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि इसी स्थान पर शिकारी जरा ने भगवान श्रीकृष्ण के चरण को हिरण समझकर बाण चला दिया था। उस समय श्रीकृष्ण पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न मुद्रा में विराजमान थे। यह स्थल महाभारत काल की उस दिव्य लीला का जीवंत प्रतीक है।
2. देहोत्सर्ग तीर्थ (Dehotsarg Tirth)
सोमनाथ से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर हिरण नदी के तट पर स्थित यह स्थल वह पावन भूमि है जहाँ से भगवान श्रीकृष्ण अपने नीजधाम को प्रस्थान किए थे। महाभारत, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि ग्रंथ इस दिव्य लीला का विस्तृत वर्णन करते हैं।
3. गीता मंदिर (Geeta Mandir)
यह मंदिर 18 खंभों पर आधारित है और हर खंभे पर श्रीमद्भगवद् गीता के एक अध्याय का शिलालेख अंकित है। आसपास महाप्रभुजी की बैठक, बलदेव जी की गुफा, लक्ष्मीनारायण मंदिर और भीमेश्वर महादेव जैसे कई पावन स्थान भी स्थित हैं।
4. महाप्रभुजी बैठक (Mahaprabhuji Baithak)
84 बैठकों में से यह प्रभास पाटन की 65वीं दिव्य बैठक है। यह स्थान गौलोकधाम के समीप स्थित है और वैष्णव परंपरा के श्रद्धालुओं में अत्यंत पूजनीय माना जाता है।
5. श्री राम मंदिर (Shri Ram Mandir)
श्री सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा वर्ष 2017 में निर्मित यह भव्य मंदिर भगवान राम को समर्पित है। गर्भगृह में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी की सुंदर संगमरमर की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। साथ ही भगवान हनुमान और भगवान गणेश के छोटे मंदिर भी सम्मिलित हैं।
6. अहिल्याबाई मंदिर (Ahilyabai Temple)
सन 1783 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित यह प्राचीन मंदिर मूल मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है। यहाँ एक भूमिगत कक्ष भी है जहाँ सोमनाथ महादेव का विराजमान रूप स्थापित है।
7. रुद्रेश्वर मंदिर (Rudreshwar)
प्रभास खंड में केदारेश्वर के रूप में वर्णित यह मंदिर आज रुद्रेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। पश्चिममुखी यह नगर शैली का मंदिर 13वीं शताब्दी का वास्तुकला-प्रधान धरोहर है।
8. अवधूतेश्वर मंदिर (Avadhuteshwar Temple)
यहाँ की शिवलिंग राजा व्रज द्वारा स्थापित बताई जाती है। वर्तमान में यह अवधूतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है।
9. वेणेश्वर मंदिर (Veneswar)
13–14वीं शताब्दी का यह मंदिर शंकुाकार गुंबद के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के पास ‘एल’ आकार की एक सुंदर बावड़ी भी देखने को मिलती है।
10. प्राची तीर्थ (Prachi Tirth)
पूर्वजों के श्राद्ध और पितृ कर्मों के लिए यह अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि यदुवंश के भगवान श्रीकृष्ण ने भी यहाँ अपने पितरों का तर्पण किया था। धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह स्थल काशी के समान माना जाता है।
11. गौरी कुंड (Gauri Kund)
प्रभास क्षेत्र में कई वैष्णव और शैव कुंड हैं, जिनमें गौरी माता कुंड विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
12. त्रिवेणी घाट (Triveni Ghat)
हिरण, कपिला और सरस्वती—इन तीन पवित्र नदियों का दिव्य संगम स्थल। यह स्थान एक शक्तिशाली आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का एहसास कराता है।
13. भद्रकाली शिलालेख (Bhadrakali Rock Inscription)
1169 ईस्वी का यह महत्वपूर्ण शिलालेख श्रीमद्भवभृगपति की स्तुति तथा उस काल के सोमनाथ मंदिर की स्थापना का विवरण प्रस्तुत करता है।
14. दैत्यसुदन मंदिर (Daityasudan Temple)
चूने से पुता यह सफेद मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। अंदर काले संगमरमर से बनी दैत्यसुदन स्वरूप की प्रतिमा अत्यंत आकर्षक है।
15. शव नो तिम्बो (Shav No Timbo)
पोस्ट-हड़प्पा काल का यह प्राचीन टीला अनेक पुरातात्विक वस्तुओं जैसे ईंटें, लाल व काले मिट्टी के बर्तन, शंख की चूड़ियाँ और खिलौनों आदि के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है।
16. सोमनाथ म्यूज़ियम (Somnath Museum)
यहाँ 10वीं से 12वीं शताब्दी के सोमनाथ मंदिर के दुर्लभ अवशेष एवं शिल्प संरक्षित किए गए हैं।
17. मातृ वाव (Matri Vav)
पत्थरों को काटकर बनाई गई छोटी–छोटी गुफाओं और कक्षों वाला यह प्राचीन बाव है। प्रत्येक कक्ष में शिवलिंग और पुरातन मूर्तियाँ स्थापित हैं।
18. सूर्य मंदिर (Sun Temple)
प्रभास क्षेत्र में सूर्य उपासना के कई अवशेष मिलते हैं। त्रिवेणी के पास स्थित सूर्य मंदिर उन्हीं में से एक है।
19. प्राचीन जैन मंदिर (Old Jain Temple)
सरल बाहरी बनावट और सुंदर नक्काशीदार आंतरिक संरचना वाला यह मंदिर अत्यंत पुरातन है। प्रभास क्षेत्र में लगभग दस जैन मंदिर हैं, जिनमें चंद्रप्रभु स्वामी मंदिर प्रमुख है।
20. प्राचीन गुफाएँ (Old Caves)
1st–2nd शताब्दी ईस्वी की ये ऐतिहासिक गुफाएँ प्रभास क्षेत्र की पुरातनता का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
21. हवेली शेरी (Haveli Sheri)
प्रभास पाटन की कई पुरानी हवेलियाँ अपनी पारंपरिक लकड़ी की कारीगरी और प्राचीन स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध हैं।
22. वेरावल गेट (Veraval Gate)
11वीं–12वीं शताब्दी में निर्मित यह पश्चिममुखी द्वार प्रभास पाटन के ऐतिहासिक वैभव का प्रतीक है।
सोमनाथ कैसे पहुँचें?
सोमनाथ तीर्थ धाम तक पहुँचना बेहद आसान है, क्योंकि यह सड़क, रेल और हवाई मार्ग—तीनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। भक्त अपने सुविधानुसार किसी भी माध्यम से इस पवित्र धाम की यात्रा कर सकते हैं।
📍 पता (Address) :
सोमनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर रोड, वेरावल,
प्रभास पाटन, गिर सोमनाथ, गुजरात – 362268, भारत।
🚗 सड़क मार्ग से (By Road)
सोमनाथ का सड़क मार्ग पूरे गुजरात से सीधा जुड़ा हुआ है।
- जूनागढ़ से दूरी लगभग 82 किलोमीटर
- भावनगर से लगभग 270 किलोमीटर
- पोरबंदर से करीब 120 किलोमीटर
- अहमदाबाद से दूरी लगभग 410 किलोमीटर
सड़क मार्ग साफ, सुरक्षित और सुगम होने के कारण कई श्रद्धालु कार या बस से यात्रा करना पसंद करते हैं।
🚆 रेल मार्ग से (By Train)
सोमनाथ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन सोमनाथ रेलवे स्टेशन ही है, जो गुजरात के प्रमुख शहरों और भारत के कई बड़े जंक्शनों से सीधी रेल connectivity प्रदान करता है।
यह मार्ग तीर्थयात्रियों के लिए आरामदायक और बजट-फ्रेंडली माना जाता है।
✈️ हवाई मार्ग से (By Air)
अगर आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं, तो दो प्रमुख हवाई अड्डे नज़दीक हैं—
- पोरबंदर एयरपोर्ट – लगभग 120 किलोमीटर
- राजकोट एयरपोर्ट – लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर
इन हवाई अड्डों से टैक्सी और बसों की सुविधा आसानी से उपलब्ध रहती है।
सोमनाथ मंदिर के इस विस्तृत आध्यात्मिक परिचय में हमने प्रभास पाटन की पवित्र भूमि, चंद्रदेव से जुड़ी पौराणिक कथा, मंदिर का प्राचीन इतिहास, परिसर के दर्शनीय स्थल, घूमने का सर्वोत्तम समय, आसपास के प्रमुख तीर्थ और वहाँ तक पहुँचने के मार्ग—इन सभी पहलुओं को सरल भाषा में समझा। आशा है कि यह जानकारी आपकी सोमनाथ यात्रा को और भी सार्थक, सहज और भक्तिमय बनाएगी। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा हो, तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें और नीचे कमेंट में बताएं—सोमनाथ मंदिर में आप कब दर्शन करने की योजना बना रहे हैं?
ॐ नमः शिवाय।