भाई दूज 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और पौराणिक कथा

भाई दूज का महत्व

हिन्दू पंचांग के अनुसार भाई दूज का पावन पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहन के स्नेह, प्रेम और पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना गया है। इस शुभ अवसर पर बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके दीर्घायु, सुख-समृद्धि और मंगलमय जीवन की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार, वस्त्र या धन प्रदान करते हैं और सदैव उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। भाई दूज को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भाऊ बीज, भात्र द्वितीया, भाई द्वितीया, भतरु द्वितीया जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन सुबह स्नान कर बहनें व्रत का संकल्प लेती हैं, पूजन की थाली सजाती हैं, और अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक, कलावा और आरती करती हैं। इसके बाद वे अपने भाई को मिष्ठान और विशेष भोजन कराती हैं, जो इस पर्व की सबसे भावनात्मक और पवित्र परंपरा मानी जाती है।

भाई दूज को “यम द्वितीया” भी कहा जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार यमराज इस दिन अपनी बहन यमुना के घर गए थे। यमुना ने उनका सत्कार करते हुए तिलक किया, भोजन कराया और उनके मंगल की कामना की। यमराज ने प्रसन्न होकर कहा कि जो भी पुरुष इस दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा, वह यमलोक के भय से मुक्त रहेगा और दीर्घायु प्राप्त करेगा। इसी कारण इस दिन यमुना स्नान का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन यमुना में स्नान करने से पापों का नाश होता है, धन और आयु में वृद्धि होती है, और व्यक्ति को मृत्यु के बाद यमदूतों का भय नहीं सताता।

धर्मग्रंथों के अनुसार, भाई दूज केवल एक पारिवारिक उत्सव नहीं, बल्कि एक पवित्र धार्मिक व्रत है जो कर्तव्य, प्रेम और आस्था का संदेश देता है। यह पर्व यमराज और यमुना की पवित्र कथा की स्मृति में मनाया जाता है, जो आज भी भाई-बहन के रिश्ते को अटूट प्रेम, श्रद्धा और संरक्षण के सूत्र में बांधता है। भाई दूज का यह पर्व न केवल संबंधों की मधुरता बढ़ाता है, बल्कि धर्म, कर्तव्य और स्नेह के आदर्शों को भी समाज में जीवित रखता है।

2025 में कब है भाई दूज? – Bhai Dooj Kab Hai

भाई दूज का पर्व वर्ष 2025 में 23 अक्टूबर, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। यह दिन यम द्वितीया के रूप में भी प्रसिद्ध है। इस पवित्र अवसर पर भाई दूज का शुभ मुहूर्त दोपहर 12:50 बजे से 3:07 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि लगभग 2 घंटे 17 मिनट की होगी।

द्वितीया तिथि की शुरुआत 22 अक्टूबर 2025 की रात 8:16 बजे से होगी और यह तिथि 23 अक्टूबर 2025 की रात 10:46 बजे तक रहेगी। इसलिए भक्तजन इस शुभ अवधि में विधि-विधानपूर्वक भाई दूज का पूजन, तिलक और व्रत संपन्न कर सकते हैं।

भाई दूज के दिन के अन्य महत्वपूर्ण शुभ समय – Bhai Dooj Muhurat

मुहूर्त समय
ब्रह्म मुहूर्त 04:20 AM से 05:10 AM
प्रातः सन्ध्या 04:45 AM से 06:00 AM
अभिजित मुहूर्त 11:19 AM से 12:05 PM
विजय मुहूर्त 01:36 PM से 02:21 PM
गोधूलि मुहूर्त 05:24 PM से 05:49 PM
सायाह्न सन्ध्या 05:24 PM से 06:39 PM
अमृत काल 06:57 PM से 08:45 PM
निशिता मुहूर्त 11:17 PM से 12:08 AM, अक्टूबर 24
सर्वार्थ सिद्धि योग 04:51 AM, अक्टूबर 24 से 06:01 AM, अक्टूबर 24

भाई दूज का विशेष योग

रवि योग 04:51 AM, अक्टूबर 24 से 06:01 AM, अक्टूबर 24

भाई दूज पूजा की सामग्री और विधि

भाई दूज पूजा सामग्री सूची

भाई दूज के पावन अवसर पर पूजन के लिए कुछ विशेष वस्तुओं की आवश्यकता होती है। इनमें पूजा की थाली, दीपक, अक्षत (चावल), फूल, फल, मिठाई, देसी घी, और जल प्रमुख हैं। इसके साथ ही, बहनें अपने भाई के लिए श्रीफल, वस्त्र, और मिठाई जैसे उपहार भी रखती हैं, जो प्रेम और सम्मान का प्रतीक माने जाते हैं।

भाई दूज पूजा विधि

  • भाई दूज के दिन प्रातःकाल तेल-उबटन से स्नान करने के बाद स्वच्छ एवं नए वस्त्र धारण करें।
  • घर के पूजास्थल में पंचोपचार विधि से देवताओं की पूजा करें और अपने भाई-बहन के मंगल की कामना करें।
  • मध्याह्न के शुभ समय में भाई अपनी बहन के घर पहुंचें। बहनें पूजा की थाली में हल्दी, कुमकुम, अक्षत और दीपक सजाकर तैयार करें।
  • इसके बाद भाई को चौकी पर बिठाकर, उनके सिर को रुमाल या कपड़े से ढंकने को कहें। फिर बहन अपने भाई के माथे पर हल्दी-कुमकुम से तिलक लगाकर, कलावा (रक्षा सूत्र) बांधें और आरती उतारें
  • आरती के बाद भाई को मिठाई खिलाएं, और यदि वे एक ही घर में रहते हैं, तो दोनों साथ में मध्याह्न भोजन करें।
  • यह परंपरा प्रेम, स्नेह और रक्षा के बंधन को और मजबूत करती है। अंत में भाई अपनी बहन को वस्त्र, उपहार या धनराशि देकर आशीर्वाद और स्नेह व्यक्त करता है।
  • इस तरह भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते को सम्मान, प्रेम और विश्वास के पवित्र बंधन में जोड़ता है।

भाई दूज की पौराणिक कथा: जब यमराज पहुँचे अपनी बहन यमुना के घर

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में देवी यमुना अपने भाई यमराज से प्रतिदिन आग्रह करती थीं कि वे अपने इष्ट मित्रों सहित उनके घर भोजन करने आएं। किंतु यमराज अपने कर्मों में अत्यधिक व्यस्त होने के कारण हर बार कहते — “कल आऊँगा या परसों,” और टाल देते। अंततः कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन देवी यमुना ने हठपूर्वक उन्हें निमंत्रण दिया। बहन के आग्रह को स्वीकार करते हुए यमराज उस दिन अपने गणों सहित यमुना के घर पहुँचे। यमराज ने उस दिन अपने पाश से सभी जीवों को मुक्त कर दिया ताकि वे भी इस शुभ दिन का आनंद ले सकें। यमुना जी ने अपने भाई का अत्यंत प्रेम और श्रद्धा से स्वागत किया। उन्होंने सुगंधित तेलों से यमराज का अभ्यंग किया, उबटन लगाकर स्नान कराया, फिर सुंदर वस्त्र, आभूषण और चंदन-माला से उनका श्रृंगार किया। तत्पश्चात स्वर्ण थाल में अनेक स्वादिष्ट व्यंजन परोसकर यमराज को प्रेमपूर्वक भोजन कराया। भोजन के बाद यमराज ने भी यमुना का पूजन कर उन्हें वस्त्र-आभूषण अर्पित किए।

इसके बाद यमराज ने प्रसन्न होकर कहा — “हे बहन! कोई वर मांगो।” तब देवी यमुना ने विनम्रता से कहा — “हे भ्राता! आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर भोजन के लिए पधारें और जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाकर भोजन करें, उन्हें आप अपने पाश से सदैव मुक्त रखें। उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे — यही मेरा वरदान है।” यमराज ने बहन की यह मंगलकामना स्वीकार करते हुए कहा — “जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान, तर्पण और बहन के घर भोजन करेंगे, वे यमलोक का दर्शन भी नहीं करेंगे।” यमराज ने आगे बताया कि इस दिन यमतीर्थ में स्नान कर, पितरों का तर्पण और सूर्यदेव के समक्ष ‘यम, धर्मराज, काल, दण्डधर, भूताधिप’ आदि नामों का जप करना अत्यंत पुण्यदायी है। इसके बाद भाई को अपनी बहन के घर जाकर सम्मानपूर्वक तिलक और भोजन ग्रहण करना चाहिए। बहन को भी सच्चे मन से प्रार्थना करनी चाहिए — “हे भाई, यमराज और यमुना की कृपा से तुम्हारा जीवन दीर्घ, सुखी और समृद्ध हो।” भोजन के पश्चात भाई को बहन को वस्त्र, धन या उपहार देकर उसका आभार व्यक्त करना चाहिए।

यमराज ने यह भी कहा कि इस दिन यदि किसी व्यक्ति की सगी बहन न हो, तो वह अपनी चचेरी, ममेरी, बुआ की या मुँहबोली बहन के घर जाकर भोजन कर सकता है। यदि ऐसा भी संभव न हो, तो गोमाता, नदी या किसी पवित्र वनिका को बहन मानकर वहीं भोजन करना चाहिए। लेकिन यम द्वितीया के दिन अपने घर भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने वाला नरक में जाता है। इसी पवित्र दिन से भाई-बहन के स्नेह, प्रेम और आशीर्वाद से भरा भाई दूज का पर्व प्रारंभ हुआ। यह दिन यमराज और यमुना के दिव्य मिलन की स्मृति में मनाया जाता है, जो हमें भाई-बहन के अटूट प्रेम और धर्म की पवित्र भावना का संदेश देता है।

प्रसिद्ध “ भाई दूज की कथा” – वीडियो :

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जय यमराज! जय देवी यमुना!

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