छठ पूजा की पूरी जानकारी: पौराणिक कथा, मंत्र और पूजा सामग्री

छठ पूजा भारत का एक प्राचीन और पवित्र पर्व है, जिसे दिवाली के छह दिन बाद बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। यह सूर्य उपासना का सबसे महत्वपूर्ण लोकपर्व माना जाता है, जिसकी विशेषता है, डूबते और उगते दोनों सूर्य की पूजा। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित देश के कई हिस्सों में छठ महापर्व बड़े उत्साह और आस्था के साथ मनाया जाता है। आज यह पर्व न केवल भारत में बल्कि मॉरिशस, त्रिनिदाद, सुमात्रा, जावा जैसे देशों में भी भारतीय समुदाय द्वारा पूरे उत्सव के साथ मनाया जाता है।

‘छठ’ शब्द संस्कृत के ‘षष्ठी’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘छह’। इसलिए यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और इसका समापन सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होता है। इस दौरान व्रती कठोर नियमों और पवित्रता का पालन करते हुए सूर्य देव और छठी माई की उपासना करते हैं।

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, जल, सूर्य और जीवन के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व हमें संयम, श्रद्धा और समर्पण का संदेश देता है। आज के समय में भी छठ महापर्व अपनी भव्यता और पवित्रता के कारण देश-विदेश में भारतीय संस्कृति का उज्ज्वल प्रतीक बना हुआ है।

छठी मैया कौन हैं?

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, जब सृष्टि की रचना हुई तब देवी प्रकृति ने स्वयं को छह भागों में विभाजित किया था। इन छह भागों में से छठा भाग सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण माना गया। इसी छठे स्वरूप को मां छठी मैया या षष्ठी देवी के नाम से जाना जाता है। उन्हें समस्त सृष्टि की पालनकर्ता और मातृशक्ति का सर्वोच्च रूप माना गया है। छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा गया है, जो समस्त प्राणियों की रक्षा और संतानों की दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।

छठ पूजा में छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा क्यों की जाती है?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, छठी मैया को सूर्य देवता की बहन माना जाता है। इसी कारण छठ महापर्व के दौरान सूर्य देव और छठी मैया दोनों की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है। यह पर्व मातृशक्ति, संतान सुख और सूर्य उपासना का अद्भुत संगम है। ऐसा विश्वास है कि जब कोई शिशु जन्म लेता है, तब छठी मैया छह दिनों तक उसकी रक्षा करती हैं और उसे जीवन का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए छठ पूजा के माध्यम से भक्तजन सूर्यदेव से जीवन ऊर्जा और छठी मैया से सुख, समृद्धि तथा संतान की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

छठ पूजा के चारों पवित्र दिनों का संपूर्ण विवरण (2025)

छठ पूजा भारत का एक महान लोकपर्व है, जो चार दिनों तक चलने वाला आस्था, श्रद्धा और पवित्रता का पर्व माना जाता है। हर दिन का अपना अलग महत्व और धार्मिक संदेश होता है। आइए जानते हैं छठ पूजा के इन चारों पावन दिनों की परंपराएं और उनका महत्व विस्तार से :

पहला दिन – नहाय-खाय (25 अक्टूबर 2025, शनिवार)

छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। इस दिन घर की अच्छी तरह सफाई और शुद्धिकरण किया जाता है। व्रती सुबह-सुबह नदी या तालाब में स्नान कर नए वस्त्र धारण करते हैं। स्नान के बाद वे चने की दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का सात्विक भोजन तैयार करते हैं, जिसे कांसे या मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है। यह प्रसाद सूर्य देव को अर्पित करने के बाद व्रती स्वयं ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रती केवल एक बार भोजन करते हैं, और तला-भुना भोजन पूरी तरह वर्जित होता है। व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।

दूसरा दिन – खरना / लोहंडा (26 अक्टूबर 2025, रविवार)

छठ पूजा का दूसरा दिन खरना या लोहंडा कहलाता है, जो अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाते हैं। सूर्यास्त के बाद सूर्य देव की पूजा कर यह प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसके बाद यह प्रसाद परिवार, मित्रों और पड़ोसियों में वितरित किया जाता है। इस दिन ठेकुआ नामक पारंपरिक पकवान भी बनता है, जो छठ का मुख्य प्रसाद माना जाता है। खरना के बाद से व्रती 36 घंटे का कठोर निर्जला व्रत आरंभ करते हैं। मान्यता है कि खरना पूजा के पश्चात छठी मैया घर में प्रवेश करती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।

तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025, सोमवार)

छठ का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं और शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। परिवार के सभी सदस्य नए वस्त्र पहनकर नदी या तालाब के घाट पर पहुंचते हैं। वहां महिलाएं छठ माता के पारंपरिक गीत गाती हैं और बांस की टोकरी (बेहेंगी) में पूजा सामग्री लेकर जाती हैं। नदी तट पर छठ माता का चौरा सजाया जाता है, दीप प्रज्वलित किए जाते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पाँच बार परिक्रमा की जाती है। इस दिन का वातावरण भक्ति, संगीत और आस्था से भरा होता है।

चौथा दिन – उषा अर्घ्य / पारण दिवस (28 अक्टूबर 2025, मंगलवार)

छठ पूजा का अंतिम और सबसे शुभ दिन उषा अर्घ्य या पारण दिवस कहलाता है। इस दिन प्रातःकाल उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। व्रती महिलाएं अपने परिवार के साथ घाट पर पहुंचकर जल में उतरती हैं और भगवान सूर्यदेव से संतान की दीर्घायु, परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की प्रार्थना करती हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती सात या ग्यारह बार परिक्रमा करती हैं और फिर प्रसाद बाँटकर अपना 36 घंटे का निर्जला व्रत पूर्ण करती हैं। यही वह क्षण होता है जब आस्था और तपस्या का यह पवित्र व्रत सफल होता है।

छठ पूजा के ये चार पवित्र दिन केवल पूजा-अर्चना का क्रम नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, श्रद्धा और सूर्य उपासना की महान परंपरा का प्रतीक हैं। यह पर्व हमें प्रकृति, सूर्य और मातृशक्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की प्रेरणा देता है।

छठ पूजा मंत्र

छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। अर्घ्य देने के दौरान इन विशेष मंत्रों का उच्चारण करने से सूर्य देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।

  1. ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
  2. ॐ सूर्याय नमः। ॐ आदित्याय नमः। ॐ नमो भास्कराय नमः।
  3. ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य:।
  4. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणाय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

छठ पूजा की पूजा सामग्री – संपूर्ण विवरण

छठ पूजा, विशेषकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर पूर्वी बिहार और अन्य क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई जाती है। यह चार दिवसीय महापर्व कठिन नियमों और उपवासों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसी में भक्तों की आस्था और भक्ति की गहराई दिखाई देती है। छठ पूजा का महत्व तभी पूर्ण होता है जब सभी पारंपरिक पूजा सामग्री का सही रूप में उपयोग किया जाए।

1. प्रसाद और पकवान:

  • ठेकुआ: छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण और पारंपरिक पकवान।
  • मिठाई और खाजा: गुजिया, लड्डू, गुड़ और दूध से बनी अन्य मिठाइयां।

2. बर्तन और पूजा उपकरण:

  • बांस या पीतल का सूप
  • दूध और जल के लिए गिलास और चम्मच
  • सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे का कलश
  • घाट पर ले जाने के लिए बड़ी टोकरी
  • थाली और दीपक

3. तरल पदार्थ:

  • दूध
  • शुद्ध जल
  • शहद
  • गंगाजल

4. पूजा सामग्री:

  • चंदन, सिंदूर, कुमकुम
  • धुपबत्ती और कपूर
  • मिट्टी के दीए, तेल और बाती
  • नारियल, कलावा और सुपारी
  • फूल और माला

5. फल और सब्जी:

  • शरीफा, नाशपाती, बड़े नींबू (डाभ), सिंघाड़ा
  • ऋतुफल, सुथनी, शकरकंदी, मूली, बैंगन
  • हल्दी और अदरक का पौधा
  • पत्ते लगे हुए 7 गन्ने या ईख: 5 गन्ने घर बनाने के लिए और 2 गन्ने प्रसाद के रूप में टोकरियों में रखने के लिए
  • केले

6. अनाज:

  • गेहूं, चावल, आटा

यह सामग्री छठ पूजा के दौरान भक्तों के लिए अनिवार्य होती है। आप अपनी क्षमता और पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार इसमें कुछ अन्य चीजें भी शामिल कर सकते हैं। सही पूजा सामग्री और विधिपूर्वक अनुष्ठान करने से छठ पूजा का अनुभव अधिक पवित्र, भक्तिमय और फलदायी बनता है।

छठ पूजा की पौराणिक कथा – छठी मैया और सूर्य उपासना की दिव्य गाथा

छठ पूजा की उत्पत्ति और महत्व से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें छठी मैया और सूर्यदेव की उपासना का गहरा संबंध बताया गया है। मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है कि प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी को भगवान सूर्य की बहन माना गया है। यही देवी षष्ठी माता या छठी मैया कहलाती हैं, जो संतान सुख, दीर्घायु और पारिवारिक समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं। छठ पूजा के दौरान छठी मैया और भगवान सूर्य की संयुक्त आराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जब तक भक्त इस व्रत की कथा नहीं सुनते, तब तक यह व्रत अधूरा रहता है। आइए जानते हैं छठ पूजा की प्रमुख पौराणिक कथाएँ :—

राजा प्रियव्रत और षष्ठी माता की कथा

प्राचीन काल में प्रियव्रत नामक एक धर्मपरायण राजा थे, जिनकी पत्नी का नाम मालिनी था। उनके जीवन में धन-वैभव की कोई कमी नहीं थी, परंतु वे संतान सुख से वंचित थे। संतान की प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने महर्षि कश्यप के निर्देशन में पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ के प्रभाव से रानी मालिनी गर्भवती तो हुईं, परंतु उन्होंने एक मृत संतान को जन्म दिया।

इस दुखद घटना से राजा अत्यंत व्याकुल हो गए और आत्महत्या करने का निर्णय लिया। तभी आकाश से एक दिव्य तेज प्रकट हुआ और उसके मध्य में एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। देवी ने कहा – “हे राजन, मैं षष्ठी देवी हूं, जो संतान सुख और सौभाग्य प्रदान करती हूं। यदि तुम सच्चे मन से मेरी पूजा करोगे, तो तुम्हें अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।” राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने देवी के आदेश के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत रखकर छठ माता की विधि-विधान से पूजा की। देवी की कृपा से उन्हें एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। तभी से इस पावन परंपरा की शुरुआत हुई और छठ पूजा का व्रत लोक में प्रचलित हो गया।

त्रेतायुग – रामायण काल से जुड़ी छठ पूजा की कथा

छठ पूजा की एक अन्य कथा त्रेतायुग से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने ऋषियों की सलाह पर राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया। इस यज्ञ के लिए उन्होंने महर्षि मुद्गल को आमंत्रित किया। महर्षि ने भगवान राम और माता सीता को अपने आश्रम में बुलाकर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की आराधना करने का आदेश दिया। माता सीता ने छह दिनों तक व्रत रखकर और विधिपूर्वक सूर्यदेव की उपासना की। इसी से छठ पूजा की यह दिव्य परंपरा प्रारंभ हुई।

द्वापर युग – महाभारत काल से जुड़ी छठ पूजा की कथा

महाभारत काल में पांडवों और द्रौपदी ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः पाने के लिए सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना की थी। कहा जाता है कि छठ पूजा के प्रभाव से उन्हें अपना राज्य, यश और सम्मान पुनः प्राप्त हुआ। एक अन्य मान्यता के अनुसार, कर्ण — जो सूर्यदेव के पुत्र थे — सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन जल में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे। इसी उपासना के बल पर वे एक महान धनुर्धर बने। ऐसा कहा जाता है कि छठ पर्व पर जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा की शुरुआत कर्ण से ही हुई।

कलयुग में छठ पूजा की शुरुआत

छठ पूजा की प्राचीन परंपरा का आरंभ बिहार के गया जिले के ‘देव’ नामक पवित्र स्थान से माना जाता है। कलयुग में छठ पूजा की स्थापना से जुड़ी एक लोककथा बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि एक व्यक्ति को कुष्ठ रोग हो गया था और उसकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। इसी दौरान उसने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य की उपासना करने का निश्चय किया। भक्ति, श्रद्धा और नियमपूर्वक की गई इस उपासना के प्रभाव से उसे कुष्ठ रोग से पूर्ण मुक्ति मिली। यह चमत्कार देखकर आसपास के लोग भी भगवान सूर्य और छठी मैया की आराधना में लग गए। तभी से बिहार सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में छठ पूजा बड़े उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाई जाने लगी। छठ पूजा केवल रोग निवारण का उपाय नहीं, बल्कि यह सूर्य उपासना, मातृशक्ति की आराधना, संतान सुख और परिवार की समृद्धि का दिव्य पर्व बन गई। आज यह पर्व न केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीय समुदायों के बीच भी बड़े भक्तिभाव से मनाया जाता है।

छठ पूजा का महत्व और स्वास्थ्य व आध्यात्मिक लाभ

छठ पूजा केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं, बल्कि यह सूर्य उपासना और मानसिक, शारीरिक शुद्धि का अद्भुत संगम है। इस पावन व्रत के अनुष्ठान ब्रह्मांडीय सौर ऊर्जा के लाभ को प्राप्त करने के लिए भक्त के शरीर और मन को तैयार करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो सूर्य की किरणों से जीवन शक्ति और ऊर्जा का सर्वोत्तम स्रोत मिलता है। यही कारण है कि छठ पूजा के दौरान संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य के समय सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। प्राचीन काल में ऋषि इसी पद्धति का पालन करते थे। वे भोजन और जल के बजाय सूर्य से आवश्यक ऊर्जा को ग्रहण करते थे। आज भी छठ व्रती निर्जला व्रत और शुद्धता के नियमों का पालन कर सूर्य की ऊर्जा से शरीर और मन को पोषण देते हैं।

छठ पूजा के मुख्य लाभ

  1. मानसिक अनुशासन और मानसिक शुद्धि:
    छठ पूजा का सबसे बड़ा उद्देश्य भक्त के मन को शुद्ध करना है। अनुष्ठान और व्रत के दौरान घर और घाट की स्वच्छता, प्रसाद की सफाई और पर्यावरणीय स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

  2. शारीरिक विषहरण:
    36 घंटे के उपवास और सूर्य को अर्घ्य देने की प्रक्रिया से शरीर का प्राकृतिक विषहरण होता है। इस दौरान जैव रासायनिक प्रक्रियाएं सक्रिय होती हैं और शरीर में मौजूद हानिकारक तत्व कम होते हैं।

  3. प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली का सुदृढ़ीकरण:
    उपवास, प्राणायाम, ध्यान और योग जैसी पद्धतियों के माध्यम से शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों की मात्रा कम होती है। यह शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

  4. सूर्य ऊर्जा और हार्मोन संतुलन:
    सूर्य की किरणों से मिलने वाली ऊर्जा फंगल और जीवाणु संक्रमण को कम करती है। रक्त प्रवाह के माध्यम से अवशोषित यह ऊर्जा श्वेत रक्त कोशिकाओं के कार्य को सुधारती है और हार्मोन संतुलन में भी मदद करती है।

छठ पूजा का यह अनुष्ठान केवल भक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा को स्वच्छ और ऊर्जावान बनाने का दिव्य साधन भी है। यह पर्व मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

छठ पूजा गीत : केलवा के पात पर (Chhath Puja: Kelwa Ke Paat Par)

यह छठ पूजा का प्रसिद्ध लोकगीत “केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके” छठ व्रत की गहराई, भक्ति और पारिवारिक प्रेम को खूबसूरती से दर्शाता है। इस गीत में एक भावनात्मक संवाद के रूप में बताया गया है कि एक महिला से पूछा जाता है — वह यह कठोर छठ व्रत किसके लिए कर रही है? इसके उत्तर में वह बड़ी श्रद्धा से कहती है कि वह अपने बेटे, पति या बेटी की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए यह व्रत कर रही है। गीत में उगते हुए सूर्य देव का दिव्य वर्णन है, जहाँ केले, अमरूद और नारियल के पत्तों पर सूर्य की सुनहरी किरणें चमकती हैं और व्रती महिलाएँ श्रद्धा-भक्ति के साथ उन्हें अर्घ्य अर्पित करती हैं। इस गीत के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मातृत्व, समर्पण और परिवार के प्रति निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। यह गीत प्रकृति, आस्था और संस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है, जो छठ पर्व की पवित्रता और आध्यात्मिक भाव को गहराई से महसूस कराता है।

केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके

केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके

हो करेलु छठ बरतिया से झांके ऊंके

हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरितया से केकरा लागी

हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरितया से केकरा लागी

हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी

हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी

हमरो जे बेटवा पवन ऐसन बेटवा से उनके लागी

हमरो जे बेटवा पवन ऐसन बेटवा से उनके लागी

हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी

हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी

अमरुदिया के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झुके

अमरुदिया के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झुके

हे करेलु छठ बरतिया से झांके झुके

हे करेलु छठ बरतिया से झांके झुके

हम तोसे पूछी बरतिया ए बरितिया से केकरा लागी

हम तोसे पूछी बरतिया ए बरितिया से केकरा लागी

हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी

हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी

हमरो जे स्वामी पवन एसन स्वामी उनके लागी

हमरो जे स्वामी पवन एसन स्वामी उनके लागी

हे करेली छठ बरतिया से उनके लागी

हे करेली छठ बरतिया से उनके लागी

नारियर के पात पर उगेलन सुरूजमल झांके झूके

नारियर के पात पर उगेलन सुरूजमल झांके झूके

हे करेलू छठ बरतिया से झांके झूके

हे करेलू छठ बरतिया से झांके झूके

हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी

हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी

हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी

हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी

हमरो जे बेटी पवन ऐसन बेटिया से उनके लागी

हमरो जे बेटी पवन ऐसन बेटिया से उनके लागी

हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी

हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी

प्रसिद्ध “ छठ पूजा गीत : केलवा के पात पर ” – वीडियो :

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जय छठी मैया! जय सूर्यदेव!

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