धनतेरस का महत्व और तिथि – कब और क्यों मनाया जाता है
हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस का शुभ पर्व हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन दीपावली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है और धन, स्वास्थ्य एवं समृद्धि का प्रतीक है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी पवित्र दिन भगवान धन्वंतरि का समुद्र मंथन से प्राकट्य हुआ था। वे देवताओं के वैद्य और आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं। इसी कारण इस दिन को धन्वंतरि जयंती और धन त्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दिन भक्तजन माता लक्ष्मी, भगवान कुबेर, यमराज, और भगवान धन्वंतरि की विधिवत पूजा करते हैं। माना जाता है कि इन देवताओं की आराधना से घर में धन-धान्य, स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
धनतेरस पर सोना-चांदी, धातु के बर्तन, गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, नया वाहन, झाड़ू, और साबुत धनिया जैसी चीज़ें खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पीतल, चांदी या किसी भी शुभ धातु की वस्तु खरीदने से घर में समृद्धि आती है और धन की वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा भाव से पूजन करता है और नई वस्तुएँ खरीदता है, उसे पूरे वर्ष माँ लक्ष्मी की कृपा और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
धनतेरस पूजा मुहूर्त
धनतेरस पूजा का पर्व वर्ष 2025 में शनिवार, 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन का धनतेरस पूजा मुहूर्त शाम 6:58 बजे से 7:58 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि 01 घंटा 00 मिनट की होगी।
इसी दिन यम दीपम का आयोजन भी किया जाएगा। प्रदोष काल शाम 5:28 बजे से 7:58 बजे तक रहेगा, जबकि वृषभ काल रात 6:58 बजे से 8:55 बजे तक रहेगा।
त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 18 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:18 बजे होगा और इसका समापन 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 1:51 बजे होगा।
धनतेरस पूजा सामग्री लिस्ट
विधि-विधान से धनतेरस की पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार हैं –
- माता लक्ष्मी जी व श्री गणेश जी की तस्वीर
- भगवान धन्वंतरि की तस्वीर
- चौकी, गंगाजल, लाल वस्त्र, पूजा की थाली
- मिट्टी के दीये, रुई की बाती
- सरसों का तेल, फूल और माला, सुपारी
- कुबेर यंत्र, पानी से भरा कलश
- मौली / कलावा, सिक्का, जल से भरा एक पात्र
- कपूर, कुमकुम, अक्षत (साबुत चावल)
- रौली, अवीर, गुलाल, हल्दी, चंदन, कौड़ी
- फल, मिष्ठान, पान या पान का बीड़ा
- खील-बताशे, नए बर्तन, नई झाड़ू
- स्वास्तिक या अल्पना बनाने के लिए आटा या कुमकुम
विशेष जानकारी:
धनतेरस के दिन नए बर्तन व सोना-चांदी के आभूषण खरीदना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इन सभी सामग्रियों के साथ विधि-विधान से धनतेरस की पूजा करने से घर हमेशा धन-धान्य से पूर्ण रहता है।
धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi in Hindi)
धनतेरस के शुभ दिन पर माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है। सही विधि-विधान से पूजा करने से घर में धन, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। नीचे दी गई सरल और पूर्ण धनतेरस पूजा विधि का पालन कर आप माता लक्ष्मी और श्री गणेश जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
1. घर और मंदिर की शुद्धि करें
धनतेरस की शाम, शुभ मुहूर्त में सबसे पहले अपने घर के मंदिर या पूजा स्थान की सफाई करें। इसके बाद गंगाजल या स्वच्छ जल का छिड़काव करें ताकि वातावरण पवित्र हो जाए।
2. गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा तैयार करें
मंदिर में विराजमान भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र को हल्दी और कुमकुम से तिलक करें। यह सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
3. अक्षत और पुष्प अर्पित करें
दोनों देवताओं को अक्षत (साबुत चावल) और ताजे पुष्प अर्पित करें। यह पूजा का एक आवश्यक भाग है, जो आपकी श्रद्धा को दर्शाता है।
4. दीपक और धूप जलाएं
इसके बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाकर वातावरण को सुगंधित और शांत बनाएं। दीपक जलाना लक्ष्मी जी के आगमन का प्रतीक माना जाता है।
5. पवित्र मंत्रों का जाप करें
पूजा के दौरान नीचे दिए गए मंत्रों का श्रद्धा और भक्ति भाव से उच्चारण करें —
- ॐ गं गणपतये नमः
- ॐ महालक्ष्म्यै नमः
इन मंत्रों के जाप से घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार होता है।
6. भोग अर्पण करें
पूजा के पश्चात जो भी मिठाई, फल या प्रसाद उपलब्ध हो, उसे भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को अर्पित करें। भोग अर्पण के बाद परिवार के सभी सदस्यों को प्रसाद वितरित करें।
7. आरती करें
अब श्री गणेश जी और माता लक्ष्मी जी की आरती उतारें। आरती गाकर या सुनकर पूजा का समापन करें। (आरती का पाठ अंत में दिया गया है, आप इसे अपने मंदिर में गा सकते हैं या सुन सकते हैं।)
8. क्षमा याचना करें
पूजा के दौरान यदि कोई त्रुटि रह गई हो, तो ईश्वर से क्षमा याचना करें। यह विनम्रता और सच्ची भक्ति का प्रतीक है।
9. श्रद्धा और भक्ति भाव बनाए रखें
ध्यान रखें कि पूजा का सबसे महत्वपूर्ण तत्व भक्ति और सच्चा मनोभाव है। मन से की गई पूजा ही देवी-देवताओं को प्रिय लगती है।
10. प्रार्थना करें
माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश से धन, समृद्धि, सुख, शांति और जीवन में प्रगति की प्रार्थना करें।
11. यम दीपक का विशेष महत्व
धनतेरस की रात यमराज देवता की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन “यम दीपक” अवश्य जलाना चाहिए।इसके लिए एक बड़ा दीपक लें, उसमें घी और बत्ती डालकर जलाएं और घर के बाहर दक्षिण दिशा में रख दें। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और घर में शांति तथा आयु की वृद्धि होती है। धनतेरस पर यम दीपक जलाना अत्यंत शुभ और पुण्यकारी माना गया है।
यह संपूर्ण धनतेरस पूजा विधि सरल और प्रभावशाली है। सच्चे मन, श्रद्धा और भक्ति भाव से की गई पूजा से माँ लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होती हैं और आपके घर में धन-धान्य, सौभाग्य और खुशहाली का वास करती हैं।
धनतेरस की पौराणिक कथा – देवी लक्ष्मी और कृषक की अद्भुत कहानी
धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, दीपावली पर्व की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथाएँ हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में वर्णित हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही हैं। इन कथाओं के माध्यम से हमें इस पावन पर्व की महत्ता, आस्था और आध्यात्मिक संदेश का ज्ञान मिलता है। धनत्रयोदशी के दिन भक्तजन एक दिवसीय व्रत रखते हैं और संध्या के समय लक्ष्मी-कुबेर की पूजा के बाद व्रत का पारण करते हैं। इसी कारण इसे धनतेरस व्रत कथा भी कहा जाता है।
देवी लक्ष्मी और कृषक की कथा
एक समय की बात है, देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वह उनके साथ पृथ्वी लोक पर भ्रमण करना चाहती हैं। भगवान विष्णु ने अनुमति तो दी, पर साथ ही एक शर्त रखी — देवी लक्ष्मी पृथ्वी की माया में नहीं फँसेंगी और दक्षिण दिशा की ओर दृष्टि नहीं डालेंगी। देवी ने यह वचन स्वीकार कर लिया।
परंतु जब वे दोनों पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे, देवी लक्ष्मी का चंचल मन दक्षिण दिशा की सुंदरता देखकर आकर्षित हो उठा। वचन का उल्लंघन करते हुए उन्होंने दक्षिण दिशा की ओर देखा और वहाँ फैले सरसों के फूलों और गन्ने के खेतों की मनोहर छटा देखकर मोहित हो गईं। उन्होंने सरसों के फूलों से स्वयं को सजाया और गन्ने के रस का आनंद लेने लगीं। भगवान विष्णु को जब यह ज्ञात हुआ कि देवी लक्ष्मी ने अपना वचन तोड़ दिया है, तो वे अप्रसन्न हुए। उन्होंने देवी को प्रायश्चितस्वरूप बारह वर्षों तक एक निर्धन कृषक के खेतों में सेवा करने का आदेश दिया। देवी लक्ष्मी ने आज्ञा का पालन किया, और उनके आगमन से वह गरीब किसान देखते ही देखते धनवान बन गया।
बारह वर्षों के पश्चात जब देवी लक्ष्मी के वैकुण्ठ लौटने का समय आया, तो भगवान विष्णु मानव रूप में उन्हें लेने पृथ्वी पर आए। परंतु अब वह कृषक देवी लक्ष्मी के बिना रहना नहीं चाहता था। भगवान विष्णु ने कई बार समझाया, पर कृषक ने उन्हें जाने नहीं दिया। अंततः देवी लक्ष्मी ने अपना दिव्य रूप प्रकट किया और कृषक को सत्य बताया। उन्होंने कहा कि अब उन्हें वैकुण्ठ लौटना ही होगा, परन्तु वे वचन देती हैं कि हर वर्ष दीपावली से एक दिन पूर्व, अर्थात कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) के दिन, वे उसके घर आशीर्वाद देने अवश्य आएँगी।
उस दिन से कृषक ने अपने घर को स्वच्छ और पवित्र रखने की परंपरा शुरू की, और देवी लक्ष्मी के स्वागत में रात्रि भर अखंड दीपक जलाने लगा। इससे वह हर वर्ष अधिक समृद्ध होता गया। जब लोगों ने यह कथा सुनी, तो उन्होंने भी उसी दिन देवी लक्ष्मी और कुबेर जी का पूजन प्रारंभ किया।
तभी से धनतेरस के दिन लक्ष्मी-कुबेर पूजन की परंपरा आरंभ हुई, जो आज तक चलती आ रही है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा, स्वच्छता और सेवा भाव से माँ लक्ष्मी की कृपा सदैव प्राप्त होती है।
धनतेरस की दुसरी पौराणिक कथा – भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य और आयुर्वेद का उद्गम
धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, केवल धन और समृद्धि का पर्व नहीं, बल्कि भगवान धन्वंतरि के अवतरण दिवस के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार धन्वंतरि देव क्षीरसागर से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।
समुद्र मंथन और अमृत प्राप्ति की कथा
विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, एक बार देवता और असुर अमृत प्राप्ति के लिए एकत्र हुए। अमृत की प्राप्ति के लिए उन्होंने भगवान विष्णु के मार्गदर्शन में क्षीरसागर का मंथन करने का निर्णय लिया। मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया।
मंथन के दौरान पर्वत के डूबने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने कच्छप (कछुए) का अवतार लिया और पर्वत को अपनी पीठ पर स्थिर किया, जिससे मंथन की प्रक्रिया निर्विघ्न चलती रही। जैसे-जैसे मंथन आगे बढ़ा, क्षीरसागर से अनेक दिव्य रत्न प्रकट हुए — जैसे कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, पारिजात वृक्ष, और देवी लक्ष्मी।
अंततः मंथन के अंतिम चरण में एक अद्भुत दृश्य देखा गया — समुद्र से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए, जिनके हाथों में अमृत से भरा स्वर्ण कलश था। यही थे भगवान धन्वंतरि, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
आयुर्वेद के जनक – भगवान धन्वंतरि
भगवान धन्वंतरि केवल अमृत के दाता ही नहीं, बल्कि आयुर्वेद के जनक भी माने जाते हैं। उन्होंने मानवजाति को रोगों के निदान, उपचार और स्वस्थ जीवन के रहस्य बताए। उनके ग्रंथों में औषधियों, जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों का गहन ज्ञान मिलता है, जो आज भी आयुर्वेद का आधार है।
धन्वंतरि पूजा और धनतेरस का महत्व
भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं और स्वास्थ्य, आयु, धन और समृद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि धनतेरस के दिन शुभ वस्तुओं की खरीदारी करने से घर में समृद्धि, सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से इस दिन भगवान धन्वंतरि की आराधना करता है, उसके जीवन में रोगों का नाश होता है और स्वास्थ्य का वरदान प्राप्त होता है।
इस प्रकार, धनतेरस न केवल धन और वैभव का पर्व है, बल्कि यह स्वास्थ्य, दीर्घायु और जीवन के संतुलन का भी प्रतीक है — जो भगवान धन्वंतरि की कृपा से संभव है।
प्रसिद्ध “ धनतेरस की कथा” – वीडियो :
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