नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन साधक अपने मन को माँ के चरणों में समर्पित करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार, ‘ब्रह्म’ का अर्थ तपस्या है, और ‘चारिणी’ का अर्थ आचरण करने वाली, अर्थात् ब्रह्मचारिणी वह देवी हैं जो तप का आचरण करती हैं। उनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल सुशोभित रहता है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। उनकी आराधना से भक्तों को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। मां ब्रह्मचारिणी बुद्धि और ज्ञान प्रदान करने वाली देवी हैं, इसलिए विशेष रूप से विद्यार्थी और साधक उनकी पूजा से लाभान्वित होते हैं। वे तपस्या और संयम का प्रतीक हैं, और उनकी उपासना से भक्तों में तप एवं आत्मसंयम की शक्ति बढ़ती है।
ब्रह्मचारिणी माता की कहानी क्या है? – Brahmacharini Mata Story
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और देवी मैना की पुत्री हैं। नारद मुनि के सुझाव पर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी अत्यंत कठिन साधना के कारण ही उन्हें तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी कहा जाने लगा।
कहा जाता है कि अपनी तपस्या के दौरान देवी ने तीन हजार वर्षों तक केवल टूटे हुए बिल्व पत्रों का सेवन किया। इसके बाद उन्होंने बिल्व पत्र भी त्याग दिए और निर्जल व निराहार रहकर कई हजार वर्षों तक तपस्या की। जब उन्होंने पत्तों का भी त्याग कर दिया, तब वे अपर्णा कहलाने लगीं। उनकी कठोर तपस्या के कारण उनका शरीर अत्यंत क्षीण हो गया, जिसे देखकर देवता, ऋषि, सिद्धगण और मुनि सभी ने उनकी साधना की प्रशंसा की और कहा, “हे देवी, आपकी तपस्या अवश्य सफल होगी।” अंततः उनकी साधना सफल हुई, और उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है।
माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र – Maa Brahmacharini Mantra
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
मां ब्रह्मचारिणी बीज मंत्र
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
प्रार्थना मंत्र
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र मंत्र
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
कवच मंत्र
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
माता ब्रह्मचारिणी की आरती – Brahmacharini Mata Aarti
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥१॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥२॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥३॥
जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥४॥
कमी कोई रहने ना पाये। कोई भी दुःख सहने न पाये॥५॥
उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने॥६॥
रद्रक्षा की माला ले कर। जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर॥७॥
आलस छोड़ करे गुणगाना। माँ तुम उसको सुख पहुँचाना॥८॥
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम॥९॥
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी॥१०॥
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि – Brahmacharini Mata ki Puja Vidhi
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। पूजा स्थल को गंगाजल या शुद्ध जल से शुद्ध करें। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ और पवित्र स्थान पर स्थापित करें। इसके बाद पूजा स्थान पर आसन बिछाकर बैठें और श्रद्धापूर्वक मां की आराधना करें। मां ब्रह्मचारिणी को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। भोग स्वरूप पंचामृत एवं मिठाई अर्पित करें और साथ ही पान, सुपारी व लौंग चढ़ाएं। इसके पश्चात देवी ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें और अंत में भक्तिभाव से मां की आरती करें और सभी को प्रसाद वितरित करें।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करना अत्यंत सरल है, और उन्हें प्रसन्न करना उससे भी आसान है। यदि मां ब्रह्मचारिणी को सच्चे मन से पुकारा जाए, तो वे तुरंत प्रकट होती हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप को अनंत फल देने वाला माना गया है। उनकी आराधना से ज्ञान की वृद्धि होती है और सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। माता ब्रह्मचारिणी ने अपने कठोर तप से असंख्य राक्षसों का अंत किया था, जिससे उन्हें असीम शक्ति प्राप्त हुई।
मां अपने भक्तों पर सदैव कृपा बनाए रखती हैं और उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं। उनके आशीर्वाद से सभी कार्य सफल होते हैं, और परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। माता की आराधना से संयम, बल, सात्त्विकता और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। उनकी शक्ति के प्रभाव से तन और मन के समस्त दोष दूर होते हैं, जिससे जीवन में उत्साह, उमंग, धैर्य और साहस का संचार होता है। मां दुर्गा का यह दिव्य और अलौकिक स्वरूप जीवन में प्रकाश एवं सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है।