नवरात्रि का पहला दिन शैलपुत्री
नवरात्रि के महाअनुष्ठान का प्रथम दिन पूर्ण रूप से आदिशक्ति माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप, देवी शैलपुत्री को समर्पित होता है। नवदुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में प्रथम पूजनीय देवी शैलपुत्री ही हैं। वे समस्त लोकों की जननी और आदिशक्ति माँ पार्वती के रूप में जानी जाती हैं। भक्तों के बीच वे ‘गौरी’ और ‘उमा’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
शास्त्रों में माँ शैलपुत्री का स्वरूप चंद्रमा के समान उज्ज्वल बताया गया है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र से सुशोभित स्वर्ण मुकुट उनकी दिव्यता को बढ़ाता है। देवी वृषभ (बैल) पर विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित रहता है। साथ ही, चमेली का पुष्प उन्हें अत्यंत प्रिय माना जाता है।
मां शैलपुत्री का निवास काशी नगरी, वाराणसी में माना जाता है, जहां उनका एक अत्यंत प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर में माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। विशेष रूप से, नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है, उसके वैवाहिक जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
माँ शैलपुत्री ने कठिन तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया था। इसलिए मान्यता है कि उनकी कृपा से कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है और भक्तों को सुखी एवं सफल दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भाग्य का कारक ग्रह चंद्रमा देवी शैलपुत्री के अधीन माना जाता है। यदि चंद्रमा की अशुभ स्थिति जीवन में बाधाएं उत्पन्न कर रही हो, तो माँ शैलपुत्री की पूजा करने से इसके दोषों को दूर किया जा सकता है। उनकी उपासना से साधक का मन ‘शैल’ अर्थात पर्वत की भांति स्थिर और एकाग्र हो जाता है, जिससे विचारों में दृढ़ता आती है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
शैलपुत्री माता की कहानी क्या है? – Shailputri Mata ki Katha
शिव महापुराण के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं और ऋषियों को यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया गया। लेकिन उन्होंने अपने दामाद, भगवान शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।
जब माता सती को पता चला कि उनके पिता एक भव्य यज्ञ का आयोजन कर रहे हैं, तो उनका मन भी उसमें शामिल होने के लिए व्याकुल हो उठा। उन्होंने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी, लेकिन शिवजी ने समझाया कि चूंकि उन्हें आमंत्रण नहीं मिला है, इसलिए बिना बुलाए वहां जाना उचित नहीं होगा।
माता सती शिवजी की बात से सहमत नहीं हुईं और अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गईं। वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि प्रजापति दक्ष ने उनकी उपस्थिति की उपेक्षा की और भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहे। अपने पति का यह अपमान देखकर माता सती अत्यधिक दुखी, क्रोधित और आहत हो गईं। वे यह अपमान सहन नहीं कर सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को भस्म कर लिया।
अपने अगले जन्म में माता सती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और ‘शैलपुत्री’ के नाम से विख्यात हुईं। वे पुनः भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं और उनकी अनन्य भक्त मानी जाती हैं।
माता शैलपुत्री के मंत्र – Maa Shailputri Mantra
मां शैलपुत्री मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
मां शैलपुत्री बीज मंत्र
ह्रीं शिवायै नम:
प्रार्थना मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥१॥
पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥२॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥३॥
स्तोत्र मंत्र
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥१॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥२॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥३॥
कवच मंत्र
ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।
हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।
हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥
माता शैलपुत्री की आरती – Shailputri Mata Aarti
शैलपुत्री माँ बैल असवार।करें देवता जय जय कार॥१॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी।तेरी महिमा किसी ने न जानी॥२॥
पार्वती तू उमा कहलावें।जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥३॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू।दया करें धनवान करें तू॥४॥
सोमवार को शिव संग प्यारी।आरती जिसने तेरी उतारी॥५॥
उसकी सगरी आस पुजा दो।सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥६॥
घी का सुन्दर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के॥७॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें।प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥८॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे।शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥९॥
मनोकामना पूर्ण कर दो।चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥१०॥
माता शैलपुत्री पूजा विधि
पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण, माता शैलपुत्री की पूजा में सफेद रंग का विशेष महत्व है। उनकी उपासना में सफेद वस्त्र, सफेद फूल और सफेद मिष्ठान अर्पित करें। यह रंग पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है, और घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती। माता के इस स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। ‘शैल’ का अर्थ होता है ‘पर्वत’ या ‘पत्थर’, जो अडिग और अटल रहने का प्रतीक है। उनकी आराधना से भक्तों के मन में आत्मविश्वास, धैर्य और संकल्प शक्ति बढ़ती है।
आइए जानते हैं माता शैलपुत्री की पूजा विधि के बारे में।
नवरात्रि के प्रथम दिन, ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और चौकी पर मां दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूरे परिवार के साथ विधि-विधान से कलश स्थापना करें।
कलश स्थापना के पश्चात माता शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। उनकी पूजा षोडशोपचार विधि से की जाती है, जिसमें सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। फिर माता को कुमकुम और अक्षत अर्पित करें। पूजा में सफेद, पीले या लाल फूल अर्पण करें तथा धूप-दीप प्रज्वलित करें। माता के समक्ष पांच देसी घी के दीपक जलाएं और आरती करें।
इसके बाद, शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालीसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं और भोग अर्पित कर पूजा संपन्न करें। संध्या समय में भी माता की आरती करें और उनका ध्यान करें।
माँ शैलपुत्री की पूजा का महत्व
माँ शैलपुत्री की उपासना जीवन में स्थिरता और संतुलन प्रदान करती है। उनकी विधिपूर्वक आराधना से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और घर में समृद्धि एवं खुशहाली आती है।
माँ शैलपुत्री की पूजा से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। साथ ही, नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना करने से चंद्र ग्रह से जुड़े समस्त दोषों का निवारण होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में माँ शैलपुत्री की पूजा करने से जीवन के समस्त संकट, कष्ट और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है, जिससे सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।