श्री राम स्तुति एक प्रसिद्ध आरती है जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है। इसे लोग पूजा या शुभ कामों के समय गाते हैं। कई लोग इसे रोज़ घर में पढ़ते या सुनते हैं। रामायण का पाठ, सुंदरकांड या राम नवमी के दिन इसे सुनना शुभ माना जाता है। आपने इसे कई गायकों की आवाज़ में भी सुना होगा। बहुत से घरों में आज भी सुबह और शाम यह आरती सुनी जाती है। श्री राम स्तुति सुनना बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है, इससे घर में सुख, शांति और अच्छी ऊर्जा बनी रहती है। जो लोग मंत्र जाप नहीं कर पाते, उनके लिए यह स्तुति बहुत उपयोगी होती है। यह स्तुति भगवान श्रीराम की महिमा बताती है और इसे बहुत खास माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे गाने या सुनने से रामायण पढ़ने जितना पुण्य मिलता है। आइए अब इसके शब्दों को जानें।
श्री राम स्तुति – Shri Ram Stuti
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्॥१॥
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्॥२॥
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्॥३॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्॥५॥
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो॥६॥
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली॥७॥
॥सोरठा॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
श्री राम स्तुति अर्थ सहित: – Shri Ram Stuti Meaning
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्॥१॥
अर्थ: श्री रामचंद्र दया और करुणा के प्रतीक हैं। ऐसे प्रभु श्रीराम को मेरा मन हर पल श्रद्धा से नमन करता है। श्रीराम सभी के दिल से डर को दूर करते हैं और जन्म-मृत्यु के डर को कम कर देते हैं। उनकी आंखें खिले हुए कमल की तरह सुंदर हैं, और उनके हाथ, चेहरा और चरण भी लाल कमल जैसे मनमोहक लगते हैं।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्॥२॥
अर्थ: श्रीराम का दिव्य रूप अनगिनत कामदेवों की सुंदरता से भी अधिक आकर्षक है। उनका शरीर घने नीले बादल की तरह दिखता है, जो बिजली की चमक जैसा तेज़ बिखेरता है। वे जनक पुत्री माता सीता के पति हैं, भक्तों के सच्चे मित्र और पूरी दुनिया के लिए प्रकाश की तरह मार्ग दिखाने वाले हैं।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्॥३॥
अर्थ: मैं प्रभु श्रीराम की आराधना करता हूँ, जो दीन-दुखियों पर कृपा करते हैं और राक्षसों तथा उनके वंश का नाश करते हैं। वे रघुकुल के प्रिय पुत्र हैं, आनंद देने वाले हैं, माता कौशल्या के लाल और राजा दशरथ के प्यारे बेटे हैं।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं॥४॥
अर्थ: श्रीराम राजसी मुकुट धारण किए हुए हैं, उनके कानों में चमकदार बालियां हैं और माथे पर तिलक सुशोभित है। वे कीमती रत्नों से सजे हुए हैं। अपनी मजबूत भुजाओं में वे धनुष और बाण धारण करते हैं, जिनसे उन्होंने युद्ध में खर और दूषण को पराजित किया था।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्॥५॥
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम भगवान शिव, शेषनाग और सभी ऋषियों के हृदय को आनंदित करते हैं। हे श्रीराम! आप मेरे हृदय में कमल की तरह विराजमान रहें और मेरे मन से इच्छा, वासना जैसी सारी बुराइयों को दूर कर दें।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो॥६॥
अर्थ: जिससे तुम्हारा मन जुड़ गया है, वही सुंदर और सांवला वर तुम्हें आसानी से मिलेगा। वह दया से भरा हुआ है, बुद्धिमान है और विनम्रता व प्रेम को अच्छी तरह समझता है।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली॥७॥
अर्थ: गौरी जी का ऐसा आशीर्वाद सुनकर सीता और उनकी सभी सखियाँ बहुत खुश हो गईं। तुलसीदास जी कहते हैं कि जब मुनियों ने भवानी (मां पार्वती) की पूजा की, तो उनका मन आनंद से भर गया और उनका हृदय भावविभोर हो उठा।
॥सोरठा॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
अर्थ: जब सीता जी ने जाना कि गौरी जी (मां पार्वती) उन पर प्रसन्न और अनुकूल हैं, तो उनका हृदय अत्यंत प्रसन्न हो गया, जिसकी खुशी शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। उनके शुभ और सुंदर बाएं अंग (जैसे आँख, हाथ या पैर) हल्के-हल्के फड़कने लगे, जो शुभ संकेत माने जाते हैं।