श्रीनाथजी मंदिर (Shrinathji Mandir)

श्रीनाथजी मंदिर, राजस्थान के नाथद्वारा शहर में स्थित एक विश्वप्रसिद्ध और अत्यंत पूजनीय तीर्थस्थल है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के श्रीनाथजी स्वरूप को समर्पित है, जिनका रूप सात वर्ष के बालक के समान है। नाथद्वारा, उदयपुर से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर बनास नदी के पवित्र तट पर स्थित है। यह मंदिर अपने भव्य श्रृंगार, भोग और आलंकरण परंपरा के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

मंदिर में प्रतिदिन श्रीनाथजी के विग्रह को नई पोशाक पहनाई जाती है और तिथि एवं पर्व के अनुसार आकर्षक श्रृंगार किया जाता है। भगवान के श्रृंगार, वस्त्र, आभूषण और खिलौनों की इतनी अद्भुत विविधता है कि कोई भी भक्त अपने पूरे जीवन में एक जैसी छवि दोबारा नहीं देख पाता। श्रीनाथजी के लिए बनाए गए खिलौने सोना, चांदी, हाथी दांत और उच्च गुणवत्ता की धातुओं से बड़े कौशल के साथ निर्मित किए जाते हैं।

मंदिर में दिनभर के आठों प्रहरों में अलग-अलग राग गाए जाते हैं और विविध भोग अर्पित किए जाते हैं। प्रत्येक पूजा-विधि और राग-भोग की व्यवस्था मंदिर समिति द्वारा पूर्व निर्धारित होती है। नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर न केवल भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह भगवान कृष्ण की लीलामयी भक्ति परंपरा का जीवंत स्वरूप भी प्रस्तुत करता है।

नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर का गौरवशाली इतिहास और दिव्य निर्माण शैली

नाथद्वार श्रीनाथजी मंदिर का इतिहास अत्यंत गौरवशाली और आस्था से भरा हुआ है। यह पवित्र स्थल मीरा बाई के युग से जुड़ा हुआ है और हिंदू धर्म की समृद्ध पौराणिक परंपरा में इसका विशेष स्थान है। श्रीनाथजी मंदिर की उत्पत्ति एक रोचक कथा से जुड़ी है, जिसमें वास्तविकता और लोककथाओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस मंदिर की संरचना वृंदावन के नंद महाराज के भवन के अनुरूप बनाई गई है, इसलिए इसे “नंदभवन” या “नंदालय” भी कहा जाता है।

मंदिर के मुख्य देवता श्रीनाथजी, भगवान श्रीकृष्ण के सात वर्षीय बाल स्वरूप हैं, जिन्हें स्नेहपूर्वक गोपाल भी कहा जाता है। सर्वप्रथम श्रीनाथजी की पूजा महाप्रभु वल्लभाचार्य ने वृंदावन के गोवर्धन पर्वत पर आरंभ की थी। माना जाता है कि श्रीनाथजी का यह दिव्य विग्रह काले शिलाखंड से 12वीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्वयं प्रकट हुआ था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब इंद्र देव ने गोकुलवासियों पर प्रलयंकारी वर्षा की, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण कर भक्तों की रक्षा की थी। श्रीनाथजी का स्वरूप उसी दिव्य क्षण का प्रतीक है, जब बालकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था।

बाद के समय में, औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान, इस विग्रह को सुरक्षित रखने के लिए वृंदावन से अन्य स्थान पर ले जाया जा रहा था। यात्रा के दौरान जब रथ नाथद्वारा पहुंचा, तो उसके पहिए अचानक मिट्टी में धंस गए। इसे भगवान की इच्छा माना गया, और उसी स्थान पर 1672 ईस्वी के आसपास महाराणा राज सिंह की देखरेख में इस मंदिर की स्थापना की गई।

मंदिर की वास्तुकला अत्यंत भव्य और पारंपरिक राजस्थानी शैली में निर्मित है। इसके शिखर पर लहराते सात झंडे पुष्टिमार्ग संप्रदाय के सात घरानों का प्रतीक हैं। स्थानीय लोग इस मंदिर को “श्रीनाथजी की हवेली” के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि यह केवल उपासना स्थल नहीं, बल्कि भगवान का दिव्य निवास माना जाता है। मंदिर परिसर में दूध, मिठाई, फूल, आभूषणों के लिए अलग-अलग भंडार गृह, विशाल रसोईघर, अस्तबल, खजाना कक्ष और अतिथि गृह भी बनाए गए हैं।

मुख्य गर्भगृह के अतिरिक्त यहाँ मदनमोहनजी, नवनीतप्रियाजी, गणेश टेकरी मंदिर, विट्ठलनाथजी मंदिर, वनमालीजी मंदिर, यमुनाजी मंदिर और प्रसिद्ध शिव मूर्ति  जैसे कई पूजनीय मंदिर भी स्थित हैं। श्रीनाथजी की प्रतिमा काले पत्थर की बनी है, जिसमें भगवान का दायाँ हाथ गोवर्धन पर्वत उठाते हुए और बायाँ हाथ कमर पर टिकाए हुए दर्शाया गया है। यह दिव्य मूर्ति भक्ति, श्रद्धा और भगवान कृष्ण की लीला शक्ति का सजीव प्रतीक है। नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर न केवल राजस्थान की आध्यात्मिक धरोहर है, बल्कि यह संपूर्ण भारत में कृष्ण भक्ति, वास्तु सौंदर्य और पुष्टिमार्ग परंपरा का जीवंत प्रतीक भी है।

नाथद्वार श्रीनाथजी मंदिर के दैनिक दर्शन समय

नाथद्वारा श्रीनाथजी मंदिर में भगवान के दैनिक आठ प्रहरों के अनुसार अलग-अलग समय पर दर्शन और पूजा की व्यवस्था की गई है। प्रत्येक दर्शन भगवान श्रीनाथजी की विशेष लीला अवस्था और भोग-श्रृंगार से जुड़ा होता है। नीचे मंदिर के नियमित दर्शन समय दिए गए हैं —

  • मंगला दर्शन (प्रातः 5:45 बजे से 6:30 बजे तक) – दिन का प्रथम शुभ दर्शन :-

    यह दिन का प्रथम दर्शन होता है। सुबह-सुबह भगवान को जगाया जाता है और भक्तजन मंगला आरती के समय दिव्य दर्शन प्राप्त करते हैं। “मंगला” शब्द स्वयं में मंगलमय आरंभ का प्रतीक है, जो बताता है कि दिन की शुरुआत भगवान श्रीनाथजी के दर्शन से करना कितना पवित्र और सौभाग्यशाली होता है। शीत ऋतु में यह दर्शन सूर्योदय से पहले होता है, जबकि ग्रीष्म ऋतु में इसका समय थोड़ा विलंब से निर्धारित किया जाता है। मंगला दर्शन के समय गर्भगृह के मुख्य द्वार प्रारंभ में बंद रखे जाते हैं। जब प्रारंभिक पूजा-विधियाँ संपन्न हो जाती हैं, तभी द्वार खोले जाते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि भगवान श्रीनाथजी के बाल स्वरूप को अचानक भक्तों की भीड़ से विचलित न किया जाए। यह दर्शन बाल भाव से प्रेरित होता है — जैसे कोई माता-पिता अपने छोटे बच्चे की देखभाल में सावधानी बरतते हैं। एक और भाव यह भी जुड़ा है कि यदि द्वार शीघ्र खोले जाएँ, तो बालक श्रीनाथजी अपने सखा-संगियों के साथ खेलने की इच्छा से बाहर न निकल पड़ें!

    ग्रीष्म ऋतु में श्रीनाथजी को हल्की अड़बँधा धोती पहनाई जाती है, जबकि शीत ऋतु में उन्हें ऊनी वस्त्र या गद्देदार कोट से गरम रखा जाता है। इस समय भगवान के हाथ में मुरली (बांसुरी) नहीं दी जाती, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यदि वे इतनी सुबह बांसुरी बजाने लगें, तो संपूर्ण जगत उनके स्वर में मंत्रमुग्ध होकर अपने दैनिक कार्य भूल जाएगा। मंगला दर्शन के दौरान श्रीनाथजी की आरती की जाती है, जो रातभर की नकारात्मक ऊर्जा और अंधकार में विचरने वाली अशुभ शक्तियों को दूर करती है। यह दर्शन अष्टछाप कवियों में से एक महान कवि परमानंददास जी की स्मृति को समर्पित है। इस समय गाए जाने वाले कीर्तन प्रातःकालीन शास्त्रीय रागों — जैसे ललिता, भैरव या विभास — में प्रस्तुत किए जाते हैं।

  • श्रृंगार दर्शन (सुबह 7:30 बजे से 8:00 बजे तक) – भगवान के साज-सज्जा और आनंद की बेला :-

    मंगला दर्शन के पश्चात होने वाला दूसरा प्रमुख दर्शन “श्रृंगार दर्शन” कहलाता है। यह वह पवित्र क्षण होता है जब भगवान श्रीनाथजी को सिर से पाँव तक अत्यंत मनोहर रूप में सजाया जाता है। इस समय उन्हें सुंदर वस्त्र, आकर्षक आभूषण और सुगंधित फूलों की मालाओं से अलंकृत किया जाता है। श्रृंगार पूर्ण होने पर मुखिया जी भगवान के समक्ष दर्पण रखते हैं ताकि वे स्वयं अपने श्रृंगार का अवलोकन कर सकें। यह समय भगवान की बाल लीला का प्रतीक है, जब वे खेल-कूद में मग्न रहते हैं। इस दौरान उन्हें मेवे, मिठाइयाँ और सूखे फल अर्पित किए जाते हैं, जो उन भोगों का प्रतीक हैं जो गोपियों द्वारा स्नेहपूर्वक भगवान को अर्पित किए जाते थे। इसी कारण श्रीनाथजी को “गोपीवल्लभ” अर्थात गोपियों के प्रिय कहा जाता है।

    श्रृंगार दर्शन के बाद भगवान के हाथ में मुरली (बांसुरी) दी जाती है, ताकि वे अपनी प्रिय श्री राधाजी को मधुर स्वरों से आनंदित कर सकें। इस दर्शन के समय मंदिर में भक्ति रस से भरपूर शास्त्रीय राग — जैसे रामकली, गुनकली और बिलावल — गाए जाते हैं। इस अवसर पर गाए जाने वाले पद अष्टछाप कवि श्री नंददास जी की रचनाओं पर आधारित होते हैं।

  • ग्वाल दर्शन (सुबह 9:15 बजे से 9:30 बजे तक) – भगवान की गोचर लीला का पवित्र समय :-

    श्रृंगार दर्शन के पश्चात तीसरा दर्शन “ग्वाल दर्शन” कहलाता है, जो उस समय किया जाता है जब भगवान श्रीनाथजी अपनी गायों को चराने के लिए निकलते हैं। यह दर्शन भगवान श्रीकृष्ण की गोचर लीला का प्रतीक है — वह मधुर क्षण जब वे अपने सखा गोपालों और गायों के साथ वन में खेलते हुए जाते हैं। इस समय नाथद्वारा की गौशाला के मुखिया भगवान के समक्ष उपस्थित होकर यह निवेदन करते हैं कि सभी गायें स्वस्थ और प्रसन्न हैं। तत्पश्चात श्रीनाथजी को माखन-मिश्री और दूध से बने हल्के भोग अर्पित किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय भगवान पहले ही ग्वालिनों (गोपियों) द्वारा तैयार किए गए समृद्ध भोग का सेवन कर चुके हैं, इसलिए अब उन्हें केवल हल्का और पौष्टिक भोजन अर्पित किया जाता है।

    ग्वाल दर्शन के दौरान फूलों का श्रृंगार या मुरली प्रस्तुत नहीं की जाती, क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान इस समय अपने गोपाल सखाओं के साथ खेल-कूद में व्यस्त रहते हैं। इस दर्शन का भाव सादगी, स्नेह और बाल-कृष्ण की निश्छलता से भरा होता है।

  • राजभोग दर्शन (दोपहर 11:15 बजे से 11:55 बजे तक) – दिव्य वैभव और आनंद की चरम अभिव्यक्ति :-

    श्रीनाथजी का राजभोग दर्शन दिन का चौथा और सबसे भव्य दर्शन माना जाता है। इस समय भगवान श्रीनाथजी राजसी स्वरूप में अलंकृत होते हैं, और पूरा मंदिर दिव्य आभा से जगमगा उठता है। इस दर्शन का भाव भक्ति, ऐश्वर्य और माधुर्य लीला से जुड़ा है। इस अवसर पर अष्टछाप कवि श्रीकुंभनदास जी के पद गाए जाते हैं, जो भक्तों के हृदय में गहन भावनाओं का संचार करते हैं। राजभोग दर्शन में भगवान श्रीकृष्ण को दिवस लीला में अर्जुन सखा और रात्रि विहार में बिसारवा सहचरी के रूप में स्मरण किया जाता है। यह दर्शन निकुंज लीला और हृदय की अनुभूति का प्रतीक है, जहाँ भक्त अपने आराध्य के साथ आत्मिक एकत्व का अनुभव करता है।

    इस दर्शन के समय श्रीनाथजी का श्रृंगार अत्यंत भव्य और आकर्षक होता है। फूलों की माला (कुसुमहार) पहनाने के बाद ही मंदिर के पट खोले जाते हैं। भगवान के इस रूप को देवाधिदेव श्रीनाथजी का सर्वोच्च भाव माना जाता है। राजभोग के दौरान भगवान को अनेक प्रकार के भोग और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। इसमें सखड़ी, अनसखड़ी, विभिन्न मिठाइयाँ, लड्डू, वासुंदी, पुरी, खीर, आमरस जैसे स्वादिष्ट एवं सात्त्विक व्यंजन सम्मिलित होते हैं। यह भोग न केवल अर्पण का प्रतीक है, बल्कि भक्त और भगवान के प्रेमपूर्ण संबंध का भी द्योतक है।

    भोग के बाद आरती की जाती है, जिससे वातावरण में पवित्रता और दिव्यता का संचार होता है। इसके उपरांत श्रीनाथजी अनौसार (अल्प विश्राम) करते हैं और मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। इसे भगवान के विश्राम का समय माना जाता है।

  • उथापन दर्शन (दोपहर 3:45 बजे से 4:00 बजे तक) – प्रभु के विश्राम से जागरण का शुभ क्षण :-

    दोपहर के समय लगभग 3:45 बजे होने वाला उठापन दर्शन दिन का पाँचवाँ और अत्यंत मंगलमय दर्शन माना जाता है। इस समय भगवान श्रीनाथजी को उनके मध्यान्ह विश्राम से जगाया जाता है। जैसे ही शंखनाद किया जाता है, वातावरण भक्तिभाव से भर उठता है — यह संकेत होता है कि अब भगवान अपनी गौचारण लीला से लौटकर अपने निवास की ओर पधार रहे हैं।

    उठापन दर्शन के समय मंदिर में वीणा की मधुर ध्वनि गूंजती है और तत्पश्चात कीर्तन आरंभ होते हैं। यह बेला भगवान के जागरण और पुनः लीला प्रवर्तन का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दर्शन के दौरान महान भक्त और अष्टछाप कवि श्री सूरदास जी प्रमुख गायक माने जाते हैं। इस दर्शन का भाव अत्यंत कोमल और स्नेहपूर्ण होता है — जैसे कोई भक्त अपने बालक श्रीनाथजी को स्नेहपूर्वक जगाता है और उनसे स्नेह संवाद करता है।

  • आरती दर्शन (शाम 4:30 बजे से 6:00 बजे तक) – संध्या की भक्ति और मातृभाव का अद्भुत संगम :-

    आरती दर्शन दिन का छठा और अत्यंत पावन दर्शन है, जो संध्या बेला में किया जाता है। यह वही समय है जब भगवान श्रीकृष्ण अपनी गायों को चरागाह से वापस घर लाते हैं। इस दर्शन का भाव मातृभाव से जुड़ा है — जैसे कोई स्नेहमयी माता अपने पुत्र की वन भ्रमण से सुरक्षित वापसी पर उसके स्वागत में आरती करती है और उसकी रक्षा की कामना करती है।

    दिनभर की लीलाओं के उपरांत, इस समय भगवान श्रीनाथजी को हल्के और सरल वस्त्र पहनाए जाते हैं। अब उनके हाथों में फिर से मुरली (बांसुरी) दी जाती है ताकि वे अपने भक्तों और सखा ग्वालबालों को अपने मधुर स्वर से मोहित कर सकें।

    संध्या आरती के साथ ही दिन के समापन का संकेत दिया जाता है। इस समय हवेली की छत पर स्थित सुदर्शन चक्र को प्रसाद अर्पित किया जाता है, और मंदिर के सात ध्वज (झंडे) विधिवत लपेटकर अगले दिन के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं। इस दर्शन में अष्टछाप कवि श्री छीत्तास्वामी जी को प्रमुख गायक माना गया है।

  • शयन दर्शन (रात्रि 7:00 बजे से 7:30 बजे तक) – प्रभु के विश्राम और प्रेममय लीलाओं का मधुर क्षण :-

    शयन दर्शन श्रीनाथजी का दिन का अंतिम और अत्यंत पवित्र दर्शन होता है। यह दर्शन “रसोइया बोली” के बाद प्रारंभ होता है, जब पुजारी हवेली की छत पर जाकर पुकार लगाते हैं — “रसोइया, कल जल्दी आना।” इसके साथ ही नगाड़ों की ध्वनि गूंजती है, जो शयन दर्शन की शुरुआत का संकेत देती है। इस समय भगवान श्रीनाथजी को रात्रि विश्राम के लिए तैयार किया जाता है। भोग के रूप में विविध स्वादिष्ट व्यंजन अर्पित किए जाते हैं, जो दिनभर की लीलाओं के उपरांत उनके विश्राम से पूर्व का अंतिम प्रसाद होता है। भक्त कवि अपने कीर्तन में भगवान की स्तुति करते हैं, जिसमें श्रीनाथजी और स्वामिनीजी (श्री राधा) के प्रति प्रेम, भाव और विरह की अभिव्यक्ति झलकती है। तत्पश्चात भगवान को पान-बीड़ा अर्पित किया जाता है।

    रात्रि विश्राम के लिए भगवान का शयन कक्ष सुसज्जित किया जाता है — वहाँ भोजन का पात्र, जल का घड़ा और पान-बीड़ा रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि रात में श्री राधा रानी श्रीनाथजी के साथ विराजमान होती हैं, इसलिए उनके वस्त्र और आभूषण भी पास में सजाकर रखे जाते हैं। श्रीजी की प्रतिमा से उनके शयनकक्ष तक मखमली कालीन बिछाई जाती है, जिससे यह भाव रहता है कि वे अपने सूक्ष्म स्वरूप में उस पर विचरण करते हैं। भक्तों के खड़े होने के लिए रखे डोलतीबाड़ी के लकड़ी के पट्टे हटा दिए जाते हैं ताकि प्रभु के मार्ग में कोई बाधा न रहे। यहाँ तक कि आंगन पर लगे छत्र या तंबू भी हटा दिए जाते हैं, ताकि यदि भगवान अपनी रात्रि लीलाओं के लिए गोपियों संग विहार करना चाहें तो मार्ग निर्विघ्न रहे।

    यह दर्शन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से अश्विन शुक्ल नवमी तक, लगभग छह महीनों के लिए स्थगित रहता है, क्योंकि उस अवधि में श्रीनाथजी व्रजधाम की यात्रा पर जाकर व्रजवासियों को अपने दिव्य दर्शन कराते हैं।

👉 इन निर्धारित समयों में प्रत्येक दर्शन अपने-आप में एक दिव्य अनुभव है, जो भक्तों को भगवान श्रीनाथजी की लीला और स्नेह से जोड़ देता है। भक्तों को सुझाव दिया जाता है कि वे मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर या वहाँ पहुँचने पर दैनिक दर्शन समय की पुष्टि अवश्य कर लें, क्योंकि त्योहारों, विशेष आयोजनों या चंद्र पंचांग के अनुसार इन समयों में कभी-कभी परिवर्तन किया जा सकता है।

नाथद्वारा कैसे पहुँचे – श्रीनाथजी के धाम तक पहुँचने का संपूर्ण मार्गदर्शन

नाथद्वारा, भगवान श्रीनाथजी का दिव्य निवास स्थल, राजस्थान के राजसमंद ज़िले में स्थित है। यह स्थान न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि शांत वातावरण और धार्मिक अनुभूति का अद्भुत संगम भी है। यहाँ पहुँचने के लिए आप हवाई मार्ग, रेल या सड़क – किसी भी माध्यम का उपयोग कर सकते हैं। नीचे जानिए नाथद्वारा पहुँचने के सभी आसान मार्गों की जानकारी –

✈️ हवाई मार्ग (By Air) :

नाथद्वारा का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर एयरपोर्ट (महाराणा प्रताप एयरपोर्ट, डबोक) है, जो लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित है। उदयपुर से नाथद्वारा के लिए नियमित बसें और टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध रहती हैं।
उदयपुर हवाई अड्डा दिल्ली, मुंबई, जयपुर और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है। घरेलू एयरलाइंस की नियमित उड़ानें यहाँ आती-जाती रहती हैं। एयरपोर्ट से नाथद्वारा तक टैक्सी सेवाएँ लगभग ₹700 के किराये पर उपलब्ध हैं, जिससे यात्रा सुविधाजनक और आरामदायक बन जाती है।

🚌 सड़क मार्ग (By Bus) :

नाथद्वारा सड़क मार्ग से राजस्थान और आसपास के राज्यों के प्रमुख शहरों से भली-भाँति जुड़ा हुआ है। राजस्थान रोडवेज की सरकारी बसें उदयपुर, अजमेर, जयपुर, जोधपुर और अन्य प्रमुख नगरों से नाथद्वारा के लिए नियमित रूप से चलती हैं।
इसके अतिरिक्त, वोल्वो सुपर डीलक्स और प्राइवेट लग्ज़री बसें भी दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अहमदाबाद से उदयपुर के लिए उपलब्ध हैं, जहाँ से नाथद्वारा मात्र कुछ घंटों की दूरी पर है।

🚆 रेल मार्ग (By Train) :

नाथद्वारा का निकटतम रेलवे स्टेशन मावली जंक्शन (Mavli Jn.) है, जो लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। वहीं उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन नाथद्वारा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है।
उदयपुर और मावली जंक्शन से जयपुर, अहमदाबाद, ग्वालियर, मुंबई और नई दिल्ली के लिए नियमित ट्रेन सेवाएँ उपलब्ध हैं। उदयपुर-बांद्रा (मुंबई) और उदयपुर-नई दिल्ली एक्सप्रेस ट्रेनें सप्ताह में छह दिन चलने का प्रस्ताव रखती हैं, जिससे यात्रियों को यात्रा में और अधिक सुविधा मिलेगी।

👉 यात्रा सुझाव:
यदि आप श्रीनाथजी के दर्शन के उद्देश्य से नाथद्वारा जा रहे हैं, तो यात्रा की योजना त्योहारों या विशेष अवसरों को ध्यान में रखकर बनाएं। इन दिनों यहाँ भक्तों की भीड़ अधिक रहती है, इसलिए अग्रिम बुकिंग करना सर्वोत्तम रहेगा।

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🪔 जय श्रीनाथजी महाराज की जय!

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