अधिकतर गोवर्धन पूजा का पावन पर्व दीवाली के अगले दिन मनाया जाता है। यह दिन उस दिव्य घटना की स्मृति में मनाया जाता है जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देवता के अहंकार को पराजित कर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। कुछ वर्षों में दीवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अंतर भी हो सकता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, यह उत्सव कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाना चाहिए। हालाँकि, कभी-कभी अमावस्या तिथि के एक दिन बाद भी गोवर्धन पूजा पड़ सकती है, जो प्रतिपदा तिथि के आरंभ समय पर निर्भर करता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भक्तगण गेहूँ, चावल, बेसन की कढ़ी, पत्तेदार सब्ज़ियाँ और विभिन्न प्रकार के सात्विक व्यंजन बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग अर्पित करते हैं। यह परंपरा कृष्ण भक्तों द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा के प्रतीक के रूप में निभाई जाती है, जो समृद्धि, कृतज्ञता और प्रकृति के सम्मान का संदेश देती है।
गोवर्धन पूजा के पावन दिन पर घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक चित्र बनाया जाता है। यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की दिव्य लीलाओं की याद दिलाती है। परिवार के सभी सदस्य श्रद्धा भाव से इस गोवर्धन प्रतिमा की सात बार परिक्रमा करते हैं और खील-बताशे तथा मिठाइयों का भोग लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं। भोग के बाद भक्तजन कृष्ण भक्ति में लीन होकर भजन-कीर्तन गाते हैं, जिससे घर का वातावरण दिव्यता और शांति से भर जाता है। अगले दिन प्रातः इस गोवर्धन प्रतिमा को सम्मानपूर्वक हटाया जाता है, और उसी स्थान पर आटे से सुंदर चौक (रंगोली) बनाया जाता है। फिर गाय के गोबर के पाँच उपले तैयार किए जाते हैं, जिन्हें आगे आने वाली पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है। यह परंपरा न केवल पर्यावरण और गौमाता के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति, कृषि और धर्म के संतुलन का संदेश भी देती है।
महाराष्ट्र में इस दिन को बालि प्रतिपदा या बालि पड़वा कहा जाता है। इस अवसर पर भगवान विष्णु के वामन अवतार द्वारा राजा बालि पर विजय प्राप्त करने और उन्हें पाताल लोक भेजे जाने की कथा का स्मरण किया जाता है। मान्यता है कि भगवान वामन के वरदान के अनुसार असुरराज बालि इस दिन पाताल लोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं, इसलिए यह दिन भक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। अधिकांश वर्षों में गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नववर्ष के साथ भी संयोग करता है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। कई बार गोवर्धन पूजा गुजराती नव वर्ष के एक दिन पूर्व भी मनाई जाती है, जो तिथि के प्रारंभ के अनुसार निर्धारित होती है।
🌺 गोवर्धन पूजा 2025: तिथि एवं मुहूर्त (Govardhan Puja 2025 Date & Muhurat)
गोवर्धन पूजा 2025 का पावन उत्सव इस वर्ष बुधवार, 22 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र देव को पराजित कर ब्रजवासियों की रक्षा की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
गोवर्धन पूजा 2025 के मुख्य मुहूर्त
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गोवर्धन पूजा (प्रातःकाल मुहूर्त):
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समय: 06:04 AM से 08:21 AM
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अवधि: 2 घंटे 16 मिनट
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द्यूत क्रीड़ा:
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दिनांक: बुधवार, 22 अक्टूबर 2025
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गोवर्धन पूजा (सायाह्नकाल मुहूर्त):
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समय: 03:10 PM से 05:26 PM
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अवधि: 2 घंटे 16 मिनट
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प्रतिपदा तिथि का विवरण:
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प्रारंभ: 21 अक्टूबर 2025, शाम 05:54 PM
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समाप्ति: 22 अक्टूबर 2025, रात 08:16 PM
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गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat List)
| मुहूर्त | समय |
|---|---|
| ब्रह्म मुहूर्त | 04:24 AM – 05:14 AM |
| प्रातः संध्या | 04:49 AM – 06:04 AM |
| अभिजीत मुहूर्त | कोई नहीं |
| विजय मुहूर्त | 01:39 PM – 02:25 PM |
| गोधूलि मुहूर्त | 05:26 PM – 05:52 PM |
| सायाह्न संध्या | 05:26 PM – 06:42 PM |
| अमृत काल | 04:00 PM – 05:48 PM |
| निशीथ मुहूर्त | 11:20 PM – 12:11 AM (23 अक्टूबर) |
गोवर्धन पूजा 2025: पूजन सामग्री, विधि, नियम और महत्व
गोवर्धन पूजा का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की आराधना कर सुख, समृद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इस पूजा में विशेष रूप से गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है और अन्नकूट प्रसाद अर्पित किया जाता है। आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा की संपूर्ण विधि, सामग्री और महत्व —
गोवर्धन पूजा की पूजन सामग्री (Govardhan Puja Samagri List)
- गाय का गोबर – गोवर्धन पर्वत बनाने के लिए
- मिट्टी का कलश, जल और गंगाजल
- दीपक (घी या तेल का) और धूप-बत्ती
- पुष्प – गेंदे, कमल या तुलसी के पत्ते
- रोली, हल्दी, चावल (अक्षत)
- पान, सुपारी, लौंग, इलायची
- नैवेद्य – अन्नकूट प्रसाद के रूप में
- दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत हेतु)
- गौमाता की पूजा के लिए स्वच्छ जल और हरी घास
- मिठाइयाँ और मौसमी फल
- लाल-पीले वस्त्र और मोरपंख (गाय-बछड़े सजाने हेतु)
- शंख, घंटा और आरती थाली
गोवर्धन पूजा विधि (Govardhan Puja Vidhi Step by Step)
1. स्नान और तैयारी
- प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ, पारंपरिक वस्त्र धारण करें।
- घर की साफ-सफाई करें और पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।
- यदि घर में गाय या बछड़ा हो, तो उन्हें लाल-पीले वस्त्र, मोरपंख और गेरू से सजाएँ।
2. गोवर्धन पर्वत का निर्माण
- शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत का निर्माण करें।
- इसके साथ गाय, बछड़े और मवेशियों की प्रतीकात्मक आकृतियाँ बनाएं।
- पर्वत को अपमार्ग (चिरचिटा) से सजाएँ।
3. पूजा विधि
- पंचोपचार विधि से गोवर्धन पर्वत और गौमाता की पूजा करें।
- पूजा स्थल पर जल, फल, खील, बताशे और नैवेद्य रखें।
- पूजा के बाद कलश लेकर जल की धारा डालते हुए सात बार परिक्रमा करें।
- परिक्रमा के दौरान जौ के बीज बिखेरें, यह शुभ माना जाता है।
4. भगवान श्रीकृष्ण की पूजा
- श्रीकृष्ण की प्रतिमा को दूध, दही, गंगाजल से स्नान कराएँ।
- पुष्प, हल्दी, चंदन, कुमकुम और अक्षत अर्पित करें।
- षोडशोपचार विधि से भगवान का पूजन करें और आरती करें।
5. अन्नकूट प्रसाद विधि
- गोवर्धन पर्वत के चारों ओर अन्नकूट प्रसाद सजाएँ।
- इसमें गेहूँ, चावल, दालें, बेसन की कढ़ी, पत्तेदार सब्ज़ियाँ और मिठाइयाँ शामिल हों।
- भोजन हमेशा बिना प्याज और लहसुन के बनाया जाए।
- पहले भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाएँ, फिर परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।
- यदि घर में गाय नहीं है, तो किसी अन्य स्थान पर मौजूद गाय को भोग अवश्य लगाएँ।
गोवर्धन पूजा के नियम (Govardhan Puja Niyam)
- पूजा स्थल, गोवर्धन पर्वत और चौकी को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
- अपने मन और शरीर की भी शुद्धता बनाए रखें।
- पूजा के समय मन को शांत रखें और भक्ति भाव से आराधना करें।
- झगड़ा, गुस्सा या नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- भोग और अन्नकूट प्रसाद शुद्ध और सात्विक होना चाहिए।
- मिठाई और फल पवित्र थाली में रखें।
- परिक्रमा के समय दाएँ हाथ में जल या कलश लेकर जाएँ।
- सात बार परिक्रमा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- इस दिन गरीबों, जरूरतमंदों और गौशालाओं में भोजन, वस्त्र या अनाज का दान करें।
- इच्छानुसार इस दिन व्रत या फलाहार रख सकते हैं।
- व्रत के दौरान मन को भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में लगाएँ।
गोवर्धन पूजा के लाभ (Benefits of Govardhan Puja)
गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत भी है। इस पावन पूजा के कई लाभ हैं, जो न केवल व्यक्तिगत बल्कि परिवार और समाज के कल्याण से भी जुड़े हैं।
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गोवर्धन पूजा करने से घर-परिवार में धन-धान्य की वृद्धि होती है और घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। यह पूजा घर के वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
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इस दिन पूजा और अन्नकूट अर्पण करने से जातक और उसके परिवार को सुदृढ़ स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। यह परंपरा शरीर और मन दोनों को सकारात्मक और ऊर्जावान बनाती है।
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गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन की सभी कठिनाइयाँ, बाधाएँ और संकट दूर होते हैं। भक्तों को मानसिक शांति और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
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भक्ति और श्रद्धा के साथ पूजा करने से भगवान कृष्ण और गौ माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह घर में आध्यात्मिक लाभ लाता है और मन, शरीर और परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
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इस दिन दान, भोग और सेवा करने से केवल परिवार ही नहीं बल्कि समाज में भी सामूहिक कल्याण होता है। यह पूजा बच्चों और परिवार के सदस्यों को धर्म, संस्कृति और परंपरा से जोड़ने का भी माध्यम है।
- गोवर्धन पूजा का यह दिव्य पर्व हमें न केवल आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान करता है बल्कि धन, स्वास्थ्य और खुशहाली का भी आशीर्वाद देता है।
गोर्वधन महाराज जी की आरती (Govardhan Maharaj Ji Ki Aarti Lyrics)
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
और चकलेश्वर विश्राम।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,
तेरी झांकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।
करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गोवर्धन पूजा की कथा (The Story of Govardhan Puja)
गोवर्धन पूजा दीपावली के बाद पूरे देश में बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई जाती है। यह पर्व खास इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इसका अमूल्य संबंध भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है। आइए जानते हैं इस पावन पर्व की कथा और इसका महत्व।
द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र अपनी शक्तियों पर बहुत गर्व करने लगे थे। उनका यह अहंकार तोड़ने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य लीला का आयोजन किया। एक दिन श्रीकृष्ण ने देखा कि ग्रामवासी पूजा की तैयारियों में व्यस्त हैं और स्वादिष्ट पकवान बना रहे हैं। उन्होंने अपनी माता यशोदा से पूछा, “माँ, यहाँ सब लोग किस पूजा की तैयारी कर रहे हैं?” यशोदा माता ने उत्तर दिया कि लोग इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं। जब श्रीकृष्ण ने पूछा कि क्यों उनकी पूजा होती है, तो माता ने समझाया कि यह पूजा इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है ताकि गांव में वर्षा ठीक से हो, खेतों में फसलें लहलहाएं और अन्न की कभी कमी न हो। इस अन्न से गाँव के पशु और सभी जीव भी भरण-पोषण करते हैं।
श्रीकृष्ण ने कहा कि इंद्रदेव की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए, क्योंकि गायों को चारा वहीं मिलता है। उनके विचार से इंद्रदेव अक्सर प्रसन्न नहीं होते और दर्शन भी नहीं देते, जबकि पर्वत हमेशा जीवनदायिनी है। श्रीकृष्ण की बात सुनकर बृजवासियों ने उनका आदेश मानते हुए इंद्रदेव की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। इंद्रदेव यह देखकर क्रोधित हो गए और उन्होंने भयंकर वर्षा शुरू कर दी, जिससे बृजवासियों की फसल और घर-बार को भारी नुकसान हुआ। वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। तब सभी बृजवासी श्रीकृष्ण की शरण में आए और उनसे सुरक्षा की प्रार्थना करने लगे।
श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को, उनके गाय-बछड़े और अन्य पशु सहित पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा। इंद्रदेव की वर्षा और भी प्रबल हो गई, लेकिन श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र और शेषनाग की सहायता से पानी की गति को नियंत्रित किया और पर्वत के नीचे शरण लेने वालों की रक्षा की। इंद्रदेव लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे। अंत में ब्रह्माजी ने उन्हें समझाया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उनकी पूजा करनी चाहिए। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्रदेव ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और उनके लिए 56 प्रकार के अन्नकूट भोग अर्पित किए। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा चली आ रही है और भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट में 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा 2025: निष्कर्ष और सारांश
गोवर्धन पूजा दीपावली के बाद बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाने वाला पवित्र पर्व है। इस दिन का भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत से गहरा संबंध है। कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने बृजवासियों और उनके पशुओं की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था, ताकि इंद्रदेव की मूसलाधार वर्षा से सब सुरक्षित रहें। तभी से इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा और अन्नकूट भोग अर्पण करने की परंपरा चली आ रही है।
पूजा में गाय का गोबर, पुष्प, पंचामृत, जल, फल और मिठाइयाँ शामिल होती हैं। जब इसे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ किया जाता है, तो यह न केवल घर में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और लंबी आयु लाता है, बल्कि जीवन की बाधाओं और संकटों से मुक्ति भी देता है। साथ ही, यह पर्व परिवार और समाज को धर्म, संस्कृति और भक्ति के माध्यम से जोड़ने का अवसर भी प्रदान करता है।
गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि प्रकृति, गौ सेवा और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक भी है। इसे मनाने से घर में श्रीकृष्ण और गौ माता की कृपा आती है और सकारात्मक ऊर्जा, सौभाग्य और कल्याण का संचार होता है।
प्रसिद्ध “गोवर्धन पूजा की कथा” – वीडियो :
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जय गौमाता और भगवान श्रीकृष्ण!