गायत्री मंत्र हिंदू धर्म का सबसे पवित्र और प्राचीन मंत्र माना जाता है। यह मंत्र वेदों में उल्लिखित है और विशेष रूप से ऋग्वेद (मंडल 3, सूक्त 62, मंत्र 10) से लिया गया है। इसे “सर्वश्रेष्ठ मंत्र” या “वेद माता” कहा जाता है, क्योंकि यह ज्ञान, ऊर्जा, और आत्मिक उन्नति का प्रतीक है। गायत्री मंत्र 24 अक्षरों से बना है, जो तीन पदों (8-8 अक्षर प्रति पद) में विभाजित है। यह सूर्य देवता सवितृ को समर्पित है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आमंत्रित करने वाला मंत्र माना जाता है। मंत्र के नियमित उच्चारण से मस्तिष्क की तरंगें सकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं, जिससे तनाव कम होता है और मनोबल बढ़ता है।
गायत्री मंत्र का सबसे पहला उल्लेख हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। मान्यता है कि इस मंत्र की रचना ऋषि विश्वामित्र ने की थी। एक समय जब देवराज इंद्र ने मेनका का रूप लेकर विश्वामित्र की तपस्या भंग की, तब उन्होंने दोबारा ध्यान लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने ईश्वर का ध्यान करते हुए यह मंत्र बोला: “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्॥” इस मंत्र के प्रभाव से उनकी तपस्या सफल हुई। तभी से इसे गायत्री महामंत्र कहा गया और कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने तब विश्वामित्र को ‘ऋषि’ की उपाधि दी।
एक अन्य कथा के अनुसार, गायत्री देवी ब्रह्मा जी की पत्नी थीं, जो ज्ञान और चेतना की देवी मानी जाती हैं। ब्रह्मा जी ने चार वेदों की रचना से पहले इस 24 अक्षरों वाले मंत्र की रचना की थी। माना जाता है कि इस मंत्र के हर अक्षर में गहरा ज्ञान छिपा हुआ है। फिर ब्रह्मा और गायत्री की शक्ति से ही वेदों का जन्म हुआ।
शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्मा जी के मुख से सबसे पहले गायत्री मंत्र निकला था। इसके बाद उन्होंने चारों वेदों की व्याख्या की। पहले गायत्री मंत्र की महिमा केवल देवताओं के बीच जानी जाती थी, लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने इसे आम लोगों तक पहुँचाया।
गायत्री मंत्र – Gayatri Mantra
ॐ भूर् भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
🌺 शब्द-दर-शब्द अर्थ – Gayatri Mantra Meaning
-
ॐ (Aum) – यह परमात्मा का प्रतीक है। सृष्टि की आदि ध्वनि है, जो ब्रह्म (सर्वव्यापक शक्ति) को दर्शाता है।
-
भूर् (Bhur) – भौतिक संसार, पृथ्वी लोक का प्रतीक। जीवन शक्ति या “प्राण शक्ति” भी कहा जाता है।
-
भुवः (Bhuvah) – मध्य लोक, यानी मानसिक और चेतन जगत। यह दुखों का नाश करने वाली शक्ति भी मानी जाती है।
-
स्वः (Svah) – स्वर्ग लोक, यानी दिव्य चेतना या आत्मिक जगत।
👉 इन तीनों लोकों का उल्लेख यह दर्शाता है कि परमात्मा संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त है – भौतिक, मानसिक और आत्मिक रूप से।
-
तत् (Tat) – “वह परम तत्व” – जो सबसे श्रेष्ठ और सर्वशक्तिमान है।
-
सवितुः (Savitur) – “सविता” यानी सूर्य स्वरूप परमात्मा, जो समस्त सृष्टि का पालनकर्ता है।
-
वरेण्यं (Varenyam) – जो पूजनीय, श्रेष्ठ और वरण करने योग्य है।
-
भर्गः (Bhargo) – दिव्य तेज, जो अज्ञान और पाप का नाश करता है।
-
देवस्य (Devasya) – उस दिव्य ईश्वर का, जो प्रकाश, पवित्रता और ज्ञान का स्रोत है।
-
धीमहि (Dhimahi) – हम उसका ध्यान करते हैं, उसका स्मरण करते हैं।
-
धियो (Dhiyo) – हमारी बुद्धि, विवेक और सोचने-समझने की शक्ति।
-
यो (Yo) – “जो” अर्थात जो शक्ति…
-
नः (Nah) – “हमारी”
-
प्रचोदयात् (Prachodayat) – प्रेरणा दे, मार्गदर्शन करे।
भावार्थ : Gayatri Mantra Meaning in Hindi
“उस प्राणस्वरुप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा का हम ध्यान करें. वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे।”
🌼 गायत्री मंत्र के जाप करने का समय:
वेदों और पुराणों में गायत्री महामंत्र के जाप के लिए तीन उपयुक्त समय बताए गए हैं। पहला समय प्रातःकाल, दूसरा दोपहर का समय, और तीसरा सायंकाल (शाम का समय) माना गया है। हालांकि, गायत्री मंत्र का जाप किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है, बस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जाप के समय मन शांत हो और व्यक्ति मौन भाव से साधना करे।
📿 गायत्री मंत्र का जाप करने की विधि:
गायत्री मंत्र का जाप करते समय हमें घर के मंदिर या किसी शांत और पवित्र स्थान पर बैठकर श्रद्धा भाव से माता गायत्री का ध्यान करना चाहिए। जाप से पहले स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनना शुभ होता है। मंत्र जाप के समय आरामदायक और एकाग्रता देने वाली मुद्रा में बैठें। तुलसी या चंदन की माला से जाप करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। जाप करते समय मन शांत रखें, न तो जल्दबाजी करें और न ही ऊँचे स्वर में बोलें। मंत्र का उच्चारण मधुर, धीमा और पूरी श्रद्धा के साथ करें, तभी उसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।
प्रसिद्ध गायत्री मंत्र वीडियो :
- अनुराधा पौडवाल