हिन्दू धर्म में हर त्यौहार और व्रत का अपना अलग महत्व और आस्था से जुड़ा भाव होता है। इन्हीं में से एक है अहोई अष्टमी व्रत, जो करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद मनाया जाता है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, इसलिए इसे अहोई अष्टमी कहा जाता है। इस दिन माताएँ अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए उपवास करती हैं।
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएँ भोर से लेकर शाम तक निर्जल व्रत रखती हैं। शाम के समय जब आकाश में तारे दिखाई देते हैं, तब व्रत खोलने की परंपरा है। कुछ महिलाएँ चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत का पारण करती हैं, लेकिन चूंकि इस दिन चंद्रोदय देर रात में होता है, इसलिए बहुत-सी महिलाएँ तारों के दर्शन के बाद ही व्रत खोलती हैं। अहोई अष्टमी को कई जगहों पर “अहोई आठें” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह अष्टमी तिथि यानी महीने के आठवें दिन पड़ती है। यह व्रत भी करवा चौथ की तरह ही कठिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन बहुत सी महिलाएँ पूरा दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास करती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत करने से माता अहोई की कृपा से बच्चों को दीर्घायु, सुख और सफलता प्राप्त होती है। इस व्रत की विशेषता यह भी है कि इसके प्रभाव से निसंतान दंपतियों को संतान का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इस दिन माता अहोई के साथ-साथ तारों और चंद्रमा की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करने से विशेष फल मिलता है और माता अपने भक्तों की संतान को हर प्रकार के दुखों से मुक्त रखती हैं।
अहोई अष्टमी कब है?
अहोई अष्टमी का पर्व माता अहोई देवी को समर्पित एक प्रमुख हिन्दू व्रत है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए व्रत रखती हैं और माता अहोई की पूजा करती हैं।
अहोई अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी का पर्व सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन का पूजन संध्या के समय किया जाता है जब तारे दिखाई देने लगते हैं। नीचे इस दिन के शुभ मुहूर्त और महत्वपूर्ण समय बताए गए हैं 👇
- अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 05:33 बजे से 06:47 बजे तक
- पूजन अवधि: 1 घंटा 14 मिनट
- साँझ का समय (तारे देखने का समय): शाम 05:56 बजे
- चन्द्रोदय समय: रात 11:05 बजे
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:24 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:09 बजे
- गोवर्धन राधा कुंड स्नान: सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को
यह रहे अन्य शुभ मुहूर्त :
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:16 ए.एम से 05:06 ए.एम तक
- प्रातः सन्ध्या: सुबह 04:41 ए.एम से 05:55 ए.एम तक
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:21 ए.एम से 12:07 पी.एम तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 01:40 पी.एम से 02:27 पी.एम तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:33 पी.एम से 05:57 पी.एम तक
- सायाह्न सन्ध्या: शाम 05:33 पी.एम से 06:47 पी.एम तक
- रवि योग: सुबह 05:55 ए.एम से दोपहर 12:26 पी.एम तक
- निशिता मुहूर्त: रात 11:19 पी.एम से 12:09 ए.एम (अक्टूबर 14) तक
अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)
बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी और सात पुत्रों के साथ रहता था। दीपावली के कुछ दिन पहले साहूकार की पत्नी घर की सफाई और लीपा-पोती के लिए मिट्टी लेने खदान में गई। वह वहाँ कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। उसी स्थान पर एक सेह (नेवले जैसी जीव) की मांद थी। मिट्टी खोदते समय गलती से उसकी कुदाल से एक सेह का बच्चा घायल हो गया और उसी क्षण उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर साहूकार की पत्नी बहुत दुखी हुई और पछताते हुए घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद उस स्त्री की पहली संतान की मृत्यु हो गई। इसके बाद धीरे-धीरे उसकी दूसरी, तीसरी और फिर सातों संतानें एक-एक कर मर गईं। अपनी सभी संतानें खो देने का दुख वह सहन नहीं कर पा रही थी। उसका जीवन दुःख और निराशा से भर गया था। एक दिन उसने अपने पड़ोस की स्त्रियों से रोते हुए अपनी व्यथा बताई और कहा, “मैंने जानबूझकर कोई गलती नहीं की थी। एक दिन मिट्टी खोदते समय अनजाने में मेरी कुदाल से एक सेह का बच्चा मर गया था, और तभी से मेरे सातों बच्चों की मृत्यु हो गई।”
पड़ोस की स्त्रियों ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, “तुमने यह बात स्वीकार कर जो पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप मिट गया है। अब तुम माता पार्वती की शरण में जाओ। अष्टमी के दिन सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो, उनसे क्षमा माँगो और व्रत रखो। भगवान की कृपा से तुम्हारा पाप दूर होगा और तुम्हें फिर से संतान की प्राप्ति होगी।” साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मान ली और कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर व्रत किया। उसने श्रद्धा और भक्ति के साथ हर साल यह व्रत और पूजा की। माता पार्वती की कृपा से उसे फिर से सात पुत्र प्राप्त हुए और उसका जीवन सुखी हो गया।
तभी से अहोई अष्टमी व्रत की परंपरा शुरू हुई। यह व्रत माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए रखती हैं। इस दिन महिलाएँ उपवास रखती हैं, शाम को अहोई माता की पूजा करती हैं और संतान के मंगल की प्रार्थना करती हैं।
इस कथा का सार यह है कि गलती से हुए पाप का भी पश्चाताप और भक्ति के माध्यम से प्रायश्चित किया जा सकता है। माता अहोई की सच्चे मन से पूजा करने पर जीवन में सुख, शांति और संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अहोई अष्टमी की पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)
अहोई अष्टमी माता अहोई को समर्पित एक प्रमुख व्रत है, जिसे महिलाएँ अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना से करती हैं। यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद आता है और इसकी धार्मिक मान्यता बहुत गहरी है। इस दिन महिलाएँ निर्जला व्रत (बिना जल के उपवास) रखती हैं और संध्या समय तारों के दर्शन के बाद पूजा करके व्रत का पारण करती हैं।
पूजा से पहले की तैयारी
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और नित्यकर्मों से निवृत्त हों। इसके बाद पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ करें और वहाँ धूप-दीप जलाएं। अब माता दुर्गा और माता अहोई का ध्यान करके पूजा का संकल्प लें। इस दिन महिलाएँ पूरे दिन जल या अन्न ग्रहण नहीं करतीं और शाम तक व्रत का पालन करती हैं।
संध्या समय पूजा की विधि
सूर्यास्त के बाद जब तारे निकल आएं, तब पूजा प्रारंभ करें।
- पूजा स्थल को फिर से साफ करें और उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में एक चौकी स्थापित करें।
- चौकी को गंगाजल से शुद्ध करें और उस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएँ।
- अब चौकी पर माता अहोई की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- चौकी के मध्य में गेहूं के दानों का ढेर बनाएं और उसके ऊपर पानी से भरा तांबे का कलश रखें।
- माता अहोई के चरणों में मोती की माला या चांदी के मोती रखें।
- आचमन करके धूप-दीप जलाएं और माता को फूल, रोली, अक्षत, दूध और भात अर्पित करें।
- अब बायना (दक्षिणा) के साथ 8 पुड़ियाँ और 8 मालपुए एक कटोरी में रखकर चौकी पर रखें।
- फिर हाथ में गेहूं के सात दाने और फूलों की पंखुड़ियाँ लेकर अहोई माता की कथा पढ़ें या सुनें।
- कथा पूरी होने पर गेहूं के दाने और फूल माता के चरणों में चढ़ा दें।
पूजा के बाद की प्रक्रिया
कथा और पूजा पूर्ण होने के बाद मोती की माला या चांदी के मोती गले में पहन लें। यदि आपने चांदी के मोती रखे हैं तो उन्हें लाल डोरी या कलावा में पिरोकर पहनें। इसके बाद माता दुर्गा की आरती करें। फिर तारों और चंद्रमा को अर्घ्य दें और उनकी पंचोपचार पूजा करें — हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल और भोग अर्पित करें। इसके बाद जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें। पूजा में रखी गई दक्षिणा (बायना) अपनी सास या घर की किसी बुजुर्ग महिला को दें और फिर भोजन करें।
व्रत के बाद माला का नियम
दीपावली के बाद किसी शुभ दिन गले से माला उतारकर माता दुर्गा को गुड़ और जल का भोग लगाकर प्रणाम करें।
- अविवाहित पुत्र के लिए: एक चांदी का मोती धारण करें।
- विवाहित पुत्र के लिए: दो चांदी के मोती धारण करें।
यह माला या मोती अगले वर्ष की अहोई अष्टमी पूजा में पुनः उपयोग किए जा सकते हैं।
पूजा की आवश्यक सामग्री (Puja Samagri)
- जल से भरा हुआ कलश
- फूल, धूप, दीप, रोली
- दूध और भात
- गेहूं के दाने
- मोती की माला या चांदी के मोती
- दक्षिणा (बायना)
- घर में बने 8 पुड़ियाँ और 8 मालपुए
महत्व और लाभ
ऐसी मान्यता है कि इस विधि से अहोई अष्टमी का व्रत करने पर माता अहोई प्रसन्न होकर संतान को दीर्घायु, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। यह व्रत मातृत्व का प्रतीक है और सच्चे मन से की गई पूजा हर माँ की मनोकामना पूर्ण करती है।
अहोई अष्टमी व्रत में क्या खाएं?
अहोई अष्टमी के दिन आमतौर पर महिलाएँ निर्जल और निराहार व्रत रखती हैं, यानी पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए उपवास करती हैं। लेकिन यदि कोई महिला स्वास्थ्य या अन्य कारणों से निर्जल व्रत नहीं रख पाती, तो वह इस दिन फलाहार व्रत रख सकती है। फलाहार में हल्के और सात्विक आहार लिए जा सकते हैं। नीचे बताए गए कुछ खाद्य पदार्थ अहोई अष्टमी व्रत में ग्रहण किए जा सकते हैं —
- यदि निर्जल व्रत संभव न हो, तो फल, दूध और हल्के फलाहारी पदार्थ खा सकते हैं।
- इस दिन कंदमूल जैसे मूली, गाजर और आलू का सेवन किया जा सकता है।
- व्रती महिलाएँ कुट्टू के आटे या सिंघाड़े के आटे से बने पकवान जैसे पूरी या पकौड़ी बना सकती हैं।
- शाम को व्रत समाप्त करने से पहले पका हुआ सात्विक भोजन जैसे पूरी-सब्जी और मालपुए तैयार किए जा सकते हैं।
- साबूदाने की खीर भी इस दिन फलाहार के रूप में बहुत शुभ और पवित्र मानी जाती है।
- व्रत के दौरान किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन, अनाज या मांसाहार नहीं खाना चाहिए।
इस प्रकार, यदि निर्जल व्रत रखना संभव न हो, तो सात्विक और फलाहारी आहार के साथ अहोई अष्टमी का व्रत पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से किया जा सकता है।
अहोई अष्टमी के दिन क्या नहीं करना चाहिए (Ahoi Ashtami Ke Din Kya Nahi Karna Chahiye)
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के लिए बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को कुछ विशेष नियमों और परंपराओं का पालन करना चाहिए ताकि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके। नीचे बताए गए बिंदुओं में जानिए — अहोई अष्टमी के दिन क्या नहीं करना चाहिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- अहोई अष्टमी के दिन चाकू, कैंची, सुई या किसी भी नुकीली वस्तु का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन कपड़े सिलना, काटना या किसी भी प्रकार का बुनाई-कटाई का कार्य करने से बचना चाहिए।
- माताओं को इस दिन मिट्टी या खुरपी जैसी वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत की पवित्रता भंग होती है। इसलिए इस दिन किसी भी प्रकार का मिट्टी से जुड़ा काम करने से परहेज करें।
- अहोई अष्टमी के दिन घर में किसी भी प्रकार का झगड़ा या क्लेश नहीं करना चाहिए। यह दिन शांत मन, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होना चाहिए। अपनी संतान या परिवार के किसी सदस्य को कठोर या अपशब्द न कहें।
- यदि आपने अहोई अष्टमी का व्रत रखा है, तो दिन के समय सोना नहीं चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि दिन में सोने से व्रत का पूरा फल प्राप्त नहीं होता और पूजा अधूरी मानी जाती है।
- रात्रि में तारों को अर्घ्य देते समय तांबे के कलश का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर पीतल के कलश का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
- इस दिन घर में सात्विक भोजन बनाना चाहिए और तामसिक चीज़ें जैसे प्याज, लहसुन या मांसाहार का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन पूरे घर का वातावरण पवित्र और शांतिपूर्ण बनाए रखें।
- अहोई अष्टमी के दिन काले कपड़े पहनना अशुभ माना जाता है। इस दिन लाल, पीले या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है, जो भक्ति और सकारात्मकता का प्रतीक हैं।
- इस दिन मन में किसी के प्रति बुरी भावना, ईर्ष्या या क्रोध नहीं रखना चाहिए। अहोई अष्टमी का व्रत केवल शारीरिक उपवास नहीं, बल्कि मानसिक शुद्धता और सकारात्मक सोच का प्रतीक है।
आरती अहोई माता की (Ahoi Mata ki Aarti)
जय अहोई माता,जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता॥
जय अहोई माता…॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला, तू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
जय अहोई माता…॥
माता रूप निरंजन, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, नित मंगल पाता॥
जय अहोई माता…॥
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक, जगनिधि से त्राता॥
जय अहोई माता…॥
जिस घर थारो वासा, वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले, मन नहीं धड़काता॥
जय अहोई माता…॥
तुम बिन सुख न होवे, न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव, तुम बिन नहीं आता॥
जय अहोई माता…॥
शुभ गुण सुंदर युक्ता, क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू, कोई नहीं पाता॥
जय अहोई माता…॥
श्री अहोई माँ की आरती, जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे, पाप उतर जाता॥
जय अहोई माता…॥
राधा कुंड स्नान 2025: अहोई अष्टमी पर विशेष महत्व
राधा कुंड स्नान का शुभ अवसर सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को पड़ेगा। इस दिन राधा कुंड में अर्धरात्रि स्नान का विशेष मुहूर्त रात 11:41 बजे से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर की रात 12:30 बजे तक रहेगा। यह पवित्र स्नान मुहूर्त कुल 50 मिनट की अवधि का होगा।
अहोई अष्टमी के दिन राधा कुंड में स्नान या पवित्र डुबकी लगाना हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए महत्वपूर्ण होता है जिन्हें संतान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो। माना जाता है कि राधा कुंड में स्नान करने से राधा रानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान प्राप्ति में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
उत्तर भारत में प्रचलित पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार, यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन देशभर से हजारों श्रद्धालु और विवाहित जोड़े गोवर्धन के पास स्थित राधा कुंड पहुंचते हैं। वे यहां पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और राधा-कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि मध्यरात्रि का समय, जिसे निशिता काल कहा जाता है, राधा कुंड स्नान के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। इस समय स्नान करने से पुण्य और आशीर्वाद दोनों प्राप्त होते हैं। इसलिए स्नान का यह क्रम रातभर चलता है, और श्रद्धालु भक्ति भाव से डुबकी लगाते हैं।
रिवाज के अनुसार, दंपत्ति पानी में खड़े होकर कुष्मांडा (कच्चा सफेद कद्दू या पेठा) राधा रानी को अर्पित करते हैं। इसे लाल वस्त्र में लपेटकर समर्पित किया जाता है, जिससे राधा रानी की कृपा शीघ्र प्राप्त हो और संतान प्राप्ति का योग बने। जिन दंपत्तियों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है, वे पुनः राधा कुंड आते हैं और पुनः स्नान कर राधा रानी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस प्रकार राधा कुंड स्नान न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह विश्वास और श्रद्धा का पवित्र संगम भी है, जो हर वर्ष हजारों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
अहोई अष्टमी व्रत मातृत्व की भावना और संतान के प्रति प्रेम का एक सुंदर प्रतीक है। इस दिन माता अहोई की पूजा कर महिलाएँ अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी व्रत करने से माता अहोई प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं और परिवार में सुख-शांति का वास करती हैं। यह व्रत न केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमें धैर्य, प्रेम और कर्तव्य की सीख भी देता है। इसलिए हर वर्ष इस व्रत को पूरे नियम, श्रद्धा और सच्चे मन से करना चाहिए ताकि माता अहोई की कृपा सदा बनी रहे।
प्रसिद्ध “अहोई माता की आरती” – वीडियो :
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