तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa)

🌿 तुलसी चालीसा का सार (Tulsi Chalisa Saar in Hindi)

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी — तुलसी माता का यह चालीसा उनकी अद्भुत महिमा, भक्ति, और पवित्रता की कथा को प्रकट करता है। तुलसी देवी न केवल श्रीहरि विष्णु की परम प्रेयसी हैं, बल्कि वे स्वयं शुद्धता, धर्म और भक्ति का साकार रूप हैं। जो भक्त श्रद्धा से तुलसी की पूजा करता है, वह जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष का अधिकारी बनता है। चालीसा के प्रारंभ में तुलसी माता को “भगवती”, “सत्यवती” और “हरि प्रेयसी” कहा गया है। उनका स्वरूप इतना पवित्र है कि हरि (विष्णु) के बिना उनका अस्तित्व अधूरा है, और हरि भी तुलसी के बिना पूजा में पूर्ण नहीं माने जाते। तुलसी माता की भक्ति करने से भक्त को वैसा ही फल मिलता है जैसे सभी तीर्थों का स्नान, व्रत और दान करने से प्राप्त होता है।

चालीसा में बताया गया है कि तुलसी ने भगवान विष्णु को पाने के लिए कठोर तपस्या की। वे हरि के प्राणों से भी प्रिय हैं। उनकी भक्ति और समर्पण देखकर भगवान स्वयं उन्हें दर्शन देने आए और उन्हें वरदान दिया कि वे सदा श्रीहरि के चरणों में वास करेंगी। एक कथा के अनुसार, जब तुलसी ने भगवान विष्णु से वर मांगा, तो माता लक्ष्मी ने उन्हें श्राप दिया कि वे पृथ्वी पर वृक्ष (पौधा) के रूप में जन्म लेंगी। भगवान ने तब उन्हें वचन दिया कि वे हर पूजा और यज्ञ में आवश्यक तत्व बनेंगी, और जो तुलसी के बिना पूजा करेगा, उसकी उपासना अधूरी मानी जाएगी। चालीसा में तुलसी का वृंदा रूप भी वर्णित है। वृंदा, असुर जलंधर की पत्नी थीं — जो अपनी पातिव्रत्य की शक्ति से देवताओं को भी पराजित कर देती थीं। भगवान विष्णु ने, शिव की सहायता के लिए, जलंधर का अंत करने हेतु वृंदा के पति का रूप धारण किया। यह छल वृंदा के सतीत्व को भंग करने वाला बना। जब वृंदा को यह सत्य ज्ञात हुआ, उन्होंने विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर (शालिग्राम) बन जाएँ। श्राप सुनकर भगवान ने भी उन्हें वरदान दिया कि वे तुलसी रूप में पूजित होंगी, और उनके बिना कोई पूजा, यज्ञ या हरि-आराधना पूर्ण नहीं होगी।

भगवान विष्णु ने कहा — “तुम वृंदा रूप में पृथ्वी पर तुलसी बनकर रहोगी, और मैं शालिग्राम के रूप में गंडकी नदी में वास करूंगा। जो भी भक्त तुलसी दल अर्पित करेगा, उसे अमृत समान पुण्यफल प्राप्त होगा।” यह पवित्र बंधन आज भी हर वैष्णव पूजा, व्रत और दीपदान में देखा जाता है — जहाँ तुलसी और शालिग्राम का मिलन भगवान विष्णु-लक्ष्मी के दिव्य मिलन का प्रतीक होता है। तुलसी के एक छोटे से पत्ते में अनंत पुण्य, सौभाग्य और मोक्ष का वास बताया गया है। जो भक्त तुलसी दल भगवान विष्णु या शालिग्राम पर चढ़ाता है, उसे सौ यज्ञों का फल मिलता है। तुलसी माता घर में हों, तो वहाँ संपत्ति, सुख और शांति का वास होता है। जो नित्य तुलसी का पूजन और तुलसी चालीसा का पाठ करते हैं, उनके जीवन से दरिद्रता, रोग, और अशुभ ग्रहदोष दूर हो जाते हैं।

चालीसा के अंत में कहा गया है — जो भक्त तुलसी चालीसा पढ़ते हैं, या तुलसी के पौधे की सेवा करते हैं, उन्हें संतान सुख, वैवाहिक आनंद, और परम प्रसन्नता प्राप्त होती है। बांझ स्त्री को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, और भक्त के सभी मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं। तुलसी के पौधे के नीचे दीपदान करने से घर के समस्त दोष और नकारात्मकता नष्ट हो जाती है।

तुलसी चालीसा का आध्यात्मिक संदेश

तुलसी चालीसा केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक मार्गदर्शन है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम, भक्ति और निष्ठा कभी व्यर्थ नहीं जाते। तुलसी माता त्याग, श्रद्धा और पतिव्रता धर्म की मूर्ति हैं, जो हमें सत्य, सेवा और समर्पण का जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। तुलसी चालीसा का नियमित पाठ करने से मन में भक्ति की गहराई, हृदय में शुद्धता और जीवन में शांति आती है। यह भक्ति गीत हमें यह स्मरण कराता है कि सच्चा सुख ईश्वर के चरणों में ही है। तुलसी माता का आशीर्वाद पाकर जीवन में आध्यात्मिक समृद्धि, सुख-शांति और मोक्ष का मार्ग स्वतः प्रशस्त होता है।

तुलसी चालीसा (Tulsi Chalisa lyrics)

॥ दोहा ॥

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥

श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ॥

॥ चौपाई ॥

धन्य धन्य श्री तलसी माता ।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता ॥१॥

हरि के प्राणहु से तुम प्यारी ।
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥२॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो ।
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥३॥

हे भगवन्त कन्त मम होहू ।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥४॥

सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी ।
दीन्हो श्राप कध पर आनी ॥५॥

उस अयोग्य वर मांगन हारी ।
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥६॥

सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा ।
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥७॥

दियो वचन हरि तब तत्काला ।
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला ॥८॥

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा ।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥९॥

तब गोकुल मह गोप सुदामा ।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥१०॥

कृष्ण रास लीला के माही ।
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥११॥

दियो श्राप तुलसिह तत्काला ।
नर लोकही तुम जन्महु बाला ॥१२॥

यो गोप वह दानव राजा ।
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा ॥१३॥

तुलसी भई तासु की नारी ।
परम सती गुण रूप अगारी ॥१४॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥१५॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को ।
असुर जलन्धर नाम पति को ॥१६॥

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा ।
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥१७॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे ।
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥१८॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी ।
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥१९॥

तब जलन्धर ही भेष बनाई ।
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥२०॥

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा ।
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥२१॥

भयो जलन्धर कर संहारा ।
सुनी उर शोक उपारा ॥२२॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी ।
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥२३॥

जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥२४॥

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥२५॥

यही कारण लही श्राप हमारा ।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥२६॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे ।
दियो श्राप बिना विचारे ॥२७॥

लख्यो न निज करतूती पति को ।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥२८॥

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा ।
जग मह तुलसी विटप अनूपा ॥२९॥

धग्व रूप हम शालिग्रामा ।
नदी गण्डकी बीच ललामा ॥३०॥

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं ।
सब सुख भोगी परम पद पईहै ॥३१॥

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा ।
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥३२॥

जो तुलसी दल हरि शिर धारत ।
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥३३॥

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी ।
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥३४॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर ।
तुलसी राधा में नाही अन्तर ॥३५॥

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा ।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥३६॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही ।
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥३७॥

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत ।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥३८॥

बसत निकट दुर्बासा धामा ।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥३९॥

पाठ करहि जो नित नर नारी ।
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ॥४०॥

॥ दोहा ॥

तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥

सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥

🌼 तुलसी पूजन का सर्वोत्तम समय

रोजाना सुबह सूर्योदय के बाद तुलसी पूजन करना अत्यधिक शुभ माना गया है।
शाम के समय भी तुलसी के नीचे दीपक जलाकर परिक्रमा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का वास होता है।

🌺 तुलसी का पौधा लगाने का शुभ समय

तुलसी का पौधा गुरुवार या कार्तिक मास में लगाना अत्यंत शुभ होता है। यह समय आध्यात्मिक रूप से पवित्र और मंगलकारी माना गया है।
कार्तिक मास में तुलसी विवाह और तुलसी पूजा विशेष फल प्रदान करती है।

🌺 तुलसी चालीसा पाठ के नियम और विधि

तुलसी चालीसा का पाठ करते समय कुछ सरल नियमों का पालन करने से पूजा का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है –

🌿 1. स्वच्छता और पवित्रता रखें

पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को पवित्र करें और तुलसी के पौधे के सामने दीपक व अगरबत्ती जलाएं। यह वातावरण को दिव्य बनाता है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है।

🌿 2. श्रद्धा और विश्वास से पाठ करें

तुलसी चालीसा का पाठ केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि भक्ति का अनुभव है। इसे पूर्ण श्रद्धा, भक्ति और ध्यानपूर्वक करें। मन में तुलसी माता और श्रीहरि विष्णु के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखें।

🌿 3. तुलसी के पौधे के समक्ष बैठकर पाठ करें

तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय हैं। इसलिए तुलसी के पौधे के समक्ष बैठकर चालीसा का पाठ करने से पूजा का फल अनेक गुना बढ़ जाता है।

🌿 4. तुलसी के पत्ते तोड़ने के नियम

  • तुलसी के पत्ते सुबह सूर्योदय के बाद ही तोड़ें।
  • सूर्यास्त के बाद तुलसी को छूना या तोड़ना वर्जित है।
  • पत्ते तोड़ने से पहले तुलसी को प्रणाम करें, और कभी नाखून से न तोड़ें।

🌿 5. रविवार को तुलसी में जल न चढ़ाएं

धार्मिक मान्यता के अनुसार रविवार के दिन तुलसी में जल चढ़ाना निषेध है। इस दिन केवल दीपक जलाकर पूजन करें।

🌿 6. पूजा में दीपक और आसन का महत्व

तुलसी पूजन के समय गाय के घी का दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना गया है। दीपक के नीचे चावल का आसन रखें, इससे पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।

🌿 7. महिलाओं के लिए नियम

पूजा के समय महिलाओं को बाल खुले नहीं रखने चाहिए। यह शुद्धता और अनुशासन का प्रतीक है और पूजा की पवित्रता को बनाए रखता है।

🌿 तुलसी चालीसा का पाठ करने के अद्भुत लाभ (Tulsi Chalisa Path Ke Labh in Hindi)

तुलसी चालीसा का पाठ केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना है जो भक्त के जीवन में शांति, समृद्धि और भक्ति का संचार करती है। तुलसी माता भगवान विष्णु की परम प्रिय हैं, और उनका स्मरण या पूजन करने से श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है। तुलसी चालीसा का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर धन, सौभाग्य और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देता है।

🌸 1. धन और समृद्धि की प्राप्ति

तुलसी चालीसा के पाठ से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इससे घर में धन, ऐश्वर्य और खुशहाली बनी रहती है। नियमित पाठ करने से आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं, और व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत और निश्चिंत जीवन व्यतीत करता है।

🌺 2. नवग्रह दोषों से मुक्ति

जो व्यक्ति श्रद्धा से तुलसी चालीसा का पाठ करता है, उसके ग्रह दोष और कुंडली से जुड़ी बाधाएँ स्वतः शांत होती हैं। यह पाठ नवग्रहों की शांति का प्रभावी उपाय माना गया है, जिससे जीवन की कठिनाइयाँ, अड़चनें और दुर्भाग्य दूर होते हैं।

🌼 3. मानसिक शांति और तनाव मुक्ति

तुलसी चालीसा का पाठ मन को गहराई से शांत करता है। यह व्यक्ति को आंतरिक स्थिरता, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। इसके नियमित पाठ से तनाव, चिंता और मानसिक अस्थिरता दूर होती है, और व्यक्ति का मन एकाग्र होकर भक्ति में लीन रहता है।

🌻 4. विवाह संबंधी समस्याओं का समाधान

तुलसी चालीसा का पाठ विवाह में आने वाली रुकावटों और देरी को दूर करने में अत्यंत प्रभावी माना गया है। जो लोग उचित जीवनसाथी की तलाश में हैं या जिनके वैवाहिक जीवन में समस्याएँ हैं, उनके लिए तुलसी चालीसा का नित्य पाठ शुभ फलदायी होता है। यह भगवान विष्णु की कृपा से सुखद वैवाहिक जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है।

🌾 5. सुख-शांति और आध्यात्मिक समृद्धि

तुलसी चालीसा का पाठ घर में सुख-शांति, प्रेम और सकारात्मक वातावरण लाता है। यह व्यक्ति के मन, परिवार और जीवन में संतुलन स्थापित करता है। इसके नियमित पाठ से घर में देवी लक्ष्मी का स्थायी वास होता है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

🌿 तुलसी चालीसा पाठ का शुभ समय और दिन

तुलसी चालीसा का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन कुछ दिन अत्यधिक शुभ और फलदायी माने गए हैं।

  • देव उठनी एकादशी, कार्तिक पूर्णिमा और गुरुवार के दिन तुलसी चालीसा का पाठ करना विशेष रूप से शुभ होता है।
  • प्रातःकाल (सूर्योदय के बाद) तुलसी के पौधे के समक्ष बैठकर चालीसा पढ़ना सर्वोत्तम माना गया है।
  • इस समय का पाठ भक्त को पवित्रता, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।

🌸 विवाह और एकादशी पर तुलसी चालीसा पाठ का महत्व

  • विवाह के दिन तुलसी चालीसा का पाठ करने से दांपत्य जीवन में प्रेम और सौहार्द बना रहता है।
  • देव उठनी एकादशी पर तुलसी चालीसा का पाठ करने से पापों का क्षय होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
    इन दिनों तुलसी चालीसा का पाठ करने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में धन, वैभव और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

🌿 निष्कर्ष (Conclusion)

तुलसी चालीसा का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में धन, शांति, प्रेम और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
यह चालीसा हमें सिखाती है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया हर कार्य ईश्वर तक पहुँचता है।
तुलसी माता की आराधना से घर में सुख-समृद्धि, दांपत्य सौभाग्य और दिव्य कृपा सदा बनी रहती है।

प्रसिद्ध “तुलसी चालीसा” – वीडियो :

🪔 आशा है कि तुलसी माता की यह पावन जानकारी आपके मन में भक्ति और श्रद्धा का भाव जगाएगी। अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो, तो कृपया इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें और नीचे कमेंट में अपने विचार ज़रूर बताएं। जय तुलसी माता! 🌿🙏

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